राजस्थान
टोंक/स्वराज टुडे: जब बुधवार की शाम राजकोट गांव की गलियों में एक सफ़ेद थैली में लिपटा शव पहुँचा, तो हवा भी जैसे रुक-सी गई। वो थैली किसी सामान की नहीं थी-उसमें एक बेटे का शरीर था, जो अब पहचान से परे हो चुका था। वो शरीर नहीं, राख बन चुका सपना था – टैंकर ड्राइवर रामराज मीणा का।
केमिकल टैंकर खड़े हुए घरेलू गैस सिलेंडर भरे ट्रक से टकराया
जयपुर-अजमेर एक्सप्रेस-वे पर 7 अक्टूबर की रात, सावरदा गांव के पास सब कुछ कुछ ही पलों में बदल गया। गुजरात से जयपुर जा रहा केमिकल टैंकर, खड़े हुए घरेलू गैस सिलेंडर भरे ट्रक से टकराया – और फिर एक चीख, एक धमाका, और आग का ऐसा गोला उठा कि आसमान तक दहक उठा। 35 हजार लीटर ज्वलनशील केमिकल ने पलभर में सब कुछ निगल लिया। सिलेंडर एक के बाद एक फटने लगे, मानो आग खुद धरती पर उतर आई हो। धमाके 4 किलोमीटर तक सुनाई दिए।
अपने केबिन में जलकर खाक हो गया रामराज
लोग खेतों की ओर भागे, ट्रक ड्राइवरों ने गाड़ियां उलटी दौड़ाईं – लेकिन रामराज के पास भागने की कोई राह नहीं बची। वो वहीं अपने केबिन में फंस गया और पलभर में आग की लपटों ने उसे निगल लिया।
जब आग बुझी और राहत दल पहुंचा, तो रामराज की पहचान करना लगभग नामुमकिन था। ड्राइवर सीट पर कुछ दांत, खोपड़ी के टुकड़े, पैरों की उंगलियाँ और मांस का लोथड़ा पड़ा मिला। सब कुछ एक थैली में समेटा गया – यही थी उसकी अंतिम पहचान।
थैली में जब रामराज घर पहुंचा तो मच गई चीख पुकार
बुधवार की दोपहर जब ये थैली एसएमएस अस्पताल की मोर्चरी से निकली, तो भाई रामकुमार की आँखें सूखी थीं – शायद रो भी नहीं पा रहे थे। शाम को जैसे ही थैली राजकोट के पैतृक घर पहुँची, रोदन की लहर उठी जिसने पूरे गांव को हिला दिया।
बेसुध पत्नी, रोते बच्चे, गम में डूबा गांव
रामराज की पत्नी ने जैसे ही थैली देखी, ज़मीन पर गिर पड़ी। दो छोटे बच्चे बार-बार सिर्फ़ एक ही सवाल रो-रोकर पूछ रहे थे – “पापा कहां हैं?” पर जवाब में सिर्फ़ सन्नाटा था। गांव के बुज़ुर्गों ने थैली को देखा – किसी ने आंचल से आंखें पोंछीं, किसी ने बस आसमान की ओर देखा और कहा, “कितना मेहनती लड़का था… किस्मत ने जला डाला…”
कोई चेहरा नहीं था जिसे देखा जा सके। रामराज का चेहरा राख बन चुका था। परिजनों ने शव को देखा भी नहीं – सिर्फ़ उसकी थैली को गले लगाया और वही अंतिम विदाई दी।
बाप के बाद अब बेटा भी चला गया
गांव वालों ने बताया, रामराज के पिता किशन की मौत 12 साल पहले हुई थी। तीन भाई थे – बाबूलाल, रामकुमार और सबसे छोटा रामराज। बाबूलाल जयपुर में मजदूरी करता है, रामकुमार खेती-बाड़ी देखता है। पिता की मौत के बाद रामराज ही घर की उम्मीद था। उसने ड्राइविंग सीखकर घर की जिम्मेदारी उठाई थी। हर महीने मजदूरी के पैसे भेजता था – कहता था, “एक दिन पक्का घर बनाऊँगा, मां का सपना पूरा करूँगा…” लेकिन अब वही घर उस सपने की राख से भरा है।
आग के गोलों में घिरा आखिरी सफर
गवाहों के मुताबिक, हादसे की शुरुआत महावीर ढाबे के पास हुई। आरटीओ चेकिंग के डर से रामराज ने टैंकर को ढाबे की ओर मोड़ा था। ठीक उसी वक्त, वहीं सिलेंडर से लदा ट्रक खड़ा था । टक्कर इतनी तेज़ थी कि केबिन में आग भड़क उठी, और चिंगारी ने बगल के सिलेंडरों को पकड़ लिया। कुछ ही सेकंड में पूरा इलाका धमाकों से गूंज उठा। सिलेंडर 40-50 फीट ऊपर उछलकर फट रहे थे।जो लोग वहां थे, कहते हैं – “हमने बस एक चीख सुनी थी, फिर सब कुछ आग में डूब गया…”
गांव में अब भी गूंज रही है वो खबर
राजकोट में बुधवार की रात चिताएँ जलीं – एक बेटे की विदाई के लिए, एक माँ के आंसुओं के साथ। रामराज का नाम अब गांव के हर बच्चे की जुबान पर है – पर कहानी दर्द की है, शहादत की नहीं। लोग कहते हैं – “किसी ने देखा नहीं कि कैसे वो जला, पर हर किसी ने महसूस किया कि एक घर उजड़ गया।”
सड़क हादसा नहीं, व्यवस्था की लापरवाही का नतीजा
गांव के लोग अब सवाल कर रहे हैं – अगर हाइवे पर सुरक्षा इंतज़ाम होते, अगर चेकिंग की प्रक्रिया सुरक्षित दूरी पर होती, तो क्या रामराज बच नहीं सकता था?पर जवाब किसी के पास नहीं। बस ख़ामोशी है, राख की तरह बिखरी हुई।
“पापा अब नहीं आएंगे?”
रात को जब गांव में शांति लौट आई, तब रामराज के दोनों बच्चे मां के पास बैठे थे।बड़ा बेटा धीरे से बोला – “मां, पापा अब नहीं आएंगे?” पत्नी की आंखों से आंसू गिर पड़े, उसने बच्चे को सीने से लगा लिया और बस इतना कहा – “अब वो हमारे आसमान में हैं… रोज़ हमें देखेंगे…”
वो थैली, जो एक समय ड्राइवर की मेहनत की गवाही देती थी, अब उसकी मौत की कहानी बन चुकी है। राजकोट की उस गली में जहां आज भी उसके कदमों की धूल बसी थी, अब बस राख उड़ती है। रामराज मीणा चला गया, लेकिन पीछे छोड़ गया वो सवाल – क्या सड़कें सिर्फ़ सफर के लिए हैं… या मौत की मंज़िल भी बन चुकी हैं?
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