हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध, पिंडदान और मृत्युभोज जैसे संस्कारों का आयोजन किया जाता है. मृत्युभोज का उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्त करना और उन्हें मोक्ष की ओर अग्रसर करना होता है.
यह पूरी तरह धार्मिक और आध्यात्मिक भावना से जुड़ा होता है, न कि किसी सामाजिक समारोह की तरह. ऐसे में यह जानना बेहद आवश्यक है कि किन व्यक्तियों को मृत्युभोज में भोजन करने से परहेज करना चाहिए.
गर्भवती महिलाएं
धार्मिक मान्यता है कि गर्भवती महिलाओं को मृत्युभोज में भाग नहीं लेना चाहिए. यह समय उनके और गर्भस्थ शिशु के लिए संवेदनशील होता है, और कहा जाता है कि ऐसे अवसरों की नकारात्मक ऊर्जा भ्रूण पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है.
ब्राह्मण, संत और तपस्वी
जो व्यक्ति संयमित जीवन जीते हैं, जैसे कि ब्राह्मण, संत, या तपस्वी, उन्हें ऐसे शोकपूर्ण आयोजनों से दूर रहने की सलाह दी जाती है. वे सांसारिक कर्मों से निवृत्त होते हैं और मृत्युभोज जैसे कर्मकांडों से स्वयं को अलग रखते हैं.
बीमार या दुर्बल व्यक्ति
शारीरिक रूप से अस्वस्थ या कमजोर लोगों को भी मृत्युभोज में भोजन नहीं करना चाहिए. वहां का वातावरण स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता और यह उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है.
नवविवाहित स्त्री-पुरुष
नवविवाह एक पवित्र और शुभ संस्कार होता है, जबकि मृत्युभोज को अशुभ कर्मकांडों में गिना जाता है. इसलिए नवविवाहित दंपतियों को ऐसे आयोजनों से दूर रहना चाहिए ताकि उनके जीवन की शुभ शुरुआत पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े.
जिनके घर में हाल ही में मृत्यु हुई हो
अगर किसी व्यक्ति के घर में हाल ही में मृत्यु हुई हो और वे सूतक (अशौच) काल में हों, तो उन्हें दूसरे के मृत्युभोज में शामिल नहीं होना चाहिए. शास्त्रों में यह वर्जित बताया गया है.
मृत्युभोज के बारे में श्रीकृष्ण ने क्या कहा है?
मृत्युभोज में खाना सही है या नहीं, इसका जवाब बहुत हद तक महाभारत के एक प्रसंग से मिलता है। इस प्रसंग के अनुसार, महाभारत का युद्ध शुरू होने ही वाला था। युद्ध को टालने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर संधि करने का आग्रह किया और दुर्योधन के सामने युद्ध न करने का प्रस्ताव रखा लेकिन दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की एक ना सुनी। इससे श्री कृष्ण को काफी कष्ट हुआ। वह वहां से निकल गए। जाते समय दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से भोजन ग्रहण कर जाने को कहा लेकिन श्रीकृष्ण ने मना कर दिया। इससे दुर्योधन को बुरा लगा। इसपर श्रीकृष्ण ने कहा – “सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः।”
अर्थात, हे दुर्योधन! जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के मन में पीड़ा हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। महाभारत के इसी प्रसंग को ही मृत्युभोज से जोड़ा गया है जिसके अनुसार, अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद मन में अथाह पीड़ा होती है, परिवार के सदस्यों के मन में उस दौरान बहुत दु:ख होता है। वहीं दूसरी ओर मृत्युभोज में आमंत्रित लोग भी प्रसन्नचित होकर भोज में शामिल नहीं होते। ऐसा कहा गया कि इससे उर्जा का विनाश होता है।
निष्कर्ष: मृत्युभोज जैसे आयोजन अत्यंत पवित्र होते हैं, लेकिन उनमें भागीदारी के लिए कुछ धार्मिक नियमों और शुचिता का पालन आवश्यक है. उपरोक्त व्यक्तियों को मृत्युभोज में सम्मिलित होने या भोजन ग्रहण करने से बचना चाहिए, ताकि धर्म सम्मत परंपराएं ससम्मान निभाई जा सकें.
यह भी पढ़ें: धर्मांतरण कराने वाले को अब सीधे फांसी, बीजेपी शासित इस राज्य में बहुत बड़ा फैसला
यह भी पढ़ें: ऐसा प्यार कहाँ: नींद में सोए दंपति को एक साथ आया हार्ट अटैक, दोनों ने एक साथ दुनिया को कहा अलविदा

Editor in Chief