पत्नी की संपत्ति पर पति का अधिकार नहीं, जानें कानूनी वारिस होगा कौन

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हिन्दू महिला की पैतृक संपत्ति पर पति का अधिकार होगा या नहीं ये एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल है, जो भारतीय उत्तराधिकार कानूनों में धार्मिक आधार पर तय होता है। अगर कोई महिला हिंदू है, तो उसके कानूनी वारिस कौन होंगे, यह उसके धर्म और पारिवारिक स्थिति पर निर्भर करता है।

मान लीजिए एक हिंदू विवाहित महिला की संपत्ति है, तो सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि उसकी पैतृक संपत्ति पर पति का कोई अधिकार नहीं होता। NEXGEN Estate Planning Solutions के फाउंडर डायरेक्टर Dr. Deepak Jain से जानते हैं कि इसके कानूनी वारिस कौन-कौन हैं और किन परिस्थितियों में वसीयत की जरूरत पड़ती है।

कानूनी वारिस कौन

हिंदू महिला के कानूनी वारिस में सबसे पहले उसका पति शामिल है। इसके बाद उसके बच्चे हैं, चाहे वे नाबालिग हों, वयस्क हों, विवाहित हों या अविवाहित, लड़का हों या लड़की, गोद लिए गए हों या जैविक। अगर किसी बच्चे की मृत्यु हो गई हो और उसके बच्चे जीवित हों, तो वह मृत बच्चा भी बराबर का हिस्सेदार होगा। उदाहरण के लिए, अगर एक महिला के पति और दो बच्चे हैं, और एक बच्चे की मृत्यु हो गई जिसके दो बच्चे जीवित हैं, तो कुल चार हिस्से होंगे। प्रत्येक को 1/4 हिस्सा मिलेगा, और मृत बच्चे के बच्चों को अपने माता-पिता के हिस्से के बदले 1/8-1/8 हिस्सा मिलेगा।

पति का हक नहीं अगर बच्चे न हों

अगर एक हिंदू महिला की मृत्यु हो जाए और उसके बच्चे जीवित न हों, लेकिन पति जीवित हो, तो उसकी पैतृक संपत्ति- चाहे वह वसीयत, उपहार या शादी से पहले-बाद में मायके से मिली हो- वापस उसके माता-पिता के परिवार में चली जाएगी। पति को इस पर कोई हक नहीं मिलेगा। यह कानून लोगों की उस धारणा को तोड़ता है कि पति को पत्नी की पैतृक संपत्ति पर अधिकार होता है। अगर बच्चे भी न हों और पति फ्लैट में रह रहा हो जो ससुर ने उपहार में दिया था, तो उसकी मृत्यु के बाद वह संपत्ति मायके को वापस करनी होगी।

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वसीयत की जरूरत

अगर महिला वसीयत बना दे और पति को संपत्ति दे दे, तो वह मायके में वापस नहीं जाएगी। अगर बच्चे की मृत्यु हो गई हो या बच्चे ही न हों, तो भी पति को पैतृक संपत्ति पर हक नहीं होगा। हालांकि, पति की दी हुई या महिला की अपनी मेहनत से अर्जित संपत्ति पर पति का अधिकार हो सकता है। इसलिए वसीयत बनवाना जरूरी हो जाता है, ताकि संपत्ति वांछित वारिस को मिल सके और कानूनी उलझन से बचा जा सके।

जटिल स्थिति में वारिस

अगर हिंदू महिला की मृत्यु हो जाए और न तो पति जीवित हो और न ही बच्चे, तो उसकी मेहनत से अर्जित संपत्ति कहां जाएगी? इस स्थिति में कानूनी वारिस पति के परिवार, यानी उसकी सास या अन्य करीबी रिश्तेदार होंगे। अगर पति और बच्चे दोनों न हों, तो संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को मिलेगी। यह स्थिति कई महिलाओं के लिए चिंता का विषय हो सकती है, क्योंकि वे नहीं चाहतीं कि उनकी मेहनत की संपत्ति अनचाही जगह जाए।

वसीयत का महत्व

हिंदू महिला के लिए वसीयत बनाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि कानून में मौजूद ये प्रावधान उन्हें अपनी संपत्ति का वितरण खुद तय करने का अधिकार देते हैं। अगर कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी संपत्ति सास या पति के परिवार को जाए, तो वसीयत के जरिए वह इसे अपने पसंद के वारिस को दे सकती है। यह प्रेरणा कानून में ही निहित है, और जागरूकता के साथ वसीयत बनाना उनकी संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

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दीपक साहू

संपादक

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