छत्तीसगढ़
रायपुर/स्वराज टुडे: प्रदेश में बढ़ती भीषण गर्मी, चिलचिलाती धूप और लू लगने की आशंका से विद्यार्थियों को राहत देने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 25 अप्रैल से 15 जून तक सभी शासकीय, अशासकीय, अनुदान प्राप्त एवं गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों में ग्रीष्मकालीन अवकाश घोषित कर दिया गया है । वहीं आदेश में ये भी स्पष्ट कर दिया गया है कि शिक्षकों पर यह आदेश लागू नहीं होगा।
अब यहां सवाल उठता है कि जब स्कूलों में बच्चों की चहलकदमी ही नहीं होगी तो फिर शिक्षकों की उपस्थिति का औचित्य क्या रह जाता है? यह सवाल हर उस शिक्षक के मन में गूंज रहा है, जो निरर्थक रूप से स्कूल बुलाए जा रहे हैं। क्या शिक्षक विशेष मिट्टी के बनाए गए हैं जो उनके स्वास्थ्य पर भीषण गर्मी का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ? क्या आग उगलती धूप का उनके शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ? अभी तापमान इतना ज्यादा है कि लोग घरों में दुबकने को मजबूर हो गए हैं। ऐसे में शिक्षकों को स्कूल बुलाया जाना कहां तक उचित है ?
विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकों को अपनी समस्या शाला प्रबंधन अथवा स्कूल शिक्षा विभाग के समक्ष रखने में झिझक हो रही है क्योंकि उन्हें भय है कि शिकायत करने पर कहीं उनके विरुद्ध ही नोटिस जारी ना कर दिया जाए।
सरकार से निवेदन है कि वह अपनी वर्तमान नीति पर पुनर्विचार करे। जो शिक्षक पूरी निष्ठा से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं, उनके स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का भी सम्मान होना चाहिए। बच्चों की अनुपस्थिति में शिक्षकों को स्कूल बुलाया जाना न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि यह उनके स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ है।
*सुष्मिता मिश्रा की रिपोर्ट*
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