पारिवारिक कलह से व्यथित पत्रकार ने मांगी इच्छा मृत्यु; पत्नी और ससुराल पक्ष पर झूठे आरोप लगाकर फंसाने का आरोप

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छत्तीसगढ़
सारंगढ़/स्वराज टुडे: सारंगढ़ जिले मे एक सनसनीखेज मामला सामने आया है जहाँ अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति के जिला कोषाध्यक्ष पिंगध्वज खांडेकर ने अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों से आहत होकर कलेक्टर को आवेदन देकर इच्छा मृत्यु की मांग की है।

ग्राम हिर्री निवासी पिंगध्वज ने बताया कि उनका प्रेम विवाह करीब 13 वर्ष पूर्व सांया खांडे से हुआ था, जिनसे उनके दो बच्चे हैं। लेकिन विगत कई वर्षों पारिवारिक विवाद इतना गहराया कि पत्नी और ससुराल पक्ष ने उन्हें मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया है।

पत्नी पर गंभीर आरोप

पत्रकार ने अपने आवेदन में बताया कि 25 अक्टूबर 2025 की रात करीब 8:30 बजे उसकी पत्नी ने घर में विवाद कर उसे घर से निकाल दिया। इसके बाद जब वह पत्नी को मनाने गया तो नहीं आने की स्थिति में समझाइश तौर पर उसे 2-4 थप्पड़ मारा गया और घर वापस लाया गया। अगले दिन रात को लगभग 9:00 बजे पत्नी घर से निकल भागी और दोनों बच्चे को भी लेकर भागने का प्रयत्न किया लेकिन बच्चों ने अपनी मां के साथ जाने से इनकार कर दिया। और भाग कर सर्वप्रथम अपने मायके के पूर्व सरपंच के घर में रुकी, जहां उसकी मुलाकात उसके भाई प्रवीण मल्होत्रा से हुई फिर वहां से जाकर पेंड्रावन सरसिंवा में अपने बहन दीपक बघेल के यहां अपने मां श्यामबाई के साथ रह रही थी

पत्रकार ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी, ससुर, साला और साली ने मिलकर उसके खिलाफ झूठे केस दर्ज कराने की साजिश रची है। इतना ही नहीं, ससुराल पक्ष ने राजनीतिक संबंधों का दुरुपयोग कर उसे बदनाम करने का प्रयास भी किया।
इच्छा मृत्यु की मांग

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मानसिक रूप से टूट चुके पिंगध्वज ने अपने पत्र में लिखा —“यदि मुझे न्याय नहीं मिला तो मैं अपने जीवन का अंत करने के लिए विवश हो जाऊँगा। मेरी मौत की जिम्मेदारी मेरी पत्नी और ससुराल पक्ष की होगी।”

उन्होंने राष्ट्रपति, राज्यपाल और पुलिस अधीक्षक को प्रतिलिपि भेजकर न्याय की गुहार लगाई है।

क्षेत्र में चर्चा का विषय

पत्रकार का यह आवेदन पूरे सारंगढ़ -बिलाईगढ़ अंचल में चर्चा का विषय बन गया है। स्थानीय पत्रकार संगठनों ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन से त्वरित जांच की मांग की है।

अब देखना यह होगा कि प्रशासन पीड़ित पत्रकार को न्याय दिलाने के लिए क्या कदम उठाता है या फिर एक और आवाज़ व्यवस्था की अनसुनी का शिकार बन जाती है।

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दीपक साहू

संपादक

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