बिहान समूह की महिलाओं के हर्बल गुलाल निर्माण से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम

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छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: कोरबा जनपद की ग्राम पंचायत दोंदरो के आश्रित ग्राम बेला कछार की महिलाएं आज अपनी मेहनत और संकल्प के बलबूते आत्मनिर्भरता की नई मिसाल पेश कर रही हैं। राष्ट्रीय आजीविका मिशन “बिहान” के तहत “जय मां अम्बे स्वसहायता समूह” की महिलाओं ने प्राकृतिक वस्तुओं से हर्बल गुलाल तैयार कर बाजार में अपनी पहचान बनाई है। उनका उद्देश्य सिर्फ आर्थिक मजबूती ही नहीं, बल्कि होली के त्यौहार पर लोगों को रसायन-मुक्त, पर्यावरण-अनुकूल और स्वदेशी उत्पाद उपलब्ध कराना भी है।

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प्राकृतिक संसाधनों से हर्बल गुलाल निर्माण

समूह की अध्यक्ष श्रीमती कुंती दुबे बताती हैं कि महिलाएं घरेलू प्राकृतिक सामग्रियों जैसे लाल भाजी, पालक भाजी, कच्ची हल्दी और पलाश के फूलों से हरे, पीले, गुलाबी और नीले रंग के गुलाल तैयार कर रही हैं। गुलाल में सुगंध के लिए गुलाब जल मिलाया जाता है, जिससे यह पूरी तरह से त्वचा के अनुकूल और सुरक्षित बनता है।

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एक सप्ताह में 100 किलो हर्बल गुलाल तैयार

महिलाओं ने कड़ी मेहनत और टीम वर्क से मात्र एक सप्ताह में 100 किलोग्राम हर्बल गुलाल तैयार किया। इसमें से 80 किलो ग्राम गुलाल तो घर बैठे ही बिक गया, जिससे समूह को 10,000 रुपये की कमाई हुई। 1 किलोग्राम हर्बल गुलाल की कीमत 125 रुपये रखी गई है, जिससे प्रति किलो 40 रुपये का मुनाफा हो रहा है।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम

समूह की सदस्य श्रीमती मीरा देवांगन कहती हैं, “यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि हम न केवल खुद आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं, बल्कि समाज को सुरक्षित और स्वदेशी उत्पाद भी दे रहे हैं। बाजार में रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान को देखते हुए, हमारी हर्बल गुलाल एक बेहतरीन और सुरक्षित विकल्प है।”

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समूह की महिलाओं का अगला लक्ष्य हर्बल गुलाल का उत्पादन बढ़ाना और ऑनलाइन माध्यम से इसकी बिक्री करना है। वे चाहती हैं कि उनका उत्पाद सिर्फ गांव-शहरों तक ही सीमित न रहे, बल्कि राज्य और देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचे।

सफलता की नई उड़ान

बिहान समूह की इन मेहनती महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो सीमित संसाधनों में भी आत्मनिर्भरता हासिल की जा सकती है। प्राकृतिक गुलाल के निर्माण से न केवल उनका आर्थिक सशक्तिकरण हुआ है, बल्कि वे पर्यावरण और स्वास्थ्य की सुरक्षा में भी योगदान दे रही हैं। यह कहानी सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि हर उस महिला की प्रेरणा है जो खुद की पहचान बनाना चाहती है।

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दीपक साहू

संपादक

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