छत्तीसगढ़
सारंगढ़-बिलाईगढ़/स्वराज टुडे: नगर पालिका परिषद सारंगढ़ द्वारा 19 जून 2025 को जारी एक सार्वजनिक सूचना ने अब विवाद का रूप ले लिया है। पत्र क्रमांक 1704/राजस्व/2025 के माध्यम से नगर पालिका परिषद ने अपने अधीनस्थ परिसरों में कुल 53 दुकानों के आबंटन हेतु आम सूचना जारी की थी। हालांकि इस प्रक्रिया में आरक्षण अधिनियमों और सामाजिक न्याय के संवैधानिक सिद्धांतों की अनदेखी किए जाने का गंभीर आरोप सामने आया है।
किस बात पर उठा विवाद?
जानकारी के अनुसार, उक्त आबंटन प्रक्रिया में उन वर्गों के लिए निर्धारित आरक्षित कोटे (जैसे भूतपूर्व सैनिक, विकलांगजन, विधवाएं, शिक्षित बेरोजगार युवा, अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग आदि) को पूर्णतः नजरअंदाज कर दिया गया। न तो आरक्षित वर्गों के लिए पृथक कोटा दर्शाया गया, न ही उनके लिए किसी प्रकार की प्राथमिकता की घोषणा की गई।
इसे लेकर शहर के कई जागरूक नागरिकों, समाजसेवियों व आरक्षित वर्गों से जुड़े संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है। इनका कहना है कि यह प्रक्रिया सामाजिक न्याय के अधिकारों का सीधा हनन है और इससे वंचित तबकों के साथ गहरा अन्याय हुआ है।
क्या कहता है कानून?
छत्तीसगढ़ नगर पालिका अधिनियम एवं विभिन्न राज्य शासन आदेशों के अंतर्गत नगर निकायों को यह बाध्यता होती है कि दुकानों, ठेले, बाजार स्थलों या अन्य व्यावसायिक परिसरों के आबंटन में सामाजिक आरक्षण नीति का पूरी तरह पालन किया जाए।
लेकिन सारंगढ़ नगर पालिका द्वारा प्रकाशित इस सूचना में किसी भी आरक्षण वर्ग के लिए कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश या आरक्षित प्रतिशत नहीं दर्शाया गया, जो कि न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों की उपेक्षा भी है।
सामाजिक संगठनों ने दी आंदोलन की चेतावनी
इस मामले को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं पूर्व सैनिक संगठन ने एक स्वर में आबंटन प्रक्रिया को तत्काल निरस्त करने की मांग की है। उनका कहना है कि जब तक नियमानुसार आरक्षण नीति लागू कर नए सिरे से दुकानों का आबंटन नहीं किया जाएगा, तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा—”हम लोग वर्षों से इन वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अगर नगरपालिका जैसे संस्थान ही सामाजिक न्याय को नजरअंदाज करेंगे तो वंचित वर्गों को कभी अवसर नहीं मिलेगा।”
जनता का सवाल – क्या वंचितों को कभी हक मिलेगा?
नगरपालिका की इस लापरवाही के बाद शहर में एक अहम सवाल गूंजने लगा है –
क्या गरीब, विकलांग, विधवा महिलाएं या शिक्षित बेरोजगार कभी अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ पाएंगे, जब सरकारी नीतियां ही उनके खिलाफ खड़ी हों?
सामाजिक न्याय की बात करने वाले तंत्र की चुप्पी और कार्यप्रणाली से आम नागरिकों में निराशा है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर भी इस विषय को उठाया है और मुख्यमंत्री, नगरीय प्रशासन विभाग से हस्तक्षेप की मांग की है।
क्या कहते हैं अधिकारी?
समाचार प्रकाशित होने तक नगर पालिका सारंगढ़ की ओर से इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। न ही यह स्पष्ट किया गया है कि उक्त दुकानों में आरक्षित वर्गों के लिए कोई विशेष प्रावधान किया गया है या नहीं।
जनहित में उठी मांग – प्रक्रिया को निरस्त कर फिर से किया जाए निष्पक्ष आबंटन
विरोध कर रहे संगठनों का स्पष्ट कहना है कि –
● नगर पालिका की दुकान आबंटन प्रक्रिया को तत्काल निरस्त किया जाए।
● नए सिरे से आरक्षण नीति के तहत पारदर्शी प्रक्रिया प्रारंभ की जाए।
● आम सूचना में प्रत्येक वर्ग के लिए आरक्षित प्रतिशत, पात्रता मापदंड और आवेदन की प्रक्रिया को खुले तौर पर प्रकाशित किया जाए।
● वंचित वर्गों की सुनवाई सुनिश्चित हो, ताकि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा हो सके।
यह भी पढ़ें::IIT-BHU में निजता का उल्लंघन, हॉस्टल के बाथरूम में लगाया कैमरा, नहाने के वीडियो किए गए रिकॉर्ड

Editor in Chief