अखबार और तेल बेचकर की पढ़ाई, झोपड़ी में किया जीवन यापन; जानिए बिहार के मंत्री डॉ. प्रमोद चंद्रवंशी के राजनीतिक सफर और संघर्ष की कहानी

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बिहार
जहानाबाद/स्वराज टुडे: बिहार में नवगठित सरकार के मंत्रिमंडल में डॉ. प्रमोद चंद्रवंशी मंत्री बने हैं। इनके राजनीतिक करियर और संघर्षों की कहानी यह बताती है कि किस तरह शिखर पर पहुंचा जाता है।

काको प्रखंड के नेरथुआ मठ निवासी प्रमोद चंद्रवंशी का जीवन काफी मुश्किलों में बिता था। जीवन यापन के लिए उन्हें पटना में अखबार व तेल बेचकर गुजारा करना पड़ता था। पिता अयोध्या प्रसाद व माता राजकुमारी देवी गांव में खेतीबाड़ी संभालती थे। खेती ज्यादा नहीं थी।

पढ़ाई का खर्च निकालने अखबार और तेल बेचे

प्रमोद चंद्रवंशी पटना के पोस्टल पार्क में रहकर पढ़ाई करते थे। घर से खर्च कम आता था, पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए सुबह में घर-घर जाकर अखबार बेचते थे। पढ़ाई खर्च बढ़ा तो घर-घर जाकर सरसों तेल बेचने का काम भी शुरू किया। तेल का व्यवसाय आज भी है। अब स्थाई दुकान पटना के पोस्टल पार्क में है।

ABVP से शुरू की राजनीति

1986 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर राजनीति शुरू की और यहां तक का सफर तय किया। गांव के लोग बताते हैं कि दो साल पहले तक प्रमोद चंद्रवंशी का घर झोपड़ीनुमा था, एक बार चोरी की घटना भी हो चुकी है। इसके बाद भाइयों के साथ मिलकर उन्होंने छोटा सा पक्का मकान अपने गांव में बनवाया।

चंद्रवंशी के भाई पटना के एक गैस एजेंसी में कर्मचारी हैं। तीन भाई और दो बहनों में मंत्री बने चंद्रवंशी सबसे बड़े भाई हैं। साधारण घर के प्रमोद चंद्रवंशी जब विधान पार्षद बने थे, तो उस समय भी लोगों को आश्चर्य हुआ था, लेकिन राजनीति में लगातार त्याग और समर्पण का प्रतिफल उन्हें इससे भी आगे मंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया।

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प्रमोद चंद्रवंशी के मंत्री बनने से राजनीति में धन-बल और परिवारवाद के बढ़ते वर्चस्व के बीच आम आदमी की भागीदारी के लिए भी जगह निश्चित होने पर मोहर लगी है। इसकी चर्चा लोगों के बीच खूब हो रही है।

गांव तक जाने के लिए नहीं है साधन

मंत्री डॉ. प्रमोद चंद्रवंशी का गांव शहर से पांच किमी दूर और पटना-गया एनएच-22 से तीन किलोमीटर की दूरी है। रेलवे लाइन होने के कारण गांव तक चार पहिया वाहन जाने की सुविधा नहीं है। अवैध रेलवे ट्रैक पार कर लोग आते जाते हैं।

2021 में प्रमोद चंद्रवंशी के एमएलसी बनने के बाद गांव के अंदर सड़क बनी। स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं आज भी नहीं हैं। ना तो प्राथमिक विद्यालय है ना ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। अब ग्रामीणों को उम्मीद है कि मंत्री बनने के बाद उनके गांव का कायाकल्प हो जाएगा।

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दीपक साहू

संपादक

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