5 साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में दोषी को हाईकोर्ट से मिली बड़ी राहत, फाँसी की सजा को उम्र कैद में बदला, आरोपी की माँ को भी किया दोषमुक्त

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नई दिल्ली/स्वराज टुडे: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में पांच साल की एक बच्ची के रेप और हत्या के मामले में एक शख्स की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। इस दौरान हाईकोर्ट ने उसकी मां को भी सभी आरोपों से बरी कर दिया है।

हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते समय कुछ अहम टिप्पणियां की है। अदालत ने कहा कि महिला अपने ‘राजा बेटे’ को बचाने की कोशिश कर रही थी और भले ही यह सही ना हो लेकिन इसके लिए कानून में कोई सजा नहीं है।

सबूत मिटाने घबराहट में कर दी थी हत्या- हाईकोर्ट

इससे पहले हाईकोर्ट ने दोषी की सजा को करते हुए उसे बिना किसी छूट के 30 साल की जेल के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई। फैसला सुनाते हुए जस्टिस अनूप चिटकारा और सुखविंदर कौर की बेंच ने कहा ने कहा कि हत्या, जाहिर तौर पर, रेप के सबूत मिटाने की घबराहट में हुई थी, ना कि पहले से सोची-समझी साजिश थी। हालांकि कोर्ट ने जुर्माने की रकम बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दी।

क्या मामला?

इससे पहले मई 2018 में वीरेंद्र उर्फ भोलू ने 5 साल की लड़की के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी थी। भोलू बच्ची के पिता का कर्मचारी था और टेंट लगाने का काम करता था। 31 मई 2018 को लड़की के पिता और वीरेंद्र थोड़ी दूर टेंट लगाने गए थे। वीरेंद्र पीड़ित लड़की के पिता का खाना लेने के लिए उसके घर गया। वापस आते समय, लड़की वीरेंद्र के साथ थी। जब लड़की के पिता खाने के बाद सो गए, तो वीरेंद्र उसे अपने घर ले गया, जहां उसने उसके साथ दुष्कर्म किया। फिर उसने किचन के चाकू से बच्ची की हत्या कर दी। इसके बाद उसने लाश को एक कंटेनर में छिपा दिया जहां उसकी मां आटा रखती थी। हालांकि तब उसकी मां घर पर नहीं थी।

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2020 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी को फाँसी और सहयोगी मां को सुनाई थी कठोर सजा 

घटना के बाद 2020 में एक ट्रायल कोर्ट ने वीरेंद्र उर्फ ​​भोलू को मौत की सजा और उसकी मां कमला देवी को साजिश और सबूत मिटाने के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि हाईकोर्ट ने अपने 23 दिसंबर के फैसले में कहा कि यह साबित नहीं किया गया कि दोषी में सुधार की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दोषी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और जेल में उसका आचरण गलत नहीं है, जिससे सुधार संभव है।

पितृसत्तात्मक सोच- HC

वहीं दोषी की मां, कमला देवी को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा, “दुर्भाग्य से भारत के इस हिस्से में, परिवार के लोग खासकर मांओं को अपने प्यारे बेटों से इतना अंधा प्यार होता है कि वे चाहे कितने भी बुरे या बदमाश क्यों न हों, उन्हें फिर भी ‘राजा बेटा’ ही माना जाता है। कमला देवी को जब पता चला कि उनका राजा-बेटा, भोलू, उतना भोला नहीं था जितना उसके नाम से लगता था और उसने पांच साल की एक बच्ची पर हमला करके उसे बेरहमी से मार डाला था तो उन्होंने पुलिस को बताने या लाडो के लिए इंसाफ मांगने के बजाय अपने बेटे को बचाने को प्राथमिकता दी। यह सामाजिक रवैया, हालांकि बहुत बुरा है, नया नहीं है। यह इस इलाके की पितृसत्तात्मक सोच और संस्कृति में गहराई से बसा हुआ है।”

हाईकोर्ट ने आगे कहा, “कमला देवी की एकमात्र गलती यह है कि वह अपने राजा-बेटे को बचाने की कोशिश कर रही थी, जिसके लिए उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत सजा नहीं दी जा सकती, भले ही उनका व्यवहार कितना भी निंदनीय क्यों न हो।”

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किस दिशा में जा रही न्यायपालिका

निर्भया कांड के बाद रेप और हत्या के मामले में सख्त कानून बनाये गए थे ताकि ना केवल ऐसे अपराधों पर अंकुश लगे बल्कि ऐसे कुत्सित मानसिकता वालों को भी एक सबक मिल सके। लेकिन सच्चाई ये है कि धरातल पर अब भी न्यायपालिका की व्यवस्था नहीं सुधरी है। साल 2018 में घटी इस घटना के दो साल बाद 2020 में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपराध को गंभीर मानते हुए दोषी को मौत की सजा सुनाई थी । वहीं दोषी की माँ को अपने बेटे को बचाने हेतु सबूत मिटाने का दोषी पाते हुए कठोर सजा का ऐलान किया था। लेकिन कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देते हुए मामले की सुनवाई हाइकोर्ट में शुरू हुई , जहां 5 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद अब कहीं जाकर फैसला आया जिसमें आरोपी माँ कमला देवी को बाइज्जत बरी कर दिया गया और दोषी वीरेन्द्र उर्फ भोलू के लिए फाँसी की सजा को पलटते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। यहाँ सवाल उठना लाजिमी है कि ये घटना एक गरीब मजदूर की बच्ची के साथ हुआ अगर यही घटना किसी हाई प्रोफाइल परिवार की बेटी के साथ हुआ होता तो क्या कोर्ट का यही फैसला होता ? इस मामले में आपकी क्या राय हैं , अपना विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

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दीपक साहू

संपादक

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