युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति समाज के लिए चिंता का विषय- डॉ स्वाति जाजू

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आत्महत्या को लैटिन में suicidium ,suicaedere कहा जाता है जिसका अर्थ है स्वयं को मारना। हर कोई बहुत मजबूत नहीं होता और ना ही सबकी जिंदगी एक जैसी होती है । प्रत्येक मनुष्य अपने आप को सुख देना चाहता है । यह सुख भौतिक, आर्थिक या सामाजिक तौर पर होता है जिससे व्यक्ति अपने अलावा अन्य लोगों को सुखी दिखाने का दिखावा करता है और यही दिखावा दिखाने के चक्कर में आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होने पर या आर्थिक दबाव सहन नहीं कर पाने पर  वो आत्महत्या के  लिए प्रेरित होता है।

साथ ही शिक्षा से जुड़े युवा आत्महत्या की ओर तब कदम उठाते हैं जब उनकी इच्छाओं को दबाकर माता-पिता उन्हें जबरन वह शिक्षा देना चाहते हैं जिसमें उन्हें कोई रुचि नहीं होती है। दबाव में रहकर वे प्रवेश तो ले लेते है परंतु धीरे-धीरे उनके सब्र का बांध जब टूट जाता है तो निराशा उन्हें सताने लगती है और तब युवा दूसरों की तुलना में अपने आप को कमजोर समझने लगते है और वे स्वयं को खत्म करने के रास्ते ढूंढने का प्रयास करते है ।

कई शोध में पता चला है कि युवाओं में इसकी बड़ी वजह स्कूल और परिवार का दबाव है । कोटा जैसे एजुकेशन हब में प्रतिवर्ष ऐसी घटनाएं सबसे ज्यादा आती हैं । डॉक्टर एम.एस. अग्रवाल कोटा कहते हैं कि मैं एमबीएस अस्पताल कोटा के मनोचिकित्सा विभाग का पूर्व विभाग अध्यक्ष हूं और कोटा में आत्महत्या का कारण मुझे मानसिक दबाव, मानसिक रोग अथवा पारिवारिक झगड़े लगते हैं । मैं अब तक सैकड़ो लोगों के फोन कॉल्स अटेंड कर चुका हूं जो आत्महत्या करने जा रहे थे।

आज आधुनिकता की होड़ में देखा देखी कर युवा जिन मनोभावों से गुजरते है उसे वह नियंत्रित नहीं कर पाते और तनाव निराशा के चलते वे ऐसे मानसिक विकारों के कारण जानबूझकर अपनी मृत्यु का कारण बनते हैं। वारनिक का दावा है कि भारत में वार्षिक आत्महत्या दर 10.5 प्रति 1 लाख है जबकि पूरे विश्व में आत्महत्या प्रति एक लाख पर 11.6 है । दुनिया भर में हर साल लगभग 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें से 1लाख 35 हजार यानी लगभग 17% भारत के निवासी होते हैं ।

ये बड़ी ही दयनीय स्थिति है जहां भारत को सोने की चिड़िया कहां जाता है, वहां देश के युवा वर्ग निराशा से पीड़ित हैं, ऐसा क्यों?  इसके कारणों को कोई जानने का प्रयास नहीं करता। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2015 के आंकड़ों के अनुसार 8932 (सभी आत्महत्याओं में 6.7%) छात्र हर साल आत्महत्या कर लेते हैं । नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार भारत में 1 घंटे में एक छात्र आत्महत्या करता है । यह बहुत ही गंभीर और चिंताजनक स्थिति है । न केवल युवा के लिए बल्कि उसके माता-पिता और समाज के लिए भी चिंताजनक विषय है।

युवाओं में संवेगों की प्रवृत्ति अधिक होती है । इसी समय अगर उसे सही मार्गदर्शन में सहायता दी जाए, उनके मनोभावों को नियंत्रित करने में पालक एवं स्कूल कॉलेज में यह सुविधा दी जाए तो शायद आत्महत्या के आंकड़ों में काफी कमी आ सकती है क्योंकि शोध के आंकड़े बड़े डरावने हैं ।

आज कोचिंग सेंटरों में दसवीं के बाद कक्षा 12वीं, NEET, JEE अथवा अन्य कोचिंग कराई जाती है । इसके साथ ही कक्षा ग्यारहवीं एवं 12वीं बोर्ड की परीक्षा देना मानसिक तौर पर एक तनावपूर्ण प्रक्रिया है । इस बीच किशोरों की वास्तविक बुद्धि पर तनाव बहुत बढ़ जाता है। ऊपर से माता-पिता की अपेक्षाओं के आगे हार मानकर ऐसे नकारात्मक कदम उठाने मजबूर हो जाता है।

रोकथाम कैसे हो सकती है

युवा की आत्महत्या आमतौर पर भावनात्मक, पारिवारिक, दोस्ती यारी अथवा सामाजिक वातावरण के संदर्भ में होती हैं ।

● इसको रोकने के लिए एक बेहतर शारीरिक एवं भावनात्मक वातावरण जैसे शिक्षा, रोजगार, आत्म विकास और अवकाश के सुअवसर देना चाहिए ।

● प्रत्येक शाला में साप्ताहिक मार्गदर्शन सेल की व्यवस्था कक्षा आठवीं के उपरांत प्रारंभ कर देना चाहिए ।

● युवाओं में सामाजिक लगाव पैदा करने हेतु उन्हें एनसीसी, स्काउट गाइड और एनएसएस में शामिल करने की सुविधा देनी चाहिए जिससे स्वः की भावना से परे देश के लिए भी सोच सकें।

● माता-पिता की भावनात्मक दबाव कम मित्रवत व्यवहार अपनाना होगा ।

● बालक की रुचि जानने का प्रयास करें । उसकी मदद करें। बदलते परिवेश के साथ कुछ रूढ़ियों को छोड़कर नए नीतियों को भी अपनाना होगा ।

● एक स्थिर सुरक्षित भौतिक एवं भावनात्मक घरेलू वातावरण प्रदान करना चाहिए। केवल पढ़ाई ही नहीं बल्कि उसके मनपसंद खेल एवं रुचि हेतु उसे करने की अनुमति देना चाहिए।

● परिवार के साथ घूमने के अलावा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में युवाओं /किशोरों को शामिल करना चाहिए।

आत्महत्या करना बहुत ही संवेदनशील और व्यक्तिगत कदम है। हमारे देश में आत्महत्या को एक सामाजिक समस्या के रूप में माना जाता है इसलिए इसे एक मानसिक विकार, पारिवारिक संघर्ष, सामाजिक कुव्यवस्था आदि वैचारिक दर्जा दिया जाता है।  सरकार द्वारा और अनेक सामाजिक संस्थाओं द्वारा इसको रोकने हेतु मुहिम चलाई जा रही है । वेबसाइट राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम लाइफ लाइन 800 273 talk 8255 गोपनीय आत्महत्या रोकथाम द्वारा टेलिफोनिक सेवा भी उपलब्ध कराई गई है जिससे युवाओं के तनाव को कम करके उनके मन से आत्महत्या के ख्याल को पूरी तरह से निकाला जा सके ।

*डॉ स्वाति जाजू, बिलासपुर*

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दीपक साहू

संपादक

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