Chhaava Review: सालों में बनती हैं ऐसी कमाल की फिल्में, विक्की कौशल के करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस, अक्षय खन्ना व विनीत सिंह भी छाए

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मुम्बई/स्वराज टुडे: जब फिल्म खत्म हो और आपके दाएं तरफ बैठे दर्शक की आंख में आंसू हों और बाएं तरफ बैठा दर्शक शॉक में हो तो समझिए क्या ही कमाल का सिनेमा बना होगा. ऐसी कमाल की फिल्में सालों में बनती हैं. विक्की कौशल वो एक्टर बनते जा रहे हैं जिनका न सिर्फ स्टारडम बढ़ रहा है बल्कि वो एक एक्टर के तौर पर भी खुद को आगे बढ़ा रहे हैं.

वो नया सीख रहे हैं, नया कर रहे हैं, अपने क्राफ्ट को लेकर उनमें जो गंभीरता है वो उन्हें एक नए मुकाम पर ले आई है और ‘छावा’ वो करेगी जिसे किसी के भी करियर में करिश्मा कहा जाता है. ये फिल्म कमाल की है और इस फिल्म में विक्की ने अपनी आत्मा डाल दी है. खुद को झोंक दिया है और ये बात आप हर फ्रेम में महसूस करते हैं. ये फिल्म 3 कलाकारों की वजह से खास है विक्की, अक्षय खन्ना और विनीत कुमार सिंह.

क्या है कहानी की विषयवस्तु

ये कहानी है छत्रपति संभाजी महाराज की. कैसे छत्रपति शिवाजी महाराज के जाने के बाद जब मुगलों के हौसले बुलंद होने लगे तो छत्रपति संभाजी महाराज ने उनके नापाक इरादों को पूरा नहीं होने दिया. यहां कहानी अहम है, उनकी महानता, वीरता, कौशल अहम है. इस फिल्म के जरिए हमारे इतिहास की ये गौरव गाथा देश विदेश तक पहुंचेगी, करोड़ों लोग जानेंगे कि छत्रपति संभाजी महाराज कौन हैं, तो अगर किसी चीज पर थोड़ा बहुत एतराज भी हो तो उसे नजरअंदाज कर देना चाहिए क्योंकि फिल्म का मकसद बड़ा है, नीयत साफ है और स्केल ग्रैंड है.

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कैसी है फिल्म 

एक सीन में जब छत्रपति संभाजी महाराज की पत्नी के भाई छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में कुछ उल्टा कहते हैं तो संभाजी गरज उठते है, इस सीन में विक्की की पावर ऐसी है कि थियेटर में बैठा दर्शक कांप जाता है. आखिर में औरंगजेब की बेटी कहती है ‘संभा अपनी मौत का जश्न मनाकर चला गया और हमें छोड़ गया अपनी जिंदगी का मातम मनाने. ये बताता है कि संभाजी कितने बड़े वीर थे.

ये फिल्म देखते हुए आपको लगेगा कि आप इतिहास की उन गलियों में वापस चले गए हैं, आप छत्रपति संभाजी महाराज के शौर्य को, उनकी महानता को, उनकी वीरता को बड़े करीब से महसूस करेंगे. फिल्म का हर एक फ्रेम आपको बांधकर रखेगा, पलक झपकने का मौका ये फिल्म नहीं देगी, लड़ाई के सीन ग्रैंड हैं. नकली नहीं लगते. परफॉर्मेंस इस फिल्म को एक अलग स्केल पर ले जाती हैं. आप इतिहास की इस कहानी को जानकर गर्व महसूस करते हैं कि हम उस देश में रहते हैं जहां छत्रपति संभाजी महाराज जैसे वीर पैदा हुए. आखिरी का आधा घंटा इतना ज्यादा हिला डालेगा कि आपको नॉर्मल होने में वक्त लगेगा.

विक्की कौशल की धमाकेदार एक्टिंग

विक्की कौशल ने अपने करियर का बेस्ट दिया है. वो हर फिल्म में खुद को और आगे ले जा रहे हैं. अपने काम को वो कितनी गंभीरता से लेते हैं इसका अंदाजा आपको ये फिल्म अच्छे से से देती है. उनकी स्क्रीन प्रेजेंस में एक करिश्मा नजर आता है. डायलॉग डिलीवरी कमाल की है. हर तरह के इमोशन को विक्की ने जिया है, और ये फिल्म यह भरोसा भी देती है कि अगली फिल्म में विक्की इससे भी बेहतर करेंगे.

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ये उनके स्टारडम को कई लेवल ऊपर ले गई है, रश्मिका मंदाना का काम अच्छा है, वो स्क्रीन पर एक अलग करिश्मा पैदा करती हैं. इस किरदार के लिए उनकी मेहनत नजर आती है. अक्षय खन्ना को देखकर लगता है कि अगर औरंगजेब होता तो खुद कन्फ्यूज हो जाता की असली वाला कौनसा है. उनका काम इतना कमाल का है. विनीत कुमार सिंह शानदार हैं. कवि कलेश के किरदार में उन्होंने जान डाल दी है. क्लाइमैक्स से पहले उनके सीन पर गजब तालियां बजती हैं.

फ़िल्म का जबरदस्त डायरेक्शन 

इस फिल्म को लक्ष्मण उतेकर ने डायरेक्ट किया है. हिंदी मीडियम, लुका छिपी, मिमी जैसी फिल्में बना चुके लक्ष्मण ने यहां कुछ अलग काम किया है. इतिहास के ऐसे वीर पर फिल्म बनाना आसान नहीं होता. थोड़ा भी यहां वहां हुआ तो आप पर सवाल खड़े हो जाते हैं.

लक्ष्मण ने यहां अपना काम ईमानदारी से किया है. ऐसे वीर की कहानी को लोगों तक पहुंचाने के लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए और तारीफ फिल्म का बनाने वाले मैडॉक फिल्म्स और दिनेश विजान की भी होनी चाहिए कि उन्होंने ऐसी कहानी को चुना और उसे सही आकार दिया.

म्यूजिक 

एआर रहमान का म्यूजिक अच्छा है, फिल्म के फील के साथ ठीक-ठाक लगता है लेकिन ये और बेहतर हो सकता था. कुल मिलाकर ये फिल्म हर हाल में देखिए.

रेटिंग – 4.5 स्टार्स

कोरबा जिले के छबिग्रहों में प्रदर्शन

कोरबा जिले के प्रमुख चित्रा मल्टीप्लेक्स एवं निहारिका मल्टीप्लेक्स छविग्रहों में फ़िल्म छावा का प्रदर्शन जारी है । दोनों छविग्रहों में दर्शकों की जबरदस्त भीड़ देखी जा रही है । दर्शकों ने फिल्म का रिव्यू देते हुए कहा कि फिल्म रोंगटे खड़े कर देने वाली है। इस फिल्म को हर हिंदुस्तानियों को देखना चाहिए।

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दीपक साहू

संपादक

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