किराए के मकान में रहता है 9,000 करोड़ का मालिक, पैसे बचाने का दिया मंत्र

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बंगलुरू/स्वराज टुडे: जेरोधा के को-फाउंडर निखिल कामत (Nikhil Kamath) 9000 करोड़ के मालिक हैं लेकिन उनके पास अपना खुद का मकान नहीं हैं. निखिल कामत रियल एस्टेट प्रॉपर्टी में निवेश करने के खिलाफ हैं. वह अभी भी किराए के मकान में ही रहते हैं.

उन्होंने हाल ही में पैसे और संपत्ति पर अपने विचार रखते हुए मेट्रो शहरों में रहने वाले लोगों के लिए एक बात कही है. उन्होंने कहा है कि बेंगलुरु में असली दौलत नहीं है. यहां लोगों के पास कागजी धन है. यहां लोगों ने टेक कंपनियों में काम करके कागजी पैसा कमाया है. टेक कंपनियों के पास कैश नहीं होता इसलिए आपको सिर्फ लगता है कि आप दौलत कमा रहे हैं.

इस बारे में विस्तार से बात करते हुए निखिल कामत ने बताया कि बेंगलुरु जैसे शहरों में प्रॉपर्टी के रेट्स काफी ज्यादा हैं. घरों और ऑफिसों की कीमत और ब्याज दरें भी हद से ज्यादा ऊपर हैं. इतनी ज्यादा कीमतों के पीछे कोई तर्क नहीं बनता है. इस वजह से वह किराए के मकान में रहना पसंद करते हैं. उनका मानना है कि बड़े शहर में एक महंगा घर खरीदने से अच्छा है किराए के घर में रह लिया जाए.

सस्ते किराए के मकान में रहते हैं जेरोधा फाउंडर

जेरोधा फाउंडर निखिल कामत कहते हैं कि वह किराए के मकान में रहते हैं जिसका किराया बहुत कम है. उनका कहना है कि एक घर खरीदने में अच्छी खासी पूंजी लग जाती है और रिटर्न भी अच्छा नहीं मिलता. निखिल कामत ने यह भी कहा कि घर खरीदने में फिलहाल उनकी ये सोच नहीं बदलने वाली है.

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दसवीं के बाद छोड़ दी थी पढ़ाई

जेरोधा के फाउंडर निखिल कामत ने अपनी पहली नौकरी के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. जिसके बाद वह पैसे कमाने के लिए नौकरी करने लगे थे. उनकी पहली नौकरी 8,000 रुपये की थी और वे एक्सीडेंटल हेल्थ इंश्योरेंस बेचने का काम करते थे. उन्होंने बताया कि उस समय वह केवल 17 साल के थे और हाथ में पैसों के आने से बहुत अच्छा महसूस करते थे. हालांकि, अपने दोस्तों को पढ़ाई कर डॉक्टर-इंजीनियर बनते हुए देख उन्हें पढ़ाई छोड़ने का मलाल भी होता था.

माता-पिता की बढ़ गई थी चिंता

उन्होंने बताया कि उनके माता पिता उनकी पढ़ाई छोड़कर नौकरी करने के फैसले के कारण काफी चिंतित रहते थे. उन्हें मुझसे ज्यादा उम्मीद नहीं थी. मैं एक पढ़े लिखे दक्षिण भारतीय परिवार से आता हूं. हमारे ऊपर रिश्तेदारों के बच्चों की तरह सफल होने का दबाव था. इसके बावजूद मेरे माता-पिता ने मेरे ऊपर विश्वास रखा और स्थिति को अच्छी तरह संभाला.

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दीपक साहू

संपादक

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