नवरात्रि की पुराण की कथा और उसका वास्तविक आध्यात्मिक रहस्य : ब्रह्माकुमार भगवान भाई , शान्तिवन

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राजस्थान
माउंटआबू/स्वराज टुडे: एक पौराणिक कथा है कि असुरों के आतंक से देवता जब काफी त्रस्त हो गए तो अपनी रक्षा हेतु शक्ति की आराधना करने लगे। फलस्वरूप शक्ति ने दुर्गा रूप में प्रकट होकर असुरों का विध्वंस कर देवताओं के देवत्व की रक्षा की। देवताओं को सुरक्षित रखने के लिए यह देवी असुरों से सदैव संग्राम करती रहती थी। अतः इस देवअसुर-संग्रम का रूप देकर एक पूजा का रिवाज चलाया गया। तब से अनेक देवियों की पूजा का प्रचलन हिन्दू धर्म में प्रचलित हुआ। आज भी हिन्दू समाज में शक्ति के नौ स्वरूपों की नौ दिनों तक पूजा चलती है। जिसे नौ दुर्गे या नवरात्री कहते हैं। अब आइये नवरात्र के नौ देवियों पर एक नजर डालें।

1. नवरात्र का पहला दिन दुर्गा देवी के रूप में माना जाता है। वह शैल पुत्री के नाम से पूजी जाती है। बताया जाता है कि यह पर्वत राज हिमालय की पूत्री थी। इसलिए पर्वत की पुत्री “पार्वती या शैलपुत्री” के नाम से शंकर की पत्नी बनी अतः पूज्य है।

वास्तविक रहस्यः- दुर्गा को शिव शक्ति कहा जाता है। हाथ में माला भी दिखाते हैं, माला परमात्मा के याद का प्रतीक है । जब परमात्मा को याद करेंगे, तो जीवन में सामना करने की, निर्णय करने की, परखने की, विस्तार को सार में लाने की यह अष्ट शक्ति जीवन में प्राप्त होती है। इसलिए दुर्गा को अष्ट भुजा दिखाते हैं। हाथ में वाण दिखाते हैं जो कि ज्ञानरूपी वाण मुख द्वारा चलाकर विकारों का संहर किया उसका प्रतिक है। इस तरह हम केवल दुर्गा का आहृवान ही नहीं करते बल्कि दुर्गा समान बनकर अपने अन्दर के तथा दूसरों के भी दुर्गुणों का संहार करना ही दुर्गा देवी का आव्हान करना है।

2. दूसरे दिन की देवी “ब्रह्मचारणी” है अतः पूज्य है। सरस्वती परमात्मा ने जो ज्ञान दिया है उसका सिमरण कर धारण कर स्वयं को तथा दूसरों को भी भरपूर ज्ञान देना ही सरस्वती का आह्वान करना है।

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3. तीसरे दिन “चन्द्रघंटा” रूप की पूजा होती है। पुराणों की मान्यता है कि असुरों के प्रभाव से देवता काफी दोन-हीन तथा दुःखी हो गए थे, तब सभी देवता देवी की आराधना करने लगे।  फलस्वरूप देवी ‘चंद्रघंटा’ प्रकट होकर असुरों का संहार करके देवताओं को संकट से मुक्त किया अतः पूज्य है। वास्तविक अर्थ शीतला मDअपने शांत स्वभाव से दूसरों को भी शांति की शीतलता का अनुभव कराना ही शीतला देवी का आव्हान करना है।

4. चौथे दिन की देवी “कुष्मांडा ” नाम से पूजी जाती है। बताया जाता है कि यह देवी खून पीने वाली देवी है। काली पुराण में देवी की पूजा में पशुबलि का विधान है। इसी धारणा और मान्यता के आधार पर देवियों के स्थान पर बलि प्रथा आज भी प्रचलित है। वास्तव में अपने अन्दर जो भी विकारी स्वभाव एवं संस्कार है उसपर विकराल रूप धारण करके अर्थात दृढ़ प्रतिज्ञा करके सत्य संकल्प से मुक्ति पाना, त्याग करना ही काली का आह्वान करना है।

5. पांचवे दिन की देवीः “स्कन्दमाता” मानी जाती है। कहते हैं यह ज्ञान देनेवाली देवी है। इनकी पूजा करने से ही मनुष्य ज्ञानी बनता है। यह भी बताया गया है कि ‘स्कन्दमाता’ की पूजा ब्रह्मा, विष्णु, शंकर समेत यक्ष, किन्नरों और दैत्यों ने भी की है। इसका वास्तविक अर्थ गायत्री सभी को परमात्मा ने सुनाई हुई सच्ची गीता स्वंय में धारण करना तथा दूसरों को भी सुनाना ही गायत्री देवी का आह्वान करना है।

