मध्यप्रदेश
ग्वालियर/स्वराज टुडे: भगवान ने उसकी मां को पहले ही अपने पास बुला लिया. इसके बाद बेटे के सिर से कुछ समय पहले पिता का साया भी उठ गया. रहने को घर नहीं था. सोने को बिस्तर नहीं था. खाने को रोटी भी नहीं थी.
इसे कहते है विधाता का कहर
इस दुनिया को अलविदा कहते हुए जान देने की कोशिश भी की, लेकिन जान भी नहीं निकली. हां, जान देने की कोशिश में दोनों पैर जरूर साथ छोड़ गए. अब आखिर इतनी लंबी जिंदगी कैसे और किसके सहारे कटेगी? यह दर्द 25 साल के राकेश शाक्यवार का है, जो इस समय ग्वालियर के जयारोग्य अस्पताल के ट्रामा सेंटर में भर्ती है.
बचपन में ही मां की ममता से हो गया महरूम
दर्द की यह दास्तान भिंड निवासी राकेश शाक्यवार के साथ बचपन से ही शुरू हो गई थी. महज 7 साल की उम्र के राकेश को छोड़ मां चल बसी. मां की गोद तो नहीं मिली, लेकिन पिता का साया राकेश के सिर पर बरकरार था. जैसे तैसे पिता ने राकेश को पाला. राकेश जवान हुआ, लेकिन ठीक से अपने पैरों पर खड़े होकर इस दुनिया का सामना कर पाता, उससे पहले ही पिता का भी देहांत हो गया. मां की गोद नहीं मिल सकी और अब पिता का साया भी सिर से उठ गया. इन दोनों घटनाओं ने राकेश को तोड़कर रख दिया.
रेलवे स्टेशन को ही बनाया घर और प्लेटफार्म को अपना बिस्तर
रहने को राकेश के पास घर नहीं था और सोने के लिए बिस्तर भी नहीं था. बिना माता-पिता के लावारिस राकेश ने ग्वालियर रेलवे स्टेशन को ही अपना घर और प्लेटफॉर्म को अपना बिस्तर बना लिया था.
राकेश दिनभर मेहनत मजदूरी करता और रात को प्लेटफॉर्म पर सो जाता. मेहनत मजदूरी करके जो पैसे मिलते थे, उससे रूखा-सूखा खाकर अपना पेट भी भर लेता था, लेकिन जल्द ही राकेश का दिल ऐसी जिंदगी से ऊब गया और उसने 23 अप्रैल को अपनी दर्द भरी जिंदगी से अलविदा करने की ठान ली.
जान देने की नीयत से ट्रेन के आगे लगा दी छलांग
वह मंगलवार की शाम थी, जब ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर झांसी-इटावा लिंक एक्सप्रेस पहुंच रही थी. तभी पहले से ही जान देने का मन बना चुके राकेश ने ट्रेन के सामने छलांग लगा दी. ट्रेन के नीचे युवक को आते देख ट्रेन के ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाकर ट्रेन को रोक लिया, लेकिन तब तक राकेश के दोनों पैर ट्रेन से कट गए. इस दौरान राकेश ट्रेन में फंसा भी रह गया.
मौके पर मौजूद जीआरपी और कुलियों ने मिलकर राकेश को ट्रेन के नीचे से बाहर निकाला. जैसे तैसे राकेश को उपचार के लिए जयारोग्य अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां बुधवार को राकेश के पैरों का ऑपरेशन करके उसकी जान बचाई गई.
जिंदगी की जंग में पैरों ने भी साथ छोड़ा
अब तक तो राकेश अपने पैरों पर खड़े होकर मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पाल रहा था, लेकिन अब राकेश के पास उसके मजबूत पैर भी नहीं रहे हैं. पहले से ही जिंदगी की जंग में हार मान चुके राकेश के सामने अब जिंदगी और भी कठिन हो गई है.
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