छत्तीसगढ़
सूरजपुर/स्वराज टुडे: ‘अगर मैं नहीं बन पाई, तो क्या हुआ? अब मेरे पढ़ाए बच्चे अफसर बनेंगे!’ यह जज्बा है सूरजपुर कलेक्टोरेट में सहायक ग्रेड-2 के पद पर कार्यरत संगीता सोनी का, जो अपने जीवन के संघर्षों को ताकत में बदलकर जरूरतमंद बच्चों को अफसर बनाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रही हैं।
अपने वेतन का 60% गरीब बच्चों की शिक्षा में खर्च
संगीता अपने वेतन का 60 प्रतिशत हिस्सा गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने में खर्च कर रही हैं। सुबह ऑफिस जाने से पहले और शाम को लौटकर वह खुद क्लास लेकर विद्यार्थियों को सीजीपीएससी, व्यापम और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवा रही हैं। संगीता का मानना है कि योग्य छात्रों को सिर्फ सही मार्गदर्शन और समर्थन की जरूरत है।
दूरस्थ अंचल के बच्चों को ‘ऑनलाइन क्लास’ की सुविधा
जिन बच्चों के लिए जिला मुख्यालय तक आना संभव नहीं है, उन्हें संगीता ऑनलाइन क्लास के माध्यम से पढ़ाती हैं। ऑनलाइन क्लास में रोजाना 600 से अधिक विद्यार्थी जुड़ते हैं। ये क्लास न सिर्फ विषयों पर आधारित होती हैं, बल्कि छात्रों को मोटिवेशन, करियर गाइडेंस और संविधान, जनजाति अध्ययन जैसे विषयों की भी सरल और प्रभावशाली ढंग से शिक्षा दी जाती है।
बदकिस्मती ने तोड़ दिया डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना
बता दें कि संगीता खुद दो बार सीजीपीएससी का मेंस एग्जाम पास कर चुकी हैं। लेकिन परीक्षा के ठीक पहले उनके जीवन में ऐसा मोड़ आया जिसने सब कुछ बदल दिया। पति की असमय मृत्यु और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ ने उन्हें परीक्षा पूरी तरह से देने नहीं दिया। डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया, और वह अवसाद में चली गईं। मगर संगीता ने हार नहीं मानी। उस अवसाद से निकलने का रास्ता उन्होंने दूसरों की सफलता में खोजा। अब उनका मकसद है हर गरीब बच्चों को वह मंच देना, जो कभी पूरी तरह उन्हें खुद नहीं मिला।
असफलता ने संगीता को छात्रों का मार्गदर्शक बनाया
संगीता भले ही डिप्टी कलेक्टर नहीं बन पाईं, लेकिन अब दूसरे बच्चों को अफसर बनाने के लिए संगीता रात के 2 बजे तक ऑनलाइन क्लास के लिए कंटेंट तैयार करती है। जिससे बच्चों को आसान भाषा में संबंधित विषय समझ आ जाए । एनसीईआरटी की किताब की बेसिक जानकारी भी बच्चों को दे रहीं हैं। हिंदी माध्यम के बच्चों को विशेष लाभ मिल रहा है। सूरजपुर में प्रायोगिक परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए चलने वाले निशुल्क अरुणोदय क्लास में भी बच्चों को एक क्लास पढ़ाती हैं।
सुपर-30 की तर्ज पर बच्चों को पढ़ाने का लक्ष्य
संगीता अपने खर्च पर बच्चों को बेहतर तरीके से शिक्षा देने के लिए डिजीटल क्लास की भी तैयार कर रही है। आने वाले समय में संगीता ने सुपर-30 के तर्ज पर होनहार बच्चों का चयन कर उन्हें पूरी सुविधा देकर डिप्टी कलेक्टर बनाने का लक्ष्य रखा है।
जो मैं नहीं बन सकी अब मेरे शहर के बच्चे बनेंगे
संगीता गुजरे हुए वक्त को याद करते हुए कहती हैं कि मैं 2018 से घर में रहकर सीजीपीएससी की तैयारी कर रही थी। दो बार मेंस की परीक्षा पास की। 2024 में परीक्षा से पहले पति की मौत हो गई। मैं डिप्रेशन में चली गई और परीक्षा नहीं दे पाई। परीक्षा देने का यह अंतिम मौका था। मैं डिप्रेशन में रहीं। कुछ दिन बाद ऐसा लगा कि मेरी यह पढ़ाई व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। जो मैं नहीं बन सकीं वो मेरे शहर और गांव के बच्चे बनें, यही मेरी ख्वाइश है।
संगीता सोनी की ये पहल निश्चित ही समाज के उन युवाओं के लिए प्रेरणादायक है जो सीजीपीएससी अथवा यूपीएससी में असफल होने के बाद अपने जीवन से हताश हो जाते हैं । संगीता सोनी की कहानी ‘जहां चाह वहां राह’ का स्पष्ट संदेश देती है ।

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