फर्जी जाति प्रमाण पत्र मामला: आदिवासी समाज ने कलेक्टर को दी आंदोलन की चेतावनी, प्रशासन पर निष्क्रियता का आरोप

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छत्तीसगढ़
बलरामपुर–रामानुजगंज/स्वराज टुडे: विधानसभा क्षेत्र प्रतापपुर से भाजपा विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते के कथित फर्जी जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किए जाने की मांग को लेकर आदिवासी समाज में भारी आक्रोश व्याप्त है। इस संबंध में समस्त आदिवासी समाज एवं क्षेत्र के नागरिकों की ओर से कलेक्टर, बलरामपुर–रामानुजगंज को एक लिखित आवेदन सौंपकर कड़ी कार्रवाई नहीं होने पर उग्र धरना–प्रदर्शन की चेतावनी दी गई है।

आवेदन में उल्लेख है कि 31 अक्टूबर 2025 को विधायक के फर्जी जाति प्रमाण पत्र की जांच एवं निरस्तीकरण हेतु सक्षम प्राधिकारी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया था। इसके बावजूद आज तक प्रमाण पत्र निरस्त नहीं किया गया, जिससे प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।

आदिवासी समाज का आरोप है कि यदि निर्धारित समयसीमा में कार्रवाई नहीं हुई तो विधानसभा क्षेत्र के समस्त मतदाता आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। आवेदन में यह भी कहा गया है कि 17 नवंबर 2025 को कलेक्टर कार्यालय द्वारा विधायक को संबंधित समस्त दस्तावेजों के साथ उपस्थित होने का अंतिम मौका दिया गया था। इसके बाद 27 नवंबर 2025 को अनावेदक के अधिवक्ता द्वारा स्थगन याचिका प्रस्तुत की गई, जिस पर 11 दिसंबर 2025 को आदेश सुरक्षित रखे जाने की जानकारी दी गई। बावजूद इसके, मामले को लगातार टालने और लटकाने का आरोप लगाया गया है।

आवेदन के अनुसार, अगली सुनवाई की तिथि 29 दिसंबर 2025 निर्धारित की गई है। आदिवासी समाज ने स्पष्ट किया है कि यदि उस तिथि तक भी फर्जी जाति प्रमाण पत्र निरस्त नहीं किया गया, तो वे कलेक्टर परिसर के समक्ष मुख्यमंत्री/उपमुख्यमंत्री के पोस्टर–बैनर लेकर शांतिपूर्ण लेकिन उग्र धरना–प्रदर्शन करेंगे।

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आवेदन के अंत में कलेक्टर से आग्रह किया गया है कि तत्काल कार्रवाई कर फर्जी जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किया जाए, अन्यथा होने वाले किसी भी आंदोलन की पूर्ण जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।

यह पत्र विधानसभा क्षेत्र प्रतापपुर के समस्त नागरिकों की ओर से प्रेषित बताया गया है, जिसकी प्रतिलिपि कलेक्टर सरगुजा, पुलिस अधीक्षक सरगुजा तथा पुलिस अधीक्षक बलरामपुर–रामानुजगंज को भी भेजी गई है।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर संवैधानिक पद पर बैठे जनप्रतिनिधियों की पात्रता, प्रशासनिक पारदर्शिता और आदिवासी अधिकारों के संरक्षण को लेकर तीखी बहस छेड़ दी है। अब निगाहें प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।

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दीपक साहू

संपादक

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