6. छठे दिन की शक्ति को ” माँ कात्यायनी” रूप में पूजा की जाती है । कहते हैं कि देवताओं की आराधना पर यह “कन्यायन” नाम से पूजी गयी। इनके विषय में बताया गया है कि इनकी पूजा से हर मनाकामना पूर्ण होती है। कठिन से कठिन कार्य भी स्वतः सिद्ध हो जाते हैं। सर्व कार्य सिद्ध करने वाली देवी है, अतः पूज्य है। इसका अर्थ मायावी विषय विकारों से सदा दूर रहना तथा दूसरों को भी विषय विकारों से मुक्त करना ही वैष्णों देवी का आह्वान करना है।

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7. सातवें दिन कि देवी ‘कालरात्री’ है। इनका रंग काला है ओर यह गधे पर सवारी करती है। कहा गया है कि असुरों के लिए काल रूप में प्रकट होने के कारण इन्हें कालरात्रि रूप में पूजा की जाती है। सही अर्थ दुःखमय परिस्थितियों में सदा उमंग उत्साह में रहना, सर्व को उमंग उत्साह देना ही उमादेवी का आह्वान करना है।

8. आठवें दिन की शक्ति का नाम ‘महागौरी’ है, कहते हैं कि कन्या रूप में यह बिल्कुल काली थी। शंकर से शादी करने हेतु अपने गौरवर्ण के लिए ब्रह्मा की पूजा की तब ब्रह्मा ने खुश होकर उसे काली से गोरी बना दिया। इसका अर्थ सभी को परमात्मा के ज्ञान से परिचित कराके सभी का तिसरा नेत्र खोल उनके जीवन में आध्यात्मिक क्रांति लाना ही मिनाक्षी देवी का आह्वान करना है।

9. नवरात्र के नौवीं देवी “सिद्धिदात्री” है। कहा गया है कि यह सिद्धिदात्री  वह शक्ति हे जो विश्व का कल्याण करती है। जगत का कष्ट दूर कर अपने भक्त जनों को मोक्ष प्रदान करती है। अतः पूज्य है। इसका अर्थ ‘जीवन में महान लक्षण धारण करना ही महालक्ष्मी का आह्वाण करना है।

इसके साथ ही विश्व परिवन्नन की सेवा स्वपरिवर्तन के सथ करना, पवित्रता धारण करना ही मुकुट तथा छत्र प्रत क है। अपना जीवन कमल पुष्प समान न्यारा बनाना, स्व का दर्शन करना अर्थात स्यं के अंदर की कमजोरी को देख उसे निकालना, मुख द्वारा ज्ञान सुनाना। यह सब कमल। स्वदर्शन चक्र, शंख का प्रतिक है जो देवियों के हाथ में दिखाते हैं।

इस तरह नौ देवियों आध्यात्मिक रहस्यों को धारण करना ही नवरात्रि मनाना है। इस कलियुग के घोर अंधकार में वर्तमान समय स्वयं परमात्मा माताओं कन्याओं द्वारा सभी को ज्ञान देकर फिर से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। परमात्मा द्वारा दिए गए इस ज्ञान को धारण करके अपने अंदर जो भी विकार है। अवगुण है उसे खत्म करना है। जिस रूप में चाहिए उस रूप का आह्वाण करके अब जल्दी ही विकारों का संहर करना है क्योंकि अब समय बहुत कम है।

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अब ऐसी नवरात्रि मरायेंगे तब अपने अन्दर जो रावण अर्थात विकार है वह खत्म होगा, मर जाएगा। यही है सच्चा-सच्चा दशहरा मनाना। ऐसा दशहरा मनायेंगे तब ही दिवाली अर्थात भविष्य में आनेवाली सतयुगी दुनिया के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। इसलिए हे आत्माओं अब जागो केवल नवरात्रि का जागरण ही नहीं करो बल्कि इस अज्ञान निंद से जागो। मैं कौन हूँ? परमात्मा कौन है? कहाँ जाना है? समय कौन सा चल रहा है? यह सबकुछ जानो। इसके लिए स्वयं परमात्मा रचित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की आपके शहर में जो भी शाखा है उसमें स्वयं परमात्मा आपको आपको आह्वाण कर रहे हैं। अपना जीवन देवी देवता समान श्रेष्ठ बनाओ आसुरी संस्कारों का संहार करो यही है सच्ची-सच्ची नवरात्रि मनाना ओर जागरण करना। कुछ अब इस नवरात्रि में नया करो। जीवन परिवर्तन करो। विष्य विकार, अज्ञान अंधकार के सदा के लिए सिदाई दो। ऐसी नवरात्रि की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ।

 

दीपक साहू

संपादक

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