बहराइच में भेड़ियों के आदमखोर बन जाने की कहीं ये वजह तो नही ? जानिए भेड़ियों के बारे में हैरान कर देने वाली बातें

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उत्तरप्रदेश
बहराइच/स्वराज टुडे: उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़िया एक के बाद एक करके लगभग 50 गांवों में दहशत का पर्याय बन चुका है। 165 अधिकारी और शूटर भेड़ियों को पकड़ने के लिए बहराइच के जंगलों में उतार दिए गए हैं।

पकड़े गए 4 भेड़ियों को छुड़ाने बाकी भेड़िए हो गए है और ज्यादा आक्रामक !

इन अधिकारियों को कुछ हद तक सफलता भी मिली लेकिन भेड़ियों के हमले कम नहीं हुए और उनका खौफ पहले की तुलना में और ज्यादा बढ़ गया है। कहा जाता है कि भेड़िए को अपनी आजादी से ज्यादा कुछ भी प्यारा नहीं है ऐसे में बहराइच में पकड़े गए 4 भेड़िए को कहीं छुड़ाने के लिए तो भेड़ियों ने हमले तेज तो नहीं कर दिए हैं। वैसे भी एक्सपर्ट्स ने इस बात का दावा किया है कि भेड़िए बदला जरूर लेते हैं। वो अपने सूंघने की शक्ति के प्रयोग से मुआयना कर लेते हैं और फिर उस इलाके को तबाह कर देते हैं जहां उनके साथी या बच्चे पकड़े गए हैं या मारे गए हैं। काफी हद तक भेड़िए का स्वभाव मनुष्यों के स्वभाव से मिलता जुलता है। आइए आपको बताते हैं भेड़िए को गुलामी क्यों नहीं पसंद है।

भेड़िया एक ऐसा जानवर है जो कभी भी किसी की गुलामी नहीं पसंद करता है। वो अपनी आजादी पर कभी समझौता नहीं करता है और न ही किसी की गुलामी को स्वीकार करता है। भेड़िया अगर पकड़ भी लिया गया है तो भी वो उसे कोई पालतू नहीं बना सकता है ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप भेड़िए को पकड़ भी लें तो वो अपना भोजन त्याग देता है। भले वो भूख से मर जाएगा लेकिन कभी किसी की दासता स्वीकार नहीं करेगा। यही वजह है कि हमने आज तक किसी भी चिड़ियाघर या सर्कस में कभी भेड़िए को नहीं देखा है।

भेड़िए को गुलामी नहीं पसंद, यही वजह है कि सर्कस या जू में नहीं आते नजर 

सर्कस वो जगह है जहां पर जंगल के राजा शेर से लेकर हाथी, चीता, बाघ, भालू और खरगोश सहित लगभग सभी जानवर इंसानों के इशारों पर नाचते हुए देखा जा सकता है लेकिन भेड़िए को हमने आज तक सर्कस में नहीं देखा है। इसी प्रकार चिड़ियाघर में भी कभी आपने भेड़िए को नहीं देखा होगा।

अगर हम किसी भेड़िए के बच्चे को पकड़कर उसे सिखाने की कोशिश भी करें तो भेड़िए झुंड में आकर उस इलाके को तबाह कर देते हैं। वो किसी भी कीमत पर अपने बच्चों को ऐसे लोगों से छुड़ाकर ले जाते हैं चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जान ही क्यों न गंवानी पड़े। बहराइच में हो रहे भेड़िए के हमलों पर एक्सपर्ट्स यही कहते हैं कि भेड़िए के बच्चे किसी रोड एक्सीडेंट में मारे गए हैं और इसी वजह से भेड़ियों के झुंड ने पूरे इलाके को निशाना बना रखा है।

भेड़िए सहवास के लिए चुनते हैं सिर्फ एक साथी और जीवन भर रहते हैं उसी के लिए वफादार

भेड़िए के बारे में और पढ़ने पर पता चला कि भेड़िया अन्य जानवरों की तुलना में बिलकुल अलग होता है। भेड़िए का रहन सहन कुछ-कुछ इंसानों से मिलता जुलता है। जैसे इंसान अपनी मां और बहन को कभी काम वासना की नजरों से नहीं देखते हैं वैसे ही भेड़िए भी अपनी बहन या मां के साथ सेक्सुअल रिलेशनशिप नहीं बनाते हैं। वो अपना एक जीवनसाथी चुनते हैं और पूरी उम्र उसी के साथ बिताते हैं। ये अपने साथी के प्रति पूरी तरह से वफादार होते हैं और एक साथी चुनने के बाद बार-बार किसी अन्य मादा के साथ सहवास के लिए नहीं जाते हैं।

भेड़िए को नेक बेटे का दर्जा, जो अपने मां-बाप के बुढ़ापे का होता है सहारा

भेड़िए को अरबी भाषा में ‘इब नल बार’ कहा जाता है जिसका मतलब है ‘नेक बेटा’, जो अपने मां-बाप का पूरी तरह से ध्यान रखे और बुढ़ापे में उनकी भरपूर सेवा करे। अरब में भेड़ियों को ये नाम इस वजह से दिया गया है क्योंकि भेड़िया ही एक ऐसा जानवर है जो वृद्धास्था में शिकार पर नहीं जाते हैं। ऐसा इसलिए कि युवा भेड़िए शिकार पर जाते हैं और अपने बुजुर्गों के लिए भोजन लेकर आते हैं और उनका पूरा खयाल भी रखते हैं। बुजुर्ग भेड़िए मांदों में रहते हैं और छोटे बच्चों की देखभाल करते हैं। ऐसा उदाहरण हम किसी जानवरों के झुंड में नहीं देखते हैं जबकि हम इंसानों के समाज में भी ऐसा ही देखते हैं। भेड़ियों की ये आदते ही हमें भेड़िए और इंसानों के बीच एक समानता का उदाहरण देती हैं।

तुर्की के लोग अपने बच्चों को शेर की बजाए भेड़िए कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं

तुर्की के लोग अपनी औलादों को शेर की बजाए भेड़िए की तशरीह देते हैं। तुर्की के लोगों का मानना है कि शेर की तरह खूंखार होने से बेहतर है भेड़िए की तरह से नस्लीय बनना ज्यादा बेहतर है। यही वजह है कि भेड़िए कभी किसी के गुलाम नहीं बन सकते हैं। भेड़िए के स्वभाव इंसानों से काफी मेल खाते हैं। भेड़िए इंसानों, बाघ और शेर के अलावा किसी अन्य जानवर से बिलकुल भी नहीं डरते हैं। ऐसा इसलिए कि वो हमेशा एकता में और झुंड के साथ रहते हैं। कभी-कभी तो ये बाघों और शेरों के मुंह से भी शिकार छीन लाते हैं।

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दीपक साहू

संपादक

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