छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: पंचायत कोनकोना के ग्राम घोघरा स्थित गिट्टी खदान में ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली और ईमानदारी पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। जिला खनिज अधिकारी, वन मंडलाधिकारी कटघोरा और पर्यावरण विभाग की मिलीभगत से पर्यावरण, जलवायु और वन परिवर्तन मंत्रालय (प्रभाव आकलन प्रभाग) के स्पष्ट दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
मंत्रालय द्वारा दिनांक 28 अगस्त 2019 को पारित आदेश के अनुसार, किसी भी प्रकार के जल स्रोत से न्यूनतम 500 मीटर दूरी पर ही राखड़ (फ्लाई ऐश) डंपिंग की अनुमति दी जा सकती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि तान नदी के जल भंडारण टैंक से मात्र 50 मीटर की दूरी पर ही राखड़ डंप कर दी गई, और संबंधित विभागों ने आंखें मूंद कर अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी कर दी।
सूत्रों के अनुसार दिलीप बिल्डकॉन को अस्थाई तौर पर सड़क निर्माण हेतु गिट्टी खनन की अनुमति दी गई थी। शासन द्वारा स्वीकृत माइनिंग प्लान में स्पष्ट था कि खनन से उत्पन्न गड्ढे को भविष्य में जल भंडारण टैंक के रूप में विकसित किया जाएगा। मगर अब वही जल संरचना राखड़ से पटाई जा रही है, जिससे इलाके के जल संसाधन और पर्यावरण को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
*👉 प्रमुख सवाल जो उठ रहे हैं:*
🔹 क्या शासन द्वारा पूर्व में स्वीकृत माइनिंग प्लान को विभाग अपनी मनमर्जी से बदल सकते हैं?
🔹 क्या जल स्रोत को राखड़ से पाटना पर्यावरण मानकों का घोर उल्लंघन नहीं है?
🔹 क्या विभाग MOEFCC के आदेशों की अवहेलना कर नदी से महज 50 मीटर की दूरी पर राखड़ डंपिंग की स्वीकृति दे सकते हैं?
इस पूरे प्रकरण से स्थानीय जनता और पर्यावरणविदों में भारी आक्रोश व्याप्त है। उनका कहना है कि विभागों ने आपस में गठजोड़ कर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी को ठेठ मजाक बना दिया।
शिकायतकर्ता गोविंद शर्मा ने इस गंभीर अनियमितता को लेकर कलेक्टर कोरबा से लिखित शिकायत दर्ज कराई है और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राखड़ डंपिंग को तत्काल रोका नहीं गया, तो तान नदी समेत क्षेत्र के अन्य जल स्रोतों में फ्लाई ऐश का जहरीला प्रभाव लंबे समय तक देखा जाएगा, जिससे न सिर्फ प्राकृतिक जैव विविधता, बल्कि ग्रामीणों की सेहत भी खतरे में पड़ जाएगी।
अब यह देखना बेहद अहम होगा कि कलेक्टर कोरबा इस मामले को कितनी गंभीरता से लेते हैं और क्या दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई होती है, या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह कागजों में ही दबकर रह जाएगा।

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