आबादी का संतुलन बिगड़ने से क्या होता है..? चीख-चीखकर बता रहा ‘संभल’, अगर अब भी ना समझे तो..!

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उत्तरप्रदेश
लखनऊ/स्वराज टुडे: उत्तर प्रदेश के संभल जिले के खग्गू सराय में 46 साल बाद शिव मंदिर के पट खुलने की घटना ने कई विवादों और इतिहास की परतों को फिर से सामने ला दिया है। यह मंदिर समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद जिया उर रहमान बर्क के घर से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित है।

1978 में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों के बाद यह मंदिर बंद कर दिया गया था। उस समय हिंदू आबादी ने पलायन कर लिया था, और मुस्लिम समुदाय ने इस क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया था।

 

1978 के दंगों के बाद खग्गू सराय के इस इलाके में हिंदू आबादी धीरे-धीरे खत्म हो गई। दंगों के बाद मंदिर की मूर्तियों को तोड़कर कथित तौर पर एक कुएँ में डाल दिया गया और मंदिर को बंद कर दिया गया। इसके बाद इस क्षेत्र पर मुस्लिमों का कब्जा हो गया। चौंकाने वाली बात यह है कि जिया उर रहमान के दादा, शफीकुर रहमान, जो लंबे समय तक इस क्षेत्र के सांसद रहे, ने कभी इस मंदिर को लेकर कोई कदम नहीं उठाया।

शफीकुर रहमान ने इस मंदिर की अनदेखी क्यों की?

यह सवाल उठता है कि क्या उनकी इस्लामी विचारधारा ने उन्हें ऐसा करने से रोका? इस्लाम में मूर्ति पूजा को पाप और मूर्तियों को तोड़ने को पुण्य माना जाता है। इतिहास में यह देखा गया है कि पैगंबर मोहम्मद ने खुद भी मक्का के काबा में स्थित 360 मूर्तियों को तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी। तो आज शायद, उनके अनुयायी भी इसी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं।

शिव मंदिर के पास स्थित कुएँ की खुदाई के दौरान 15-20 फीट नीचे देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ मिली हैं। इनमें माता पार्वती, भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की छोटी-छोटी प्रतिमाएँ शामिल हैं। ये मूर्तियाँ 7-8 इंच लंबी हैं। प्रशासन ने इन मूर्तियों को जाँच के लिए भेजने की बात कही है। 46 साल बाद मंदिर के पट खुलने और मूर्तियाँ मिलने के बाद लोग बड़ी संख्या में वहाँ पहुँच रहे हैं।

स्थानीय लोगों ने मंदिर पर “प्राचीन संभलेश्वर महादेव मंदिर” लिख दिया है, और दीवारों पर “हर-हर महादेव” लिखा हुआ नजर आ रहा है। लोग पूजा-अर्चना के लिए उत्सुक हैं, लेकिन पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। मंदिर के पास मुस्लिम आबादी अधिक होने के चलते, किसी भी अनहोनी को रोकने के लिए पुलिस ने भारी नाकेबंदी की है। संभल बॉर्डर पर हर आने-जाने वाले वाहन की चेकिंग की जा रही है। प्रशासन को खुफिया जानकारी मिली है कि कुछ कट्टरपंथी लोग बाहर से इस इलाके में प्रवेश करने की फिराक में हैं। पुलिस लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए है। संभल मस्जिद के सर्वे के दौरान जिन लोगों ने हिंसा की थी और पुलिस पर हमला किया था, उनमे से भी अधिकतर बाहर से ही आए हुए थे। अब प्रशासन कट्टरपंथियों से इस मंदिर को बचाने में लगा हुआ है।

यह घटना केवल एक मंदिर का मामला नहीं है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या संतुलन और सांप्रदायिक तनाव का भी प्रतीक है। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में मंदिरों को तोड़ने और हिंदुओं को बेदखल करने की घटनाएँ खुलेआम होती हैं, क्योंकि वहाँ हिंदू आबादी बेहद कम हो चुकी है। लेकिन भारत में हिंदुओं की संख्या अभी इतनी है कि उनके सामने इस तरह की घटनाएँ आसानी से नहीं हो सकतीं। सवाल यह है कि अगर आबादी का संतुलन बिगड़ा, तो भविष्य में क्या होगा?

संभल का यह मंदिर न केवल 46 साल पुरानी एक घटना को उजागर करता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि मजहबी कट्टरता और सांप्रदायिक राजनीति का असर कितना गहरा हो सकता है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले को किस दिशा में ले जाता है और इस ऐतिहासिक स्थल को कैसे संरक्षित करता है।

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दीपक साहू

संपादक

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