Featuredदेश

भाजपा की षडयंत्रकारी चाल को पराजित कर कमलनाथ के 27 प्रतिशत आरक्षण के प्रस्ताव पर कोर्ट की लगी सुप्रीम मुहर

*मुख्यमंत्री बनते सबसे पहले ओबीसी वर्ग के कल्याण के लिये प्रदेश में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का प्रस्ताव लाये थे कमलनाथ

*पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की पांच वर्ष की कठोर साधना को मिला प्रदेश की साढ़े आठ करोड़ जनता का साथ, सुप्रीम फैसले ने कमलनाथ को दिलाई सफलता

*राहुल गांधी ने भी माना कि ओबीसी वोट पार्टी से दूर जा चुका है

भोपाल/स्वराज टुडे: मध्यप्रदेश के लाखों युवाओं के सपनों को पंख लगाने का कार्य जो पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने किया था वह अब पूरा होता दिखाई पड़ रहा है। दरअसल कमलनाथ ने लाखों युवाओं को रोज़गार से जोड़ने के लिये प्रदेश में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव विधानसभा पटल पर रखा था। खास बात यह है कि कमलनाथ ने विधानसभा में 27 प्रतिशत आरक्षण के इस प्रस्ताव को पास भी करा लिया, लेकिन तत्कालीन विपक्षी दल के नेता शिवराज सिंह चौहान ने श्रेय लेने की होड़ में इस प्रस्ताव को कोर्ट के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। विपक्षी दल की श्रेय पाने की इस होड़ के कारण लाखों युवा इस प्रस्ताव से मिलने वाले लाभ से वंचित रह गये और उन्हें लंबे समय तक इस प्रस्ताव पर लगने वाली मुहर का इंतजार करना पड़ा। हालांकि अब युवाओं का इंतजार खत्म हो गया है और सुप्रीम कोर्ट ने 27 प्रतिशत आरक्षण पर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लगाई गई याचिका को खारिज करते हुए प्रदेश में पुराने बिल को ही लागू करने पर सहमति दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एक तरफ जहां मध्यप्रदेश भाजपा सरकार की किरकरी हुई है वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ की पिछले पांच वर्षों की तपस्या सफल हो गई। आश्चर्य करने वाली बात यह है कि जबसे सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मसले पर सरकार के वकील को खरी-खरी सुनाते हुए फैसले को तत्काल प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया है। तभी से केंद्र से लेकर प्रदेश स्तर तक सभी भाजपाई नेता चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। किसी ने भी कोर्ट के इस फैसले पर किसी प्रकार की कोई बयानबाजी नहीं की है।

यह भी पढ़ें :  राशिफल 30 जनवरी 2025 : जानिए कैसा रहेगा आपका आज का दिन

कमलनाथ के फैसले पर लगी सुप्रीम मुहर

कमलनाथ ने वर्ष 2018 में सत्ता संभालते ही सबसे पहले किसानों की कर्जमाफी और प्रदेश में 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के विधेयक संबंधी अधिकारियों और मंत्रियों को निर्देश दिये थे। लेकिन उस समय कुछ अधिकारियों की चालबाजी के कारण कमलनाथ इस प्रस्ताव को सिर्फ विधानसभा के पटल तक ला सके और वहां से पारित होने के तुरंत बाद ही भाजपा नेताओं ने इस पर आपत्ति लेते हुए पूरे मामले पर ब्रेक लगवा दिया। लेकिन कमलनाथ तब भी नहीं हारे। वे मुख्यमंत्री पद जाने के बाद भी लगातार इस दिशा में कार्य करते रहे और उन्होंने प्रदेश की जनता और युवाओं के लिये प्रयास जारी रखा। यह कमलनाथ के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि कोर्ट ने उनके परिश्रम पर सुप्रीम मुहर लगा दी है।

