इस मुस्लिम देश में महिलाएं गैर-मजहब के लोगों से कर सकती हैं बिना रोकटोक शादी, शादी के लिए है कानून

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आपने पढ़ा होगा कि अरब देशों में मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुसलमानों से शादी की इजाजत नहीं दी जाती थी. आज भी अधिकांश अरब देशों में मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुसलमानों से शादी की इजाजत नहीं दी जाती है.

लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मुस्लिम देश के बारे में बताने वाले हैं, जहां की मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुसलमान लड़कों से शादी करने की इजाजत है. जानिए ये कौन सा देश और कहां पर है.

ट्यूनीशिया

बता दें कि ट्यूनीशिया एक मुस्लिम देश है. इस देश ने सदियों से चली आ रही परंपरा को किनारे रखकर अपने देश की मुस्लिम महिलाओं को स्वैच्छिक विवाह की मंजूरी दे दी है. ट्यूनीशिया के इस फैसले की दुनियाभर के मानवाधिकार समूहों और कार्यकर्ताओं ने जमकर तारीफ की थी. इस्लामिक देश ट्यूनीशिया की 99 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है. ट्यूनीशिया अफ्रीका के उत्तरी छोर पर है, जिसका क्षेत्रफल 1.63 लाख वर्ग किमी है.

ज्यादातर इस्लामिक देशों में विवाह के ये हैं नियम

आज के समय में इस देश की महिलाओं को पूरी इस्लामी दुनिया में सबसे ज्यादा आजादी है. ट्यूनीशिया में इसके लिए पुराने कानून को हटाकर नया कानून बनाया गया है. नए कानून के तहत मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिया गया कि वे गैर-इस्लामिक लड़के का धर्म परिवर्तन कराए बिना शादी कर सकती हैं. दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में मुस्लिम लड़की दूसरे धर्म के लड़के के साथ धर्म परिवर्तन कराकर ही शादी कर सकती है. बता दें कि ट्यूनीशिया में 1973 में एक कानून लागू किया गया था. इसके तहत कोई मुस्लिम महिला तभी गैर-मुसलमान से शादी कर सकती थी, जब लड़का अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल कर ले. आज भी इस तरह के कानून अरब समेत ज्यादातर इस्लाम को मानने वाले देशों में लागू हैं.

दुनिया ने क्या कहा

ट्यूनीशिया में व्यापक अनुभव रखने वाली ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता मोनिका मार्क्स के मुताबिक सुलह कानून के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं को शादी की आजादी के कानून को विदेशी प्रेस में तीन गुना कवरेज मिला था. ट्यूनीशिया की तब की सरकार ने कहा था कि हम केंद्र को मजबूत करना चाहते हैं. हम परिवर्तन के दौर में हैं और हमें इस राजनीतिक केंद्र को भरने के लिए इस बदलाव की जरूरत है, ताकि देश में स्थिरता लाई जा सके. नीदरलैंड्स की ग्रोनिंगन यूनिवर्सिटी में उत्तरी अफ्रीका में संक्रमणकालीन न्याय के विशेषज्ञ क्रिस्टोफर लामोंट ने कहा कि यह मानव अधिकारों और संक्रमणकालीन न्याय के लिए एक पलटने वाला नजरिया है. वे न्याय और जवाबदेही की बहस को अतीत में वापस जाने जैसा बनाते हैं. इस अलावा दुनियाभर के लोगों ने ट्यूनीशिया सरकार के इस फैसले का स्वागत किया था.

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दीपक साहू

संपादक

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