छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: इन दिनों समाज में चिंता की सबसे बड़ी वजह जघन्य अपराधों में नाबालिगों की संलिप्तता है । पढ़ने- लिखने और अपना करियर बनाने की उम्र में बच्चे दुष्कर्म, गैंगरेप, चोरी, डकैती और हत्या जैसी वारदातों को बेखौफ अंजाम दे रहे हैं । उनमें कानून का भय भी नजर नहीं आता । आइए जानते हैं कि बाल अपराधों के कौन कौन से कारक हैं और इसे कैसे रोका जा सकता है…
बाल अपराध क्या है ?
समाज में मूल्यों के आदर्श प्रतिमान की स्थापना एवं सुचारू संचालन हेतु कानून बनाए गए हैं। कानून का उल्लंघन अपराध कहलाता है। जब अपराध 18 वर्ष से कम आयु के बालक अथवा किशोर द्वारा किया जाता है तो इसे बाल अपराध कहते हैं।
बाल अपराध बढ़ने के कारण ?
बाल अपराध के बढ़ने के कारणों को निम्नलिखित शीर्षकों में वर्णित कर सकते हैं:-
(1) परिवार
(2) समाज
(3) वातावरण
(1) परिवार – परिवार में माता पिता में से एक की अनुपस्थिति से बच्चे का पोषण प्रभावित होता हैं। माता-पिता के बीच उचित संबंधों के अभाव का असर भी बच्चे पर होता है। माता-पिता दोनों का नौकरीपेशा होना, संतान को समय न दे पाना बच्चे में तनाव और कुंठा को जन्म देता है और उन्हें बाल अपराधी बनाता है। परिवार में भाई- बहन की संख्या ज्यादा होना, स्वयं को उपेक्षित समझना, उचित संरक्षण का अभाव, भाई-बहन के शिक्षा, रंगरूप, इत्यादि की प्रतिस्पर्धा भी बाल अपराध को जन्म देती है। परिवार में माता-पिता का उचित संरक्षण और पोषण बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। परिवार की आर्थिक स्थिति भी बाल अपराधों को जन्म देती है। निर्धनता अभिशाप है, उचित शिक्षा का अभाव, इच्छाओं का दमन कराता है जिससे बालक अनैतिक कार्यों की ओर उन्मुख होते हैं।
(2) समाज – समाज का उचित वातावरण एक अच्छे नागरिक को जन्म देता है इसके विपरीत ऐसा समाज जो जातिगत भेदभाव रखता है, बालमन को प्रभावित करता है। उन्हें बाल अपराधी बनाता है। समाज के बदलते स्वरूप में फ्लैट संस्कृति के कारण खेल मैदानों का आभाव हो गया है । मनोरंजन के साधन डिजिटल क्रांति से मोबाइल एवं टी.वी तक सीमित हो गए हैं दोनो ही माध्यमों से हत्या, डकैती, अपहरण, सेक्स, तस्करी के दृश्य बच्चों में हिंसात्मक, आक्रात्मक व्यवहारों की जन्म दे रहे हैं। बच्चे बाल अपराधी होने के साथ- साथ मानसिक रोगी भी बन रहे हैं। समाज में तलाक जैसे चीजों को स्वीकारने से एकल अभिभावक का पोषण सांवेगिक परिपक्वता नहीं देता ।
(3) वातावरण: सामाजिक वातावरण में शराब, जुऐं जैसी चीजें आम हो गयी हैं। बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति की वजह से वे इसका सेवन करते हैं और फिर नैतिक मूल्यों को भूलकर बाल अपराधी बन जाते हैं। नशे का सेवन समाज में उच्च वर्ग के लिए शान तो निम्नवर्ग के लिए दुःख भुलाने वाला टॉनिक हो सकता है लेकिन दोनो ही वर्ग के बालमन में इसके प्रति आकर्षण को जन्म देता है और वे भी इसके आदी हो जाते हैं।
बाल अपराध की रोकथाम के लिए सरकार, समाज एवं माता-पिता की भूमिका
(1) सरकार की भूमिका – भारत में बाल अपराध की रोकथाम हेतु Reformatory School Act 1897 के तहत सुधार गृह एवं सुधार स्कूल हैं सर्टीफाइड स्कूल हैं, बाल बंदीगृह हैं जहां बाल अपराधियों को न केवल शिक्षित किया जाता है अपितु विभिन्न प्रकार का कौशल प्रशिक्षण एवं औद्योगिक प्रशिक्षण, सिलाई, चमड़े का काम, बढ़ई का काम सिखाकर रोजगार हेतु प्रशिक्षित किया जाता है ताकि बाहर जाकर वे आत्मनिर्भर बनें ।
* विभिन्न स्कूलों में मनोवैज्ञानिक परामर्श दाताओं की पदस्थापना की जा रही है ताकि ये बच्चों में उत्पन्न आक्रामकता, द्वेष, हिंसा, प्रतिस्पर्धा व असफलता जैसे संवेगों पर नियंत्रण सिखाकर उन्हें बाल अपराधी बनने से रोक सकें ।
* एकल परिवार एवं माता-पिता के बीच तलाक जैसी चीजों को रोकने के लिए परामर्श दाताओं की पदस्थापना की गयी है।
* सरकार द्वारा बाल अपराधियों की रोकथाम हेतु सुधारात्मक प्रयासों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक प्रयास भी किए जाते हैं जिसमें निरीक्षण, परीक्षण, जीवनविधि, साक्षाकार का प्रयोग करते हैं । Play therapy एवं Psychodrama का भी प्रयोग प्रभावशाली दंग से किया जाता है।
(2) समाज की भूमिका – बाल अपराध की रोकथाम हेतु समाज में जातिगत भेदभाव समाप्त करना होगा। रेडियो, टी.वी. एवं मोबाइल में प्रसारित सामग्री में उच्च नैतिक मूल्यों का समावेश होना चाहिए। अत्यधिक हिंसात्मक घटनाओं का चित्रण एवं दर्शन बंद करना चाहिए।
(3) माता- पिता की भूमिका:- माता-पिता को बच्चों के लालन-पालन का प्रशिक्षण देना चाहिए। पोषण में अति संरक्षण नहीं होना चाहिए । बच्चों में आत्मविश्वास विकसित करना चाहिए। सफलता एवं असफलता दोनों को स्वीकार करने का सामर्थ्य देना चाहिए। तलाक जैसी चीजों से दूर रहना होगा। नौकरीपेशा माता-पिता को प्रयास करना चाहिए कि पूरा परिवार एक साथ भोजन करें और इस दौरान बच्चों से बातें करना चाहिए । उन्हें पर्याप्त समय देना चाहिए। टीवी सीरियल और फिल्मों में दिखाए जाने वाली मारधाड़ खून खराबा केवल अभिनय होता है जिसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होता ।
उन्हें इस बात की भी जानकारी देना चाहिए कि प्रकृति ने हर चीज के लिए समय निर्धारित किया हुआ है । उज्जवल भविष्य के लिए पढ़ने लिखने की उम्र में पूरा ध्यान पढ़ाई लिखाई में ही होना चाहिए । किशोरावस्था में जीवन को मर्यादित रखें । परिपक्व हो जाने और जीवन व्यवस्थित हो जाने के उपरांत ही गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के बारे में विचार करना चाहिए ।
डॉ.अवंतिका कौशिल
सहायक प्राध्यापिका(मनोविज्ञान)
शासकीय इंजी.विश्वेश्वरैया स्नातकोत्तर महाविद्यालय,कोरबा (छग)
Editor in Chief