नई दिल्ली/स्वराज टुडे: उसे फिल्मों का बड़ा चस्का था। इधर फिल्म रिलीज होती और उधर पहले दिन का पहला शो देखने वो सिनेमा हॉल के बाहर खड़ा नजर आता। पढ़ाई-लिखाई में उसकी दिलचस्पी ना के बराबर थी। लेकिन पिता के दबाव की वजह से वो स्कूल चला जाता था। पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा पढ़-लिखकर कुछ बन जाए। किसी तरह गांव के ही जूनियर हाई स्कूल से 8वीं पास की और जब वो 9वीं कक्षा में पहुंचा तो पिता को काम की वजह से बाहर जाना पड़ गया। अब उसे समझाने या रोकटोक करने वाला कोई नहीं था। नतीजा, 10वीं कक्षा में थर्ड डिवीजन के साथ वो बड़ी मुश्किल से पास हो पाया।
रिश्तेदारों ने ताने देने शुरू कर दिए, ये नहीं पढ़ पाएगा। आस-पड़ोस के लोग भी तंज कसते हुए कहने लगे कि इसे पढ़ाना बेकार है। लेकिन उसके पिता को उसपर पूरा भरोसा था। पिता ने उसे अपने पास ही बुला लिया और समझाया कि जिंदगी में अगर बदलाव लाना है, तो पढ़ना बहुत जरूरी है। उसके दिल को बात लग गई और उसने 12वीं सेकंड डिवीजन के साथ पास कर ली। बस यहीं से उसके करियर की गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली और यही लड़का एक दिन बिना यूपीएससी परीक्षा दिए ना केवल आईपीएस अधिकारी बन गया, बल्कि दो बार राष्ट्रपति पुलिस मेडल भी हासिल किया।
पिता ने कहा था, मेरे भरोसे का मान रखना
ये कहानी है अनिल कुमार राय की, जिन्होंने अपनी मेहनत के बल पर वो कर दिखाया, जिसकी कल्पना तक किसी ने नहीं की थी। 12वीं में उनके नंबर कुछ खास नहीं थे, लेकिन पिता का भरोसा साथ था। पिता ने कहा कि यहां तक पहुंच गए हो, अब और आगे पढ़ो और उन्होंने अनिल राय का एडमिशन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में करा दिया। इंडियन मास्टरमाइंड्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके पिता जब अनिल राय को पहले दिन यूनिवर्सिटी के गेट तक छोड़ने आए, तो भावुक हो गए और कहा- ‘खूब मेहनत करना और जो भरोसा मैंने तुम्हारे ऊपर किया है, उसे सही साबित करके दिखाना।’
पोस्ट ग्रेजुएशन में टॉप की यूनिवर्सिटी
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अनिल राय ने अपने पिता के शब्दों को सही साबित करके दिखा दिया। उन्होंने 71 फीसदी नंबरों के साथ ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। उनके पूरे गांव में शोर मच गया कि जो अनिल राय 10वीं में बड़ी मुश्किल से पास हुए थे, वो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छा गए हैं। हालांकि, ये केवल शुरुआत थी। पोस्ट ग्रेजुएशन का रिजल्ट आया तो अनिल ने पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप किया। उन्हें गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया गया। इसके बाद अनिल पीएचडी करना चाहते थे, लेकिन परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो रिसर्च के लिए इतना लंबा समय दे पाएं। उन्होंने यूजीसी स्कॉलरशिप के लिए आवेदन किया लेकिन 10वीं में कम नंबर की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिल पाई।
बिना यूपीएसी परीक्षा के बने आईपीएस
यहां अनिल राय के करियर ने एक नया मोड़ लिया। उन्होंने पीपीएस की परीक्षा दी और डीएसपी के पद पर सेलेक्ट हो गए। परिवार में खुशी का माहौल था और अनिल राय ने तय कर लिया कि वो अब यूपीएससी की परीक्षा देंगे। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। इसी दौरान उनके पति का निधन हो गया और परिवार की पूरी जिम्मेदारी अनिल के कंधों पर आ गईं। यूपीएससी की परीक्षा पास करने का उनका सपना टूट गया। हालांकि, डीएसपी के पद पर रहते हुए उनके काम ने उन्हें पहचान दी और साल 2002 में उन्हें आईपीएस कैडर प्रदान कर दिया गया।
क्लास के लिए घर से लेकर जाते थे बोरा
अनिल राय उत्तर प्रदेश में बस्ती रेंज के आईजी और पीएसी के डीआईजी भी रहे। पुलिस फोर्स में उनकी सर्विस के लिए दो बार राष्ट्रपति पुलिस मेडल भी दिया गया। अनिल राय ने दिखा दिया कि अगर शिद्दत से मेहनत की जाए तो कोई भी लक्ष्य हासिल करना मुश्किल नहीं है। संयुक्त परिवार के बीच पले और सरकारी स्कूल में पढ़े अनिल राय पुलिस सेवा में अपनी 35 साल की शानदार नौकरी के बाद अब रिटायर हो चुके हैं। अनिल बताते हैं कि उनके समय में सभी बच्चों को बैठने के लिए घर से बोरा ले जाना पड़ता था और खुद ही क्लासरूम की सफाई भी करनी पड़ती थी।
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