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जघन्य अपराध की ओर महिलाओं के बढ़ते कदम…मानसिक विकृति या लाचारी ?

छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: जिले की सामाजिक कार्यकर्ता एवं शिक्षाविद डॉ सुषमा पांडेय ने जघन्य अपराधों में महिलाओं की सहभागिता को लेकर चिंता जाहिर की है । उन्होंने कहा कि आज हम सोशल मीडिया के कारण जीवन के किसी भी क्षेत्र से अछूते नहीं हैं । क्या हमने कभी सोचा है कि एक जघन्य अपराध की खबर कैसे सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को बर्बाद या भ्रष्ट कर सकता है । जितना सच सामने लाने की कोशिश करते हैं, मानव मन उतना ही विकृत होकर जघन्य अपराध की ओर प्रेरित होता है ।

आप स्वयं महसूस किए होंगे कि कोई जघन्य वारदात की खबर जैसे ही अखबार, न्यूज चैनल अथवा सोशल मीडिया में आती है तो उसके बाद उसी तरह की कई खबरें सुनाई देने लगती है । मेरठ हत्याकांड के बाद अब इसी तरह की कई वारदातें सामने आने लगी है जिसमें महिलाएं बड़ी क्रूरता के साथ अपने पति को मौत के घाट उतार रही हैं। आखिर इसका कारण क्या है ये आज से ही सोचने की जरूरत है। आज यह समझने की नितांत आवश्यकता केवल समाज को नहीं अपितु प्रत्येक मानव मन को है चाहे वह अपराध महिलाओं या पुरुषों द्वारा किया गया हो।

महाभारत में कहा गया था जिस झूठ से मानव का भला हो वह सौ बुरे सच से अच्छा है। आज देश में चारों तरफ चर्चा मेरठ हत्याकांड या कोलकाता जैसे हत्याकांड की हो रही है परंतु आज सोचने वाली बात ये है कि महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही है तो ये अपराध करने में अछूती क्यों रहती ?? क्या हमने समझने की कोशिश की है कि ममता और त्याग की मूर्ति कही जाने वाली स्त्री आज इतनी क्रूर क्यों होती जा रही है ?

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हत्या हो या मानव तस्करी, देह व्यापार हो या भ्रष्टाचार आज महिलाएं इन सभी घटनाओं में शामिल होती जा रही हैं । हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि औरतों को यह सब करना क्या अच्छा लगता है पर यहां आने तक का सफर कितना भयावह है क्या हमने सोचा है ? आज भी अगर नहीं सोचेंगे तो आने वाले वक्त में हमें इससे भी बुरी कीमत चुकानी पड़ेगी।

महिलाओं द्वारा जघन्य अपराध के बहुत सारे परिपेक्ष्य हो सकते हैं जैसे पारिवारिक , सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, भावनात्मक अथवा प्रतिशोधात्मक ऐसे कई कारक है जो महिला अपराधों की जननी है। लैंगिक भेदभाव जेंडर के आधार पर भावनात्मक और शारीरिक शोषण बरसों से होता रहा है । वस्तु के रूप में उपयोग किए जाने की प्रथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उदाहरण है ।

कहते हैं कि जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो दर्द शुन्य हो जाता है। यह शुन्य होती संवेदनाएं किस ओर ले जा रही हैं यह चिंतनीय है । जघन्य अपराधों में महिलाओं की सहभागिता एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिस पर समाजशास्त्रियों द्वारा शोध किए की आवश्यकता है जिससे इस समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सके और उसे समाधान की दिशा में ले जाकर संतुलित समाज की स्थापना किया जा सके।

 

Deepak Sahu

Editor in Chief

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