यह कमलनाथ और कांग्रेस की जीत है

जनवरी 2025 में जब जबलपुर हाईकोर्ट ने कमलनाथ के 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के प्रस्ताव को खारिज करने वाली याचिका को निरस्त करते हुए प्रदेश की भाजपा और डॉ. मोहन यादव की सरकार को करारा जबाव दिया था। बावजूद उसके भाजपा नेता नहीं माने और श्रेय पाने की होड़ में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने मामले की सुनवाई करते हुए 27 प्रतिशत आरक्षण मामले का विरोध करती प्रदेश सरकार की याचिका को खारिज करते हुए प्रदेश में आरक्षण का लाभ देने का रास्ता साफ कर दिया। कुल मिलाकर आज भले ही कई कांग्रेस नेता इस पूरे मामले पर श्रेय लेने के लिये आगे आये लेकिन सही मायने में यह जीत कांग्रेस की है और कमलनाथ के अथक परिश्रम और प्रयासों की है।

यह भी पढ़ें :  पेशाब से आटा गूंथकर रोटी खिलाने वाली नौकरानी गिरफ्तार, गंदी हरकत के पीछे आरोपिया ने बताई ये वजह

अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को छीनना चाहती है भाजपा

कमलनाथ ने भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को छीनने के लिए भाजपा सरकार किस-किस तरह के षड्यंत्र कर रही है, यह देखकर कोई भी चकित हो सकता है। उन्होंने लिखा भाजपा ने पहला काम तो यह किया कि 2019 में मेरी सरकार द्वारा लागू 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को असंवैधानिक तरीक़े से लागू होने से रोक दिया। भाजपा की सरकारों ने अपनी तरफ़ से हाईकोर्ट में यह दलील दी कि ओबीसी से जुड़े 13 प्रतिशत पद होल्ड पर रखे जाए। वर्ष 2022 में जब नगर निकाय और ग्रामीण निकाय के चुनाव हुए तो भाजपा ने जानबूझकर प्रदेश की जातिगत स्थिति कोर्ट के सामने स्पष्ट नहीं की और इन चुनावों में ओबीसी आरक्षण को झटका दिया। विभिन्न सरकारी भर्तियों में जानबूझकर ओबीसी को समुचित आरक्षण लागू नहीं किया जिसके कारण यह भर्तियां लंबे समय से लंबित हैं। मध्य प्रदेश पीएससी 2025 की परीक्षा में अनारक्षित सीटों पर आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों के चयन को रोकने के असंवैधानिक नियम बना दिए। मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ने ओबीसी और अन्य जातियों की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली है लेकिन सरकार 01 साल से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक ही नहीं कर रही है। इन सब तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी आरक्षण को समाप्त करना चाहती है और ओबीसी वर्ग के साथ धोखा कर रही है।

अब सरकार की है जिम्मेदारी

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी उस कानून पर स्थगन नहीं दिया है जिसमें मप्र में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। चूंकि उक्त याचिका हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से निरस्त हो गई है, इसलिए उसमें दिए गए अंतरिम आदेश भी स्वयमेव समाप्त हो जाते हैं। बहरहाल, अब सरकार की यह जिम्मेदारी है कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए।

यह भी पढ़ें :  शोक संदेश: पूर्व सांसद स्व. डॉ बंशीलाल महतो जी की धर्मपत्नी व भाजपा के प्रदेश मंत्री विकास महतो की माता जी का निधन, जिले में शोक की लहर

*विजया पाठक की रिपोर्ट*

यह भी पढ़ें: जघन्य अपराध की ओर महिलाओं के बढ़ते कदम…मानसिक विकृति या लाचारी ?

यह भी पढ़ें: बेटी की शादी से 9 दिन पहले होने वाले दामाद के साथ फरार हो गई सास, रुपए-जेवर भी ले गई साथ

यह भी पढ़ें: पत्नी को प्रेमी के साथ रंगे हाथ पकड़ा तो पति को मिली धमकी- बीच में आए तो मेरठ हत्याकांड जैसा होगा हाल

Deepak Sahu

Editor in Chief

Related Articles

Back to top button