इंडियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के द्वारा पुस्तक परिचर्चा का कार्यक्रम हुआ सम्पन्न

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मध्यप्रदेश
अमरकंटक/स्वराज टुडे: इंडियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन के द्वारा प्रोफेसर शन्तेश कुमार सिंह एवं प्रोफेसर श्रीप्रकाश सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ‘नॉन ट्रडिशनल सेक्यूरिटी कॉन्सरन्स इन इंडिया: ईसूस एण्ड चैलेंजेस’ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर चिंतामणि महापात्रा (पूर्व प्रो. वाइस चांसलर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एवं कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडो-पैसिफिक स्टडीज के संस्थापक एवं मानद अध्यक्ष ) उपस्थित रहे।

इस परिचर्चा के सत्र अध्यक्ष प्रो. के. जया प्रसाद, प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राजनीति विभाग, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय उपस्थित रहे। सह सत्र-अध्यक्ष के रूप में प्रोफेसर जॉयती भट्टाचार्य, प्रोफेसर राजनीति विज्ञान विभाग, और डीन स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, असम केंद्रीय विश्वविद्यालय, सिलचर, असम उपस्थित रही। इस पुस्तक परिचर्चा में भारत के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों से विद्वान वक्ताओं नें पुस्तक पर आलोचनात्मक चिंतन व्यक्त किया। प्रथम पैनलिस्ट के रूप में प्रोफेसर मनीष, प्रोफेसर, चेयरपर्सन एवं डीन सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिक्स, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ गुजरात उपस्थित रहे।

दूसरे पैनलिस्ट के रूप में प्रो. इंद्रजीत सिंह सोढ़ी, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली, तीसरे पैनलिस्ट के रूप में डॉ. प्रतीप चट्टोपाध्याय, एसोसिएट प्रोफेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख, कल्याणी विश्वविद्यालय उपस्थित रहे, एवं चौथे पैनलिस्ट के रूप में डॉ. सुधीर सिंह वर्मा, सहायक प्रोफेसर दक्षिण और मध्य एशियाई अध्ययन विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब उपस्थित रहे। इस पुस्तक परिचर्चा आयोजन में स्वागत वक्तव्य विकाश कुमार, रिसर्च स्कॉलर राजनीति विज्ञान एवं मानवाधिकार विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक नें दिया ।

इस पुस्तक का संपादन शांतेश कुमार सिंह, और श्री प्रकाश सिंह ने किया है जो 2022 में स्प्रिंगर नेचर से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक भारत में गैर-पारंपरिक सुरक्षा पर केंद्रित है। यह पुस्तक गैर-पारंपरिक सुरक्षा के निरंतर विकसित, विशाल और विविध क्षेत्र से संबंधित है। गैर-पारंपरिक सुरक्षा सैन्य सुरक्षा से आगे जाती है और मुख्य रूप से सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा पर केंद्रित होती है। इसकी प्रमुख चिंता राज्य की सीमा या क्षेत्र के बजाय मनुष्य हैं। गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दे पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग के नए तरीकों को मजबूत करने, विस्तार और विकास के लिए महत्वपूर्ण उत्प्रेरक रहे हैं। क्षेत्र के राज्य पहले से दबाए गए, गैर-मान्यता प्राप्त, या असुरक्षा के उभरते स्रोतों को समायोजित करने के लिए धीरे-धीरे अपने रणनीतिक विचारों में बदलाव कर रहे हैं।

एशिया के कई राज्यों के लिए, स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा सैन्य घुसपैठ नहीं है, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक या पर्यावरणीय कारकों से उत्पन्न होता है। पुस्तक मानव सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी और जैविक और रासायनिक हथियारों जैसी गैर-पारंपरिक प्रतिभूतियों पर केंद्रित है। सभी गैर-पारंपरिक सुरक्षा मुद्दे शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं के लिए भी अत्यधिक प्रासंगिक हैं। कार्यक्रम के संयोजक गणेशी लाल, शोध विद्वान, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली रहे , सह-संयोजक रेखा यादव, सहायक प्रोफेसर, हिंदू कन्या महाविद्यालय, सीतापुर, लखनऊ विश्वविद्यालय रहीं एवं दूसरी सह-संयोजक: श्रीमती आशा राजपुरोहित, सहायक प्रोफेसर, शासकीय महाविद्यालय, सैलाना, मध्य प्रदेश रहीं । कार्यक्रम के सचिव कृष्ण मोहन उपाध्याय, डॉक्टरेट फेलो, राजनीति विज्ञान विभाग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, काशी रहे एवं दूसरे सचिव सचिव: मनोरमा कुंतल, राजनीति विज्ञान विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया से रहीं । आयोजन समिति के दो अन्य सदस्य – रिफ़ा तब्बुसुम, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एवं सुनीता वी. यादव, रिसर्च स्कॉलर, डी.टी.एस. कॉलेज मुंबई महाराष्ट्र उपस्थित रहीं।

व्याख्यान के प्रारंभ में प्रोफेसर चिंतामणी महापत्रा नें पुस्तक के भूमिका पर चर्चा करते करते कहा कि यह आयोजन सही समय में और सही लोगों के द्वारा किया जा रहा है, क्योंकि रिसर्च स्कॉलर्स के द्वारा ऐसे पहल किया जाना अकादमिक विमर्श की उत्कर्षता को प्रदर्शित करता है ।गैर-पारंपरिक परिचय राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा शीत युद्ध की समाप्ति और वैश्वीकरण के उदय के बाद से विकसित हुई है। यद्यपि राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा को अक्सर दुनिया भर के राष्ट्रीय नेताओं द्वारा लागू किया जाता है, राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा पर विभिन्न विद्वानों, राष्ट्रीय नेताओं और नागरिक समाज के सदस्यों द्वारा गंभीरता से बहस की जाती है। नतीजतन, राष्ट्रीय सुरक्षा की अवधारणा अब मुख्य रूप से बाहरी खतरों पर केंद्रित पारंपरिक राज्य केंद्रित सुरक्षा चिंताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अब वैकल्पिक दृष्टिकोण अपनाती है जिसका उद्देश्य किसी दिए गए राज्य में मानव सुरक्षा के लिए मूलभूत चुनौतियों का समाधान करना है। बदलती वैश्विक वास्तविकताओं ने वर्तमान में ‘गैर-पारंपरिक सुरक्षा’ के रूप में परिभाषित की गई परिभाषा को जन्म दिया है, इस तरह के शब्द का उद्देश्य विभिन्न खतरों को शामिल करना है जो नागरिकों की सुरक्षा और आजीविका में बाधा डालते हैं। जबकि नागरिकों और सरकारों को समान रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तर सेशन हुआ जिसमें सभी प्रतिभागियों नें अपने सवाल पूछे और उनका जवाब वक्ताओं के द्वारा दिया गया ।

दीपक साहू

संपादक

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