
वैसे तो बैसाखी सिक्खों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन हमारे देश में इसे सभी लोग मिल-जुलकर मनाते हैं। इस बार ये पर्व 13 अप्रैल, रविवार को मनाया जाएगा। इस पर्व से जुड़ी कईं खास बातें हैं।
वैसे तो य पर्व फसल पकने और सौर नववर्ष की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन इस पर्व से जुड़ी एक घटना ऐसी है जो इसे और भी खास बनाती हैं। सिक्खों के दसवें गुरु गोविंदसिंह ने 1699 में बैसाखी पर ही खालसा पंथ की स्थापना की थी और पंज प्यारे बनाए थे। आगे जानें क्या है ये पूरी घटना…
कैसे हुई खालसा पंथ की स्थापना, क्या है इसका अर्थ?
खालिस अरबी भाषा में एक शब्द है, जिसका अर्थ है शुद्ध। इसी से खालसा शब्द लिया गया। जब हमारे देश में मुगलों का राज था तो वे तरह-तरह से हिंदुओं को प्रताड़ित करते थे। तब सिक्खों के दसवें गुरु गोविंदसिंह ने 1699 की बैसाखी के मौके पर आनंदपुर में सभी सिक्खों को बुलाया। वहां गुरु गोविंदसिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसका काम अधर्म के विरुद्ध युद्ध करना है।
कैसे बने पंच प्यारे?
आनंदपुर में गुरु गोविंदसिंह ने सभा के दौरान लोगों से कहा ‘जो व्यक्ति देश-धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान करने को तैयार हैं, वो आगे आए।’ तब भीड़ में से एक युवक निकला। गुरु गोविंदसिंह उसे तंबू में ले गए और खून से सनी तलवार लेकर बाहर आए।
गुरु गोविंदसिंह के कहने पर 4 और युवक उनके पास गए। गुरु गोविंदसिंह उन्हें भी तंबू में ले गए। बाद में वे पांचों युवक जब तंबू से निकले तो उन्होंने सफेद पगड़ी और केसरिया रंग के कपड़े पहने हुए थे। यही पांच युवक ‘पंज प्यारे’ कहलाए।
ये पांच युवक थे-भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत राय, भाई मोहकम चंद और भाई साहिब चंद। गुरु गोविंदसिंह ने सभा में आए सभी लोगों को अमृत (शक्कर मिश्रित जल) पिलाया गया, जिससे वे सभी खालसा पंथ के सदस्य बन गए।
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