छत्तीसगढ़
रायपुर/स्वराज टुडे: 1994 बैच के आईपीएस हिमांशु गुप्ता के डीजी पदोन्नति को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि डीपीसी के लिए हिमांशु गुप्ता समेत कई अधिकारियों ने षड्यंत्रपूर्वक यूपीएससी को भ्रामक एवं गलत जानकारी भेजी है। उक्त नियम विरुद्ध पदोन्नति के लेकर अब कार्रवाही की मांग की जा रही है। जबकि नियमानुसार डीजी के पद पर पदोन्नति 1994 बैच के आईपीएस एसआरपी कल्लूरी की होनी थी जिन्होंने अपने सर्विस काल की 30 सालों की मियाद पूरी कर ली है।
*1995 की वरिष्ठता सूची में हिमांशु नही*
हिमांशु गुप्ता 1994 बेच के आईपीएस है लेकिन जब मध्यप्रदेश में 1995 में वरिष्ठता सूची जारी की गई उसमें हिमांशु गुप्ता का नाम शामिल नही है। जबकि 1995 की वरिष्ठता सूची में गुरजिंदर पाल सिंह और कल्लूरी का नाम शामिल हैं। इस प्रकार हिमांशु जब भी वरिष्ठता सूची में आएंगे तो शिवराम प्रसाद के नीचे ही आएंगे। इनकी पहुंच और जुगाड़ का यह आलम है कि अखिल भारतीय सेवा अधिनियम को भी इन्होंने ठेंगा दिखाया और अपनी वरिष्ठ को गलत तरीके से कायम रखवाने में सफल रहे। मसला दरअसल यह है कि हिमांशु गुप्ता त्रिपुरा कैडर के आईपीएस हैं। इसके बाद कैडर ट्रांसफर योजनांतर्गत हिमांशु गुप्ता की स्वयं की मांग पर उन्हें मध्यप्रदेश कैडर आवंटित किया गया था। वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश से अलग छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तब इन्हें छतीसगढ़ कैडर आवंटित किया गया। हिमांशु गुप्ता कैडर ट्रांसफर अंतर्गत मध्यप्रदेश भारतीय पुलिस सेवा की सूची में सम्मलित हैं। नियमानुसार अखिल भारतीय सेवा का जो अफसर कैडर ट्रांसफर के अंतर्गत किसी राज्य में स्थानांतरित होता है तो उसका नाम उस राज्य के पदक्रम सूची में वरिष्ठता कम में अपने बैच में अंतिम स्थान पर प्रविष्ट किया जाता है। इसलिए कहना गलत नही है कि वरिष्ठता क्रम और डीओपीटी के नियम अनुसार एसआरपी कल्लूरी का नाम डीजी पद के लिए दर्ज किया जाना था।
*पदोन्नति समिति को किया गुमराह*
हिमांशु गुप्ता द्वारा गृह विभाग के चंद अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अनियमित पदोन्नति प्राप्त की है। साथ ही संघ लोक सेवा आयोग दिल्ली को अपनी पदोन्नति के सम्बंध में गलत एवं भ्रामक जानकारी भेजी गई। उक्त मामले में तथ्य यह है कि केंद्रीय न्यायिक अभिकरण द्वारा दिनांक 30.04.2024 को 1994 बैच के आईपीएस गुरजिंदर पाल सिंह (जीपी सिंह) के अनिवार्य सेवा निर्वित आदेश को अपात्र करते हुए समस्त परिणामी लाभ सहित सेवा में वापस लेने के आदेश दिया गया था। जिसे राज्य सरकार द्वारा चुनौती नहीं दी गई। इसके बाद जून 2024 के अंतिम सप्ताह में जब डीजी के रिक्त पदों पर पदोन्नति की कार्रवाही की गई। तब माननीय न्यायालय के आदेश परिपालन में नियमानुसार जीपी सिंह के पदोन्नति हेतु लिफाफा सील कर डीजी का एक पद आरक्षित रखना चाहिए था। चूंकि जीपी सिंह वरिष्ठता क्रम में हिमांशु से ऊपर हैं। हिमांशु गुप्ता द्वारा गृह विभाग के अवर सचिव मनोज श्रीवास्तव से मिलीभगत कर षड्यंत्रपूर्वक विभागीय पदोन्नति समिति को गुमराह किया गया। वहीं सविता खंडेलवाल आत्महत्या मामले में भी हिमांशु गुप्ता संदेह के घेरे में हैं। सविता के पति अखिलेश खंडेलवाल ने हिमांशु गुप्ता पर कई तरह के आरोप लगाये थे।
*अधिकारी राज में कुछ भी संभव*
माननीय उच्चतम न्यायालय आदेश के परिपालन में जीपी सिंह द्वारा 20.12.2024 को समस्त परिणामी लाभ सहित अपनी सेवा में उपस्थित हुए। छत्तीसगढ में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा के सेवानिवृत्ति के बाद 5.2.2025 को डीजी का एक पद रिक्त हुआ। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के पालन हेतु फरवरी 2025 के प्रथम सप्ताह में रिव्यू डीपीसी की मीटिंग आयोजित की गई। उक्त बैठक में नियमानुसार जीपी सिंह की पदोन्नति 2.7.2024 से जिस पद को आरक्षित रखा जाना था, उसमें 5.2.2025 को हिमांशु गुप्ता की पदोन्नति की अनुशंसा की गई। वही जब लोक सेवा आयोग पुनः प्रस्ताव भेजा गया तब षड्यंत्रपूर्वक पदोन्नति 2.7.2024 दिखाई गई। अब इसमें गृह विभाग से चंद अधिकारियों की मिलीभगत से 2.7.2024 डीजी पद निर्माण की जुगत केबिनेट में लगाई गई थी, जो नियमतः तो संभव नही हो सकती थी। लेकिन जंगल राज के अधिकारी शासन में कुछ भी असंभव नही है। उपरोक्त सारे तथ्यों को देखेंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि हिमांशु गुप्ता की पदोन्नति नियम विरुद्ध ही नही षड़यंत्रपूर्वक अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम है। हिमांशु गुप्ता द्वारा डीजी के पैनल हेतु प्रस्ताव में पदोन्नति दिनांक रिब्यू डीपीसी के अनुशंसा के विपरीत दर्ज कराई गई। जबकि वास्तव में दिनांक 5.2.2025 को डीजी के रिक्त पद पर कल्लूरी को पदोन्नत किया जाना चाहिए था न कि हिमांशु ग़़ुप्ता को।
25 मई 2013 को बस्तर के झीरम घाटी में नक्सलियों ने हमला कर कांग्रेस नेताओं की जान ले ली थी। उस समय बस्तर आईजी हिमांशु गुप्ता थे। तब हिमांशु गुप्ता को पुलिस मुख्यालय रायपुर बुला लिया गया था। साथ ही पुलिस अधीक्षक मयंक श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया था। जबकि उस दिन मयंक श्रीवास्तव छुट्टी पर थे और उनकी कोई गलती नही थी। यहां सवाल उठता है कि जब एसपी को निलंबित किया गया लेकिन हिमांशु गुप्ता पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। उस समय हिमांशु गुप्ता की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े हुए थे। कहा गया था कि हमले से समय करीब 300 नक्सली थे और इनका क्षेत्र में कई दिनों से मूवमेंट था। फिर कैसे इतना बड़ा हमला हो गया और प्रशासन को भनक तक नहीं लगी। इस हमले में 29 लोगों की मौत हो गई थी।
*विजया पाठक की रिपोर्ट*
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