कर्ज़ के मायाजाल में फंसी मोहन सरकार, मध्यप्रदेश की जनता पर बढ़ता बोझ, आखिर कब तक कर्ज लेकर रेवड़ियां बांटेगी मोहन सरकार? सितम्बर 2025 में ही सरकार ने लिया 4500 करोड़ का भारी-भरकम कर्ज़

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मध्यप्रदेश
भोपाल/स्वराज टुडे:
मध्यप्रदेश की राजनीति में आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर डॉ. मोहन यादव की सरकार किस दिशा में प्रदेश को ले जा रही है। जनता ने जिन सपनों के साथ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंपी थी, वह क्या अब सिर्फ़ लोन और कर्ज़ के आंकड़ों में बदलकर रह जाएंगे? हाल ही में सरकार ने एक बार फिर 03 हजार करोड़ रुपये का नया लोन लिया है। यह कोई मामूली घटना नहीं है, बल्कि एक गहरी चिंता का विषय है। इससे पहले सितम्बर 2025 में ही सरकार ने 4500 करोड़ रुपये का भारी-भरकम कर्ज़ लिया था। यानी कुछ ही महीनों में 7500 करोड़ से अधिक का कर्ज़ प्रदेश के सिर पर चढ़ गया। यह संभवतः पहली बार हो रहा है कि किसी भाजपा शासित राज्य की सरकार हर माह लोन लेने की आदत पाल चुकी है। यह स्थिति न केवल वित्तीय अनुशासन पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है बल्कि यह भी संकेत देती है कि प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है। जब किसी सरकार को बार-बार कर्ज़ लेना पड़े तो इसका सीधा अर्थ है कि राजस्व संग्रहण और वित्तीय प्रबंधन पूरी तरह विफल हो चुका है।

जनता पर बढ़ता दबाव

हर बार जब सरकार कर्ज़ लेती है तो अंततः उसका बोझ जनता पर ही पड़ता है। ब्याज का भुगतान जनता की गाढ़ी कमाई से वसूले गए टैक्स से ही होता है। सवाल यह उठता है कि क्या मोहन सरकार प्रदेश की जनता को एक सुनियोजित मायाजाल में फंसा रही है? जहां योजनाओं और विकास के नाम पर लोन लिया जाता है लेकिन असलियत में उसका लाभ जनता को दिखाई नहीं देता।

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आखिर योजनाओं की क्या है सच्चाई?

मोहन यादव के नेतृत्व में सरकार ने अब तक कोई ऐसी योजना लागू नहीं की है, जिसे मौलिक कहा जा सके। अधिकांश योजनाएँ वही हैं जो शिवराज सिंह चौहान के लंबे कार्यकाल में पहले ही घोषित और प्रारंभ हो चुकी थीं। प्रश्न यह है कि जब नई योजनाएँ शुरू ही नहीं की गईं, तो फिर इतनी बड़ी मात्रा में लोन की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? क्या यह धनराशि महज़ घोषणाओं और प्रचार-प्रसार पर खर्च की जा रही है?

वित्तीय कुप्रबंधन का उदाहरण

एक जिम्मेदार सरकार का काम होता है कि वह संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करे। लेकिन यहां उल्टा हो रहा है। हर महीने नए कर्ज़ से सिर्फ़ घाटे को ढकने की कोशिश हो रही है। यह स्थिति वैसी ही है जैसे कोई व्यक्ति पुराना कर्ज़ चुकाने के लिए नया कर्ज़ ले और अंततः पूरी तरह कर्ज़ के जाल में फंस जाए। मध्यप्रदेश पहले से ही राजस्व संग्रहण में पिछड़ा हुआ राज्य है। औद्योगिक निवेश की कमी, कृषि पर अत्यधिक निर्भरता और बेरोज़गारी जैसी चुनौतियाँ पहले से मौजूद हैं। ऐसे में लगातार कर्ज़ लेना आने वाले वर्षों में प्रदेश की अर्थव्यवस्था को और कमजोर कर देगा। यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाली पीढ़ियाँ भी इस बोझ से मुक्त नहीं हो पाएंगी।

जनता के साथ मोहन सरकार का धोखा

चुनाव से पहले जो वादे किए गए थे, उनमें विकास, रोजगार, किसानों की समृद्धि और युवाओं को अवसर देने की बातें शामिल थीं। लेकिन अब तक जो परिदृश्य सामने आया है, उसमें सिर्फ़ कर्ज़ की कहानी है। जनता यह पूछने के लिए विवश है कि आखिर उसकी मेहनत की कमाई किस दिशा में खर्च हो रही है। क्या यह जनता के साथ एक बड़ा धोखा नहीं है? मोहन सरकार ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया कि लिए गए कर्ज़ का उपयोग किन योजनाओं के लिए हो रहा है। न कोई सार्वजनिक विवरण, न ही कोई पारदर्शी रिपोर्ट जनता के सामने रखी गई। यदि सब कुछ विकास और कल्याणकारी योजनाओं में जा रहा है तो इसमें छुपाने जैसा क्या है? जवाबदेही से बचने की यह कोशिश सरकार की नीयत पर सवाल उठाती है। राजनीति में बने रहने और जनता के बीच छवि गढ़ने के लिए सरकारें अक्सर दिखावटी कदम उठाती हैं। कहीं यह कर्ज़ लेना भी उसी महत्वाकांक्षा का हिस्सा तो नहीं? योजनाओं के नाम पर घोषणाएँ, कार्यक्रमों के नाम पर खर्च और असल मुद्दों को दरकिनार करना- यह सब एक गंभीर लक्षण है कि सरकार विकास की बजाय केवल राजनीतिक अस्तित्व बचाने में लगी हुई है।

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मध्यप्रदेश का भविष्य खतरे में

यदि यही क्रम चलता रहा तो कुछ ही वर्षों में मध्यप्रदेश की स्थिति वैसी हो सकती है जैसी कभी ग्रीस जैसे देशों की हो गई थी- जहाँ हर ओर सिर्फ़ कर्ज़ और दिवालियापन की बातें होती हैं। प्रदेश की आम जनता पहले ही महंगाई, बेरोज़गारी और मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रही है। ऐसे में कर्ज़ का बोझ उसे और अधिक दबा देगा। आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि डॉ. मोहन यादव की सरकार किस दिशा में जा रही है? क्या यह सरकार केवल कर्ज़ लेकर प्रदेश को भविष्य के संकट की ओर धकेल रही है, या फिर वास्तव में कोई ठोस विकास का खाका तैयार है? जब तक सरकार जनता को स्पष्ट जवाब नहीं देती, तब तक यह मानना ही पड़ेगा कि यह कर्ज़ का मायाजाल केवल जनता को दबाने और वास्तविक समस्याओं से ध्यान हटाने का प्रयास है। प्रदेश की जनता अब केवल वादों और नारों से संतुष्ट नहीं होगी। उसे चाहिए पारदर्शिता, जवाबदेही और ठोस विकास। यदि मोहन सरकार ने समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया तो इतिहास उसे केवल एक ऐसी सरकार के रूप में याद रखेगा जिसने प्रदेश को कर्ज़ के बोझ तले दबा दिया।

*विजया पाठक की रिपोर्ट*

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दीपक साहू

संपादक

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