
छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: होली रंगों, उमंग और उल्लास का त्योहार है, लेकिन छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का एक खरहरी गांव पिछले 150 सालों से इस त्योहार को नहीं मना रहा है. जहां देशभर में होली के रंग बिखरते हैं, वहीं इस गांव में ना तो रंग खेला जाता है और ना ही होलिका दहन किया जाता है.
76% साक्षरता दर होने के बावजूद, गांव के लोग एक पुराने अंधविश्वास का पालन कर रहे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है.
आखिर इस गांव में क्यों नहीं मनाई जाती होली?
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि करीब 150 साल पहले, होली के दिन गांव में भीषण आग लग गई थी. ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही गांव के बैगा (पुजारी) ने होलिका दहन किया, अचानक उसके घर में आग लग गई. देखते ही देखते ये आग पूरे गांव में फैल गई, जिससे काफी नुकसान हुआ. तब से, गांववालों ने मान लिया कि होली मनाने से गांव पर कोई बड़ा संकट आ सकता है और उन्होंने इसे पूरी तरह त्याग दिया.
आने वाली हर पीढ़ी निभा रही परंपरा
खरहरी गांव के युवा भी इस परंपरा को निभा रहे हैं. 11वीं कक्षा के छात्र नमन चौहान का कहना है कि हम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन फिर भी पूर्वजों की परंपरा का पालन कर रहे हैं. अगर गांव में होली खेली गई, तो नुकसान हो सकता है. हालांकि, कई युवा इसे अंधविश्वास मानते हैं लेकिन बुजुर्गों की बातों का सम्मान करते हुए वे इस परंपरा को निभाने पर मजबूर हैं.
देवी मड़वारानी की चेतावनी
छत्तीसगढ़ के इस गांव में होली ना मनाने के पीछे एक और धार्मिक मान्यता भी है. कहा जाता है कि देवी मड़वारानी ने सपने में आकर ग्रामीणों को चेतावनी दी थी कि इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाए, वरना बड़ा अपशगुन होगा. इसी डर के चलते आज तक गांव में होली नहीं मनाई जाती. गांव की एक महिला ने बताया कि शादी से पहले मैं होली खेलती थी, लेकिन जब से इस गांव में आई हूं, मैंने होली खेलना छोड़ दिया है.
क्या कभी टूटेगा अंधविश्वास?
साक्षरता बढ़ने और बदलते समय के बावजूद खरहरी गांव अब भी इस पुरानी परंपरा का पालन कर रहा है. जहां देशभर में होली के रंगों की धूम मची होती है, वहां इस गांव का माहौल फीका रहता है. हालांकि, आने वाली पीढ़ियां इस अंधविश्वास को तोड़कर होली का त्योहार मना पाएंगी या फिर ये परंपरा इसी तरह चलती रहेगी, ये तो आने वाला समय ही बताएगा.
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