आधुनिक समाज में बिखरते परिवार: गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें सेवा, सहिष्णुता और संयम की आवश्यकता होती है- हिना यास्मीन खान, लोक अभियोजन अधिकारी

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गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें सेवा, सहिष्णुता और संयम की आवश्यकता होती है। यह उक्ति पुरुष और महिला दोनों के लिए हैं।

महिला हो या पुरुष अब उनका विवाह के लिये मैरिड मटेरियल होना इस युग में ज़रूरी है। वर्तमान में जहां हमारी लाइफ़ स्टाइल बदली। आधुनिकता के पैमाने पर ख़ुद को रख कर सोच बदली। यह सोच ही हमें जीवन के अलग अलग किरदार में फिट और अनफिट रखती है।

ज्यादा इमोशनल तो ज्यादा कठोर होना भी नुकसानदेह

कोई बहुत ज़्यादा इमोशनल होता है तो कोई कठोर। किसी को बाहर रहना , घूमना पसंद है तो कोई घर की चार दीवारों में सुकून महसूस करता है। बस यह जान लीजिए कि घर के किचन से लेकर बेडरूम ,फिर ड्राइंग रूम से लेकर ऑफिस के गलियारे के सुलझे उलझे काम , उसके तनाव , बाज़ार की गिटपिट शॉपिंग , बूढ़े मातापिता के लिए अपने कर्तव्य और बच्चों के स्कूल , उनकी जिम्मेदारियों के बीच की ज़िंदगी के ताने बाने , सहन के उतार चढ़ाव का नाम ही विवाह है ।

विवाह जिम्मेदारियां से भरा टोकरा

विवाह को कभी स्थाई हनीमून नहीं समझना चाहिए । यह ज़िम्मेदारियों से भरा वह टोकरा है जो अपने साथ बहुत से ऐसे मनोभाव को लाता है जो हमें बिलकुल पसंद नहीं लेकिन यदि आप मेरिड मटेरियल हैं तो इसे आपको अपनाना होगा ।  आलस्य का त्याग , नम्रता, सहनशीलता , सामंजस्य यह गुण और मनोभाव है जो ज़रूरी है विवाह को सफल बनाएँ रखने के लिए।

बेटियों को संस्कारी बनाना सबसे अहम

हमारी बेटियों को दी हुई परवरिश बहुत अहम है कि हमने उन्हें पति के घर जाने से पहले क्या सीख दी है ? अत्यधिक लाड़ की चाशनी में डूबी हुई बालाएँ अपने पारिवारिक जीवन को सरल ,सहज रूप से नहीं जी पाती। नतीजन मायके का खिंचाव उन्हें बार बार ससुराल से जुड़ने में रोकता है । इसमें अहम भूमिका में उनके मातापिता और भाई बहन भी होते हैं जो आज के माहौल के हिसाब से “ दामाद हमