ना कर अपनी दौलत शोहरत पर गुमान ऐ ग़ालिब, वक़्त बुरा हो तो साया भी साथ छोड़ जाता है…महाभारत में काम कर कभी सुपरस्टार बना था ये एक्टर, वृद्धाश्रम में काटना पड़ा जीवन के आखरी दिन

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मुम्बई/स्वराज टुडे: 1991 में दूरदर्शन पर आने वाला रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित धारावाहिक सीरियल ‘महाभारत’ ने भारतीय टेलीविजन के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी. जी हां, इस सीरियल के हर किरदार, हर डायलॉग हर कलाकार आज भी दर्शकों के दिल में बसा हुआ है.

‘महाभारत’ से सतीश कौल को मिली अलग पहचान

वहीं इस शो में भगवान इंद्रदेव की भूमिका निभाकर जिस एक्टर ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई, वो थे सतीश कौल. एक ऐसा नाम जिसने शोहरत तो खूब देखी, लेकिन जिंदगी के अंतिम सालों में गुमनामी गरीबी का दौर भी झेला. चलिए हम आपको उनके बारे में डिटेल में बताते हैं.

‘पंजाबी सिनेमा का अमिताभ बच्चन’

8 सितंबर 1946 को जन्मे सतीश कौल को उनके अभिनय लोकप्रियता के चलते ‘पंजाबी सिनेमा का अमिताभ बच्चन’ कहा जाता था. उन्होंने हिंदी पंजाबी फिल्मों में करीब 300 से अधिक फिल्मों में काम किया. उनका फिल्मी सफर बेहद सफल रहा. उन्होंने देव आनंद, दिलीप कुमार और शाहरुख खान जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर की.

वहीं उनकी यादगार फिल्मों में सस्सी पुन्नू, इश्क निमाना, प्रेम पर्वत, सुहाग चूड़ा पटोला जैसी फिल्में शामिल हैं. पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए 2011 में उन्हें PTC पंजाबी फिल्म अवॉर्ड्स में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया था.

वृद्धाश्रम में गुजारे थे आखिरी दिन

कभी लाखों दिलों की धड़कन रहे सतीश कौल की जिंदगी का लास्ट चेप्टर बेहद कष्टदायक था. दरसअल, 2015 में एक दुर्घटना में उनके कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया, जिसके बाद उन्हें दो साल तक बिस्तर पर रहना पड़ा. इस दौरान उनकी आर्थिक हालत बेहद खराब हो गई. उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि, ‘मैं दवाओं, किराने का सामान बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा हूं. मुझे एक एक्टर के रूप में बहुत प्यार मिला, लेकिन अब एक जरूरतमंद इंसान के रूप में थोड़ी मदद चाहिए.’

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10 अप्रैल 2021 को ली अंतिम सांस

वहीं 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन ने उनकी स्थिति खराब कर दी. वो वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हो गए कई बार उन्होंने मदद की अपील की. इसके बाद 10 अप्रैल 2021 को लुधियाना में सतीश कौल का निधन हो गया. उनकी जिंदगी एक ऐसी कहानी बन गई, जो शोहरत से शुरू होकर संघर्ष अकेलेपन में खत्म हुई.

ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिन्होंने अपने जीवन में दौलत और शोहरत खूब कमाए लेकिन वक्त ने ऐसा करवट लिया कि उनका आखिरी समय बहुत ही कष्टदायक और एकाकी रहा । किसी का भाग्य कब किसे फर्श से अर्श तक पहुंचा दे और किसे अर्श से फर्श तक पहुंचा दे कहा नहीं जा सकता ।

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दीपक साहू

संपादक

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