इजराइली हमले के बाद पकड़े गये जासूसों को ईरान में मिल रही सीधे फांसी…जबकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत में पकड़े गए जासूसों का अब तक दाखिल ही नहीं हुआ आरोप पत्र

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नई दिल्ली/स्वराज टुडे: नौसेना भवन में काम करने वाले एक कर्मचारी को पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले भी हाल ही में दुश्मन देश के लिए जासूसी करते कई लोग गिरफ्तार किये गये।

चंद पैसों के लिए अपनी मातृभूमि से गद्दारी

बड़ी बात यह है कि इन जासूसों ने भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव के दौरान दुश्मन को भारतीय सैन्य बलों से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां मुहैया कराईं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब देशवासियों के मन में पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग जोर पकड़ रही थी और सीमा पार जाकर आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने के लिए लोगों का खून खौल रहा था उसी समय कुछ लोग ऐसे भी थे जोकि चंद पैसों के लिए अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी कर रहे थे।

जासूसी किसी भी राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा

देखा जाये तो जासूसी, किसी भी राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा होती है। यह न केवल राष्ट्रीय गोपनीयता को भंग करती है बल्कि सामरिक और रणनीतिक हितों को भी नुकसान पहुँचाती है। हाल ही में पाकिस्तान के लिए जासूसी करते हुए पकड़े गये लोगों की गिरफ्तारी ने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि जासूसी के अपराधियों को क्या सजा दी जानी चाहिए और अन्य देशों में ऐसे मामलों में अपराधी को कैसे दंडित किया जाता है?

जासूसी में पकड़े गए लोगों के लिए भारत में क्या है सजा का प्रावधान

हम आपको बता दें कि भारत में जासूसी से जुड़े मामलों को मुख्य रूप से “आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923” (Official Secrets Act, 1923) के तहत देखा जाता है। इस कानून के तहत जो कोई भी भारत की सुरक्षा, संप्रभुता, या विदेशी संबंधों से जुड़ी गुप्त जानकारी बिना अधिकार के साझा करता है, वह जासूस की श्रेणी में आता है। दोषी पाए जाने पर उसे 14 वर्ष तक की कारावास की सजा दी जा सकती है। साथ ही यदि मामला विशेष रूप से संवेदनशील हो या युद्धकालीन हो, तो सजा आजीवन कारावास तक हो सकती है। इसके अतिरिक्त, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 121 से 124A तक देशद्रोह, युद्ध छेड़ने और दुश्मन की सहायता करने जैसे अपराधों को भी शामिल करती है।

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वहीं भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 152 भारत की प्रभुता, एकता या अखंडता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों को कवर करती है। इसमें जासूसी जैसे अपराध भी शामिल हैं और सजा के रूप में मृत्युदंड या आजीवन कारावास तक हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने या सैन्य जानकारी साझा करने में शामिल है, तो उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

सबसे बड़ा सवाल, सजा देने में हमारे देश मे ही इतना विलंब क्यों ?

लेकिन यहां सवाल उठता है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद से अब तक जितने भी जासूसों की गिरफ्तारी हुई उसमें से सजा कितनों को हुई? हम आपको बता दें कि ईरान पर दो सप्ताह पहले हुए इजराइली हमलों के बाद से वहां कई लोगों को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर फांसी दी भी जा चुकी है और अपने यहां अभी किसी भी जासूस के खिलाफ आरोपपत्र तक दायर नहीं हुआ है। सवाल किसी अन्य देश की कानूनी प्रक्रिया और अपने देश की कानूनी प्रक्रिया की तुलना का नहीं है। बात यह है कि देश के साथ गद्दारी करने वालों को सजा देने में विलंब क्यों किया जाता है?

जिन देशों में खौफनाक सजा वहां पैदा ही नहीं होते गद्दार

भारत सरकार को यह भी देखना चाहिए कि चीन में कोई अपने ही देश की जासूसी क्यों नहीं करता? इजराइल में कोई अपने ही देश की जासूसी क्यों नहीं करता? उत्तर कोरिया में कोई अपने ही देश की जासूसी क्यों नहीं करता? ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां जासूसी करने पर कड़ी सजा मिलती है। अमेरिका में जासूसी अधिनियम के तहत 20 वर्ष तक की सजा और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने पर मृत्युदंड भी संभव है तो चीन में जासूसी को राजद्रोह माना जाता है और दोष सिद्ध होने पर आजीवन कारावास या मृत्युदंड मिलता है। रूस में जासूसी पर 10 से 20 वर्ष तक की सजा और विदेशी एजेंसियों से संपर्क साबित होने पर रूह को कंपाने वाली कठोरतम सजा मिलती है। ईरान में राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में अधिकतर मृत्युदंड ही दिया जाता है। वहीं इज़राइल में जासूसी को राष्ट्रीय खतरे के रूप में देखा जाता है और कड़ी सजा तथा दीर्घकालिक कारावास का प्रावधान है।

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भारत सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत

यह सही है कि भारत एक लोकतांत्रिक और विधिपालक राष्ट्र है, लेकिन जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की हो तो कानून के दायरे में कठोरता आवश्यक है। जासूसी के दोषियों को ऐसा दंड मिलना चाहिए जो न केवल न्याय सुनिश्चित करे बल्कि भविष्य में किसी को भी ऐसा अपराध करने से भी रोके। साथ ही, सरकार को आंतरिक और बाहरी खुफिया तंत्र को मजबूत बनाकर ऐसे अपराधों की समय रहते पहचान करने की दिशा में काम करना चाहिए। सरकार को जासूसी जैसे अपराधों के मामलों में निष्कर्ष तक पहुँचने की प्रक्रिया तेज करनी चाहिए और यदि दोष सिद्ध हो, तो सख्त सजा सुनिश्चित करनी चाहिए। सरकार को संवेदनशील मामलों के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतें भी बनानी चाहिए। जिस तरह मोदी सरकार आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चल रही है उसी तरह भारत के खिलाफ जासूसी करने वालों को भी कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनानी होगी। इससे एक बड़ा और कड़ा संदेश जायेगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

संदिग्ध व्यक्तियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी हर नागरिक की

बहरहाल, सरकार के साथ ही नागरिकों को भी निगरानी बढ़ानी चाहिए। नागरिक अपने आसपास ही नहीं बल्कि अपने परिजनों पर भी नजर रख सकते हैं। उत्तर प्रदेश के शामली में एक महिला ने जो उदाहरण स्थापित किया है उसे सभी अपना सकते हैं। हम आपको बता दें कि शामली में एक महिला ने अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उसने उस पर सरकारी दस्तावेज़ों की जालसाजी और संभावित देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है। देखा जाये तो नौसेना के पकड़े गये कर्मचारी के परिजनों या उससे पहले हाल में गिरफ्तार जासूसों के परिजनों ने भी अचानक बढ़ी आय और संदिग्ध वार्तालाप जैसे पहलुओं पर गौर करके पुलिस को सूचित किया होता तो आज उनके लिए शर्मसार करने वाली स्थिति नहीं बनती।

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दीपक साहू

संपादक

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