पितृदोष: पूर्वजों की नाराज़गी का संकेत और शांति के प्रामाणिक उपाय

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हमारे जीवन में आने वाली कई अनचाही बाधाएँ, व्याधियाँ, मानसिक तनाव, आर्थिक संकट, संतान सम्बंधी समस्याएँ अथवा शुभ कार्यों में बार-बार उत्पन्न होने वाली रुकावटें—इन सबका संबंध कई आचार्यों के मतानुसार पितृदोष से माना गया है। पौराणिक मान्यताओं में पितर वे पूर्वज हैं, जिन्होंने हमारे परिवार, वंश और जीवन के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ऐसे पितरों की उपेक्षा, असम्मान या धार्मिक कर्तव्यों की अनदेखी होने पर यह दोष प्रकट होता है।

क्या है पितृदोष?

मान्यतानुसार जब किसी वंश के पूर्वज अपने प्रति श्रद्धा, तर्पण, स्मरण और सम्मान में कमी देखते हैं, अथवा परिवार में किए गए गलत आचरण, अन्याय, श्राद्ध-त्रुटि या अधूरे संस्कारों से दुखी होते हैं, तो वे वंशजों को श्रापस्वरूप बाधाएँ देते हैं। यही स्थिति पितृदोष कहलाती है। ज्योतिष के अनुसार जन्मपत्रिका में सूर्य, चंद्र, गुरु, शनि और राहु-केतु की अशुभ स्थिति भी इसके संकेत माने जाते हैं।

पितृदोष के सामान्य लक्षण

विभिन्न विद्वानों और अनुभवों के आधार पर पितरों के रुष्ट होने के कुछ संकेत इस प्रकार बताए गए हैं—
• भोजन में अक्सर बाल मिलना।
• घर में बिना कारण दुर्गंध का रहना।
• पूर्वजों का स्वप्न में बार-बार आना।
• शुभ कार्यों के समय अचानक अशुभ घटनाएँ।
• परिवार के किसी सदस्य का आजीवन अविवाहित रह जाना।
• मकान, प्रॉपर्टी या भूमि की खरीद-फरोख्त में लंबे समय तक रुकावटें।
• चिकित्सकीय रूप से सब सामान्य होने के बावजूद संतान न होना।

ऐसी स्थिति वर्षों तक बनी रहे तो इसे कई आचार्य पितृदोष का संकेत मानते हैं।

कौन-कौन से ऋण जुड़े हैं पितृदोष से ?

शास्त्रों में पाँच प्रमुख ऋण बताए गए हैं—
मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण और मनुष्य ऋण।
इनमें से किसी ऋण के प्रति उपेक्षा भी पितृदोष को जन्म दे सकती है। माता-पिता का असम्मान, कुल-देवताओं की उपेक्षा, गोत्राचार का पालन न करना अथवा किसी बेबस व्यक्ति का हक छीन लेना—ये कारण भी पीढ़ी दर पीढ़ी कष्ट बढ़ा देते हैं।

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पितरों के रुष्ट होने का प्रभाव

कहा जाता है कि पितृदोष होने पर—
• भाग्य का साथ कम हो जाता है
• प्रयासों का फल नहीं मिलता
• परिवार में कलह, रुकावटें और मानसिक दबाव बढ़ते हैं
• संतान-कष्ट, आर्थिक अभाव और विवाह संबंधी रुकावटें बनी रहती हैं

पितृदोष शांति के प्रमुख उपाय

पौराणिक ग्रंथों, पुराणों और धार्मिक परंपराओं में पितृदोष निवारण हेतु कई उपाय बताए गए हैं—

1. श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान
पितृपक्ष में विधि-विधान से श्राद्ध करना पितरों की शांति का सर्वोत्तम उपाय माना गया है।

2. अमावस्या पर अन्न-दान और गौ-सेवा
चावल, दूध, घी, सफेद वस्त्र अथवा भोजन का दान पितरों की तृप्ति हेतु विशेष प्रभावी माना गया है।

3. पीपल व बरगद के वृक्षों की पूजा
इन वृक्षों में देवताओं और पितरों का वास माना जाता है। पीपल की परिक्रमा, जल अर्पण और दीपदान पितृदोष शांति में सहायक बताया गया है।

4. मंत्र-जाप
भगवान शिव के समक्ष निम्न मंत्र का नित्य जप अत्यंत फलदायी माना गया है—
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।”

5. सूर्य को अर्घ्य देना
तांबे के लोटे में जल, लाल चंदन और लाल पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें और “ॐ घृणि सूर्याय नमः” का 11 बार जप करें।

6. दान दक्षिणा
कन्यादान या गरीब कन्या के विवाह में सहयोग
इसे पितरों को अत्यंत प्रिय और अत्यंत प्रभावशाली उपाय माना गया है।

7.सुंदरकांड या दुर्गा सप्तशती का पाठ
प्रेत-बाधा या आत्मिक कष्ट की स्थिति में
“हरिवंश पुराण”, “गजेन्द्र मोक्ष”, सुंदरकांड या दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत उपयोगी माना गया है।

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8. वृक्षारोपण और जलदान
पीपल या बरगद का वृक्ष लगाकर नियमित जल देना पितरों की ऊर्ध्वगति का शुभ कार्य माना गया है।

निष्कर्ष

पितृदोष कोई भय का विषय नहीं, बल्कि अपने मूल, परंपरा और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा याद दिलाने वाला एक संकेत है। घर-परिवार में सुख-समृद्धि, सद्भाव और उन्नति के लिए पितरों का सम्मान, श्राद्ध-कर्म, दान-पुण्य और नियमित सत्कर्म जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। पूर्वजों की कृपा जिस परिवार पर होती है, वहाँ शुभता, समृद्धि और उन्नति का मार्ग सहज ही प्रशस्त होता चला जाता है।

हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब इस जन्म में ,नहीं तो अगले जन्म में भोगना ही पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन-वचन-कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाएं।

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दीपक साहू

संपादक

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