नई दिल्ली/स्वराज टुडे: भारत के मत्स्य और तटीय संसाधन न केवल देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण रोजगार का आधार हैं, बल्कि यह क्षेत्र आर्थिक आत्मनिर्भरता और जैव विविधता संरक्षण की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बनता जा रहा है। देश की भौगोलिक विशेषताओं, विशाल समुद्री क्षेत्र और प्रचुर अंतर्देशीय जल संसाधनों ने इसे वैश्विक मत्स्य उत्पादन के मानचित्र पर एक शक्तिशाली उपस्थिति प्रदान की है।
समुद्र और नदियों का समन्वित योगदान
भारत का 11,099 किलोमीटर लंबा समुद्र तट और 20.20 लाख वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) देश को समुद्री मत्स्य पालन में एक विशिष्ट स्थान देता है। इसके साथ ही 5.30 लाख वर्ग किलोमीटर का महाद्वीपीय शेल्फ भारत को विश्व के प्रमुख मत्स्य उत्पादक देशों में स्थापित करता है।
इसी प्रकार, अंतर्देशीय संसाधनों में 1.90 लाख किमी लंबी नदियाँ और नहरें, 31.50 लाख हेक्टेयर जलाशय, 22.12 लाख हेक्टेयर टैंक व तालाब, 14.12 लाख हेक्टेयर खारा जल और 7.43 लाख हेक्टेयर बील/ऑक्सबो झीलें इस क्षेत्र की संभावनाओं को और व्यापक बनाती हैं।
उत्पादन में वृद्धि और विविधता का संतुलन
भारत की कुल मत्स्य और जलीय कृषि उत्पादन वर्ष 2025 तक 184.02 लाख टन को पार कर चुकी है। इसमें अंतर्देशीय संस्कृति का योगदान 139.07 लाख टन तथा समुद्री पकड़ से 44.95 लाख टन उत्पादन होता है। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि भारत में अब केवल तटीय क्षेत्र ही नहीं, बल्कि अंतर्देशीय जल स्रोत भी उत्पादन के प्रमुख केंद्र बन चुके हैं।
उत्पादन के स्रोतों की बात करें तो:
● 41% योगदान खारे जल क्षेत्रों से,
● 34% नदियों और नहरों से,
● 58% टैंक और तालाबों से,
और 37% जलाशयों से प्राप्त हो रहा है।
यह विविधता भारतीय मत्स्य क्षेत्र की जीवंतता और लचीलापन दर्शाती है।
सहकारिता: भविष्य की कुंजी
देश में मत्स्य सहकारिता आंदोलन को बल देने में सहकार भारती की भूमिका सराहनीय है। यह संगठन न केवल किसानों और मत्स्यपालकों को संगठित कर रहा है, बल्कि उन्हें बाजार, प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और सरकारी योजनाओं से जोड़कर आर्थिक रूप से सक्षम बना रहा है।
हाल ही में भोपाल में सम्पन्न राष्ट्रीय मत्स्य प्रकोष्ठ अभ्यास वर्ग में 31 राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जहाँ मत्स्य सहकारी समितियों की शक्ति और दिशा को लेकर ठोस कार्ययोजना बनाई गई।
राज्यवार नेतृत्व और समन्वय
भारत के पांच राज्य – आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, ओडिशा और गुजरात – देश के कुल मत्स्य उत्पादन में 57% से अधिक का योगदान दे रहे हैं। यह न केवल इन राज्यों की जल संसाधनों पर आधारित नीति की सफलता दर्शाता है, बल्कि इस क्षेत्र में राज्यीय नेतृत्व की आवश्यकता और क्षमताओं को भी इंगित करता है।
नीली क्रांति और सरकारी योजनाएं
भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही नीली क्रांति और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) जैसे कार्यक्रम इस क्षेत्र में व्यावसायिकता, अनुसंधान, जैव सुरक्षा, और निर्यात बढ़ोतरी को सुनिश्चित करने में मदद कर रहे हैं। इससे मछुआरों की आमदनी दोगुनी करने की दिशा में सार्थक प्रगति हो रही है।
निष्कर्ष: समुद्री संकल्प से आत्मनिर्भर भारत की ओर
भारतीय मत्स्य और तटीय क्षेत्र केवल आर्थिक विकास का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह क्षेत्र ग्रामीण भारत के जीवन, स्वास्थ्य और संस्कृति से भी गहराई से जुड़ा है। जब सहकारिता, नीति, विज्ञान और समाज मिलकर कार्य करते हैं, तब एक ऐसा पारिस्थितिकीय मॉडल उभरता है, जो भारत को न केवल खाद्य और पोषण सुरक्षा देता है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी साकार करता है।
घनश्याम तिवारी
(प्रदेश संयोजक पैक्स प्रकोष्ठ सहकार भारती छत्तीसगढ़)

Editor in Chief