बचपन में हुई बड़ी बेइज्जती, बेहद दयनीय परिस्थिति के बावजूद आसमान छूने का था जुनून, आज केंद्र की हाई लेवल कमिटी का सदस्य है एक रिक्शेवाला का बेटा

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* रिक्शा चालक थे गोविंद जायसवाल के पिता नारायण
* बचपन में लोगों ने दी उन्हें भी रिक्शा खरीदने की सलाह
* मेहनत के बल पर हासिल की यूपीएससी में 48वीं रैंक

नई दिल्ली/स्वराज टुडे: पहली घटना- ‘बाहर निकालो इसे, कैसे लड़कों से दोस्ती करते हो… दोस्त बनाने के लिए तुम्हें एक रिक्शेवाले का बेटा ही मिला।’ और महज 11 साल के एक लड़के को बेइज्जत कर उसके दोस्त के घर से निकाल दिया गया।

दूसरी घटना- ‘क्यों पढ़ाई लिखाई के चक्कर में पड़े हो? पढ़ाई करके तुम्हें क्या मिलेगा? इससे अच्छा है दो रिक्शे खरीद लो। एक खुद चलाना और दूसरा किराए पर उठाना। तुम्हारे लिए यही सही रहेगा।’ जब पड़ोस के लोगों ने उसे किताबों में डूबे हुए देखा तो यही सलाह दी। लेकिन, इस लड़के की निगाहें कहीं और ही थी। वो खुद के साथ-साथ अपने उस पिता की जिंदगी में भी बदलाव लाना चाहता था, जो रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा कर रहे थे।

अपने साथ घटी इन दोनों घटनाओं को उस लड़के ने दिल से लगा लिया। दोस्त की घर हुई बेइज्जती और रिक्शा चलाने की सलाह मिलने के बाद उसे समझ आ चुका था कि जब तक वो अपने हालात नहीं बदलेगा, उसे हर मोड़ पर इसी तरह के अपमान के घूंट पीने पड़ेंगे। उसने अपने कुछ दोस्तों से पूछा कि ऐसी कौन सी नौकरी है, जिसे सबसे ऊंचा माना जाता है? जवाब मिला- आईएएस की नौकरी। बस उस लड़के ने ठान लिया कि राह में भले ही कितनी मुश्किलें क्यों ना आएं, वो आईएएस अधिकारी बनकर रहेगा।

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गरीबी और तानों के बीच हासिल किया मुकाम

इस लड़के का नाम था गोविंद जायसवाल। शनिवार को जब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने परीक्षाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक हाई लेवल कमेटी का ऐलान किया तो उसमें सदस्य सचिव के तौर पर आईएएस अधिकारी गोविंद जायसवाल का नाम रखा गया। गरीबी के हालात और समाज के तानों से लड़ते हुए गोविंद ने आईएएस अधिकारी तक का सफर तय किया। हालांकि, उनकी ये मंजिल आसान बिल्कुल नहीं थी। सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उनके घर के आर्थिक हालात थे, जिन्होंने कदम-कदम पर उनका रास्ता रोका।

रिक्शा चलाकर पिता ने बच्चों को पढ़ाया

गोविंद जायसवाल के पिता नारायण रिक्शा चलाकर अपने परिवार का गुजारा करते थे। जब खर्चे बढ़े तो उन्होंने कुछ रिक्शे खरीदे और एक सरकारी राशन की दुकान पर किराए पर लगा दिए। गोविंद के अलावा नारायण की तीन बेटियां भी थीं। आर्थिक हालात खराब होने के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकने दी। तीनों बेटियों के ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने इन्हीं रिक्शों से होने वाली मामूली कमाई से अपनी तीनों बेटियों की शादी की। अब परिवार की उम्मीदें केवल गोविंद पर टिकी थीं। उधर गोविंद भी अपने लक्ष्य को हासिल करने की तैयारी में पूरी शिद्दत से लग गए।

कभी-कभी नहीं खाते थे एक वक्त का खाना

वाराणसी में रहकर तैयारी करने के दौरान पिता ने जब देखा कि एक कमरे के घर में उनका बेटा अपनी पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पा रहा है, तो उन्होंने उसे यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली भेज दिया। दिल्ली आकर गोविंद ने जहां एक तरफ अपनी तैयारी जारी रखी, तो वहीं दूसरी तरफ आर्थिक खर्चे पूरे करने के लिए बच्चों को गणित का ट्यूशन देने लगे। गोविंद के पास कभी-कभी स्थिति ऐसी भी आती थी कि पैसों की कमी की वजह से वो एक वक्त का खाना भी छोड़ देते थे। जब दिक्कतें बढ़ीं तो उनके पिता ने गांव में अपनी जमीन का एक हिस्सा बेच दिया।

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तैयारी के दौरान जब खड़ा हुआ बड़ा संकट

गोविंद पूरे मन से अपनी तैयारी में लगे थे, लेकिन अभी शायद उनके सामने मुश्किलों का दौर और लंबा चलना था। उनके दिल्ली रहने के दौरान पिता की तबीयत खराब हो गई और उन्हें रिक्शा चलाना बंद करना पड़ा। ऐसे में गोविंद के सामने संकट खड़ा हो गया। तैयारी बीच में छोड़कर वो घर नहीं लौट सकते थे, क्योंकि ऐसा करने से पूरा परिवार निराश हो जाता। उनके पास कोई जमा-पूंजी भी नहीं थी, जिससे वो कोई छोटा-मोटा काम शुरू कर सकें। इसी उधेड़बुन में लगे गोविंद ने तय किया वो अपनी तैयारी जारी रखेंगे और साल 2006 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी। अपने पहले ही प्रयास में गोविंद को 48वीं रैंक हासिल हुई।

पहली सैलरी से कराया पिता के पैर का इलाज

आईएएस अधिकारी बनने के बाद अपनी पहली सैलरी से गोविंद ने पिता के घायल पैर का इलाज कराया। गोविंद बताते हैं कि अगर आप सफल होना चाहते हैं तो कभी भी अपनी परिस्थितियों के आधार पर अपने लिए लक्ष्य तय मत कीजिए। अगर वो एक रिक्शा चलाने वाले के बेटे होकर आईएएस अधिकारी बन सकते हैं, तो फिर कोई भी ये सपना देख सकता है। महज 22 साल की उम्र में आईएएस अधिकारी बनने वाले गोविंद जायसवाल को अब शिक्षा मंत्रालय की हाई लेवल कमेटी का सदस्य सचिव बनाया गया है।

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दीपक साहू

संपादक

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