अमीर लोग कर्ज से नहीं डरते, तो क्यों मिडिल क्लास कर्ज से घबराता है? एक्सपर्ट ने बताया धन बनाने का असली फॉर्मूला

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नई दिल्ली/स्वराज टुडे: अधिकतर लोगों के लिए पैसा एक रहस्य की तरह है-वे कमाते हैं, खर्च करते हैं, थोड़ी बचत करते हैं और भविष्य के भरोसे छोड़ देते हैं. लेकिन देश के टॉप 1 फीसदी लोग पैसे को बिल्कुल अलग तरीके से देखते हैं.

शरण हेज के लोकप्रिय शो ‘1% क्लब’ में बेस्टसेलिंग लेखक और फाइनेंशियल लिटरेसी विशेषज्ञ डॉ. अनिल लांबा ने खुलासा किया कि अमीर लोग कर्ज को डर की नहीं, बल्कि ग्रोथ की ताकत के रूप में देखते हैं. लांबा बताते हैं कि भारत में ज्यादातर लोग पैसे का असली खेल समझते ही नहीं, क्योंकि स्कूल, कॉलेज या नौकरी-कहीं भी वित्तीय शिक्षा नहीं दी जाती. इसलिए कर्ज शब्द सुनते ही मिडिल क्लास घबरा जाता है, जबकि अमीर इसे प्रगति के साधन की तरह इस्तेमाल करते हैं. उनके मुताबिक ‘मैं कर्ज-मुक्त हूं’ कहना हमेशा कोई उपलब्धि नहीं होती. कई बार इसका मतलब होता है कि व्यक्ति ग्रोथ रोक चुका है, या फिर बहुत महंगी इक्विटी से अपनी जरूरतें पूरी कर रहा है. लांबा कहते हैं कि इक्विटी कर्ज से तीन गुना महंगी होती है.

कंपनियों को, और यहां तक कि व्यक्तियों को भी, कर्ज लेने का डर छोड़कर यह समझना चाहिए कि पैसा तभी काम करता है, जब उसका उपयोग कम लागत में ज्यादा रिटर्न लाने के लिए किया जाए. अमीर लोग इसी नियम को समझते हैं- वे जानते हैं कि कर्ज तभी समस्या बनता है जब उससे गलती से गलत जगह निवेश कर दिया जाए.

कर्ज के सही उपयोग का विज्ञान: दो नियम जो जिंदगी बदल सकते हैं

डॉ. अनिल लांबा बताते हैं कि कर्ज को सही ढंग से इस्तेमाल करने के लिए सिर्फ दो बेहद सरल नियम हैं. पहला- कर्ज का पैसा ऐसे प्रोजेक्ट में लगाएं, जहां निवेश का रिटर्न कर्ज की लागत से अधिक हो. दूसरा- यह सुनिश्चित करें कि पैसा उतनी जल्दी वापस आ जाए कि देनदारी चुकाने में कोई समस्या न आए. उनके अनुसार, जब तक ये दोनों नियम नहीं टूटते, कर्ज ग्रोथ का सबसे शक्तिशाली कैटलिस्ट बन जाता है. उदाहरण देते हुए लांबा कहते हैं कि अगर कोई उद्यमी 100 करोड़ का बिजनेस शुरू करना चाहता है, तो उसे 100 करोड़ की जगह 300 करोड़ का प्लान बनाना चाहिए- 100 करोड़ अपनी जेब से और 200 करोड़ कर्ज के रूप में. इससे न सिर्फ व्यवसाय तेजी से बढ़ता है, बल्कि मालिक का रिटर्न कई गुना बढ़ जाता है. लांबा लोगों की उस सोच पर भी सवाल उठाते हैं जिसमें वे खुद को ‘कर्ज मुक्त’ कहकर गर्व महसूस करते हैं. उनके अनुसार इसका मतलब कई बार यह होता है कि कोई व्यक्ति अपनी सारी ग्रोथ को बहुत महंगे मालिकाना फंड से चला रहा है.

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वे कहते हैं कि ‘लोग मालिक के निवेश को मुफ्त समझते हैं, जबकि असल में वही सबसे महंगा होता है.’ उनका दावा है कि दुनिया की 90 फीसदी कंपनियां इसलिए फेल नहीं होतीं क्योंकि उनका प्रोडक्ट खराब होता है, बल्कि इसलिए क्योंकि उनके मालिकों को अपने कैपिटल की लागत का अंदाजा ही नहीं होता. वित्तीय अज्ञानता ही बिजनेस फेलियर, गलत निवेश और कर्ज से डर की सबसे बड़ी वजह है.

महंगाई, FD और सेविंग का भ्रम- क्यों मिडिल क्लास हमेशा पीछे रह जाता है?

भारतीय मिडिल क्लास का एक बड़ा हिस्सा अपनी बचत FD और सुरक्षित स्कीमों में डालता है, जहां उसे लगता है कि उसे 6-7% की कमाई मिल रही है. लेकिन लांबा कहते हैं कि असली कमाई वह है जो महंगाई घटाने के बाद बचे. अगर महंगाई 10% है और FD से पोस्ट-टैक्स 5% कमाई मिल रही है, तो वास्तव में व्यक्ति हर साल 5% गरीब हो रहा है. उन्होंने मेक्सिको का उदाहरण देते हुए कहा कि कुछ समय वहां बैंक 80 फीसदी ब्याज दे रहे थे, लेकिन महंगाई 100 फीसदी थी यानि लोग जितना कमा रहे थे, उससे ज्यादा गति से गरीब बन रहे थे. भारत में भी यह स्थिति बनी रहती है, तो न सिर्फ लोगों की संपत्ति घटती है, बल्कि बैंकिंग सिस्टम भी खतरे में पड़ सकता है.

लांबा कहते हैं कि मिडिल क्लास यह समझ ही नहीं पाता कि असली खेल महंगाई vs रिटर्न का है, न कि सिर्फ ब्याज दरों का. यही वजह है कि अमीर लोग सेविंग के बजाय ऐसे निवेश चुनते हैं जो महंगाई को मात दें-जैसे बिजनेस, रियल एस्टेट, इक्विटी और उत्पादक एसेट्स. वहीं, मिडिल क्लास सुरक्षा के नाम पर पैसा वहां रखता है जहां वह धीरे-धीरे अपनी कीमत खोता रहता है. यह डर उन्हें आगे बढ़ने नहीं देता, और कर्ज का उपयोग करने की बजाय वे उससे दूर भागते रहते हैं.

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फाइनेंशियल लिटरेसी ही असली सुरक्षा- न कि बचत, न कर्ज से दूरी

लांबा चेतावनी देते हैं कि वित्तीय अज्ञानता किसी भी व्यक्ति की जिंदगी को बर्बाद कर सकती है. वे कहते हैं कि ऐसे कई दुखद मामले सामने आते हैं जहां लोग पूरी जिंदगी बचत करते हैं, लेकिन रिटायरमेंट के बाद पता चलता है कि जमा पैसा छह महीने भी नहीं चलेगा. उनके अनुसार, हर भारतीय को कम से कम चार चीजें जरूर समझनी चाहिए- महंगाई, टैक्सेशन, कम्पाउंडिंग और निवेश. परिवार, समाज और नौकरी हमें इन विषयों के लिए कभी तैयार नहीं करते, इसलिए जीवन भर गलतियां दोहराते रहते हैं. वे बताते हैं कि पैसे को समझना बचत करने से कहीं ज्यादा जरूरी है. असली सुरक्षा न बैंक बैलेंस है, न FD- बल्कि ज्ञान है. अगर कोई व्यक्ति कर्ज, निवेश, पूंजी और रिटर्न को समझ ले, तो वह न सिर्फ अपनी वित्तीय स्थिति सुधार सकता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की भी दिशा बदल सकता है.

अंत में उनका संदेश साफ है- पैसे को सीखिए, कर्ज को रणनीतिक रूप से इस्तेमाल कीजिए, और अपने ज्ञान को ही अपनी असली संपत्ति बनाइए. अमीर इस सिद्धांत को समझते हैं, इसलिए वे आगे बढ़ते जाते हैं. मिडिल क्लास इस सिद्धांत से डरता है, इसलिए वहीं खड़ा रह जाता है.

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दीपक साहू

संपादक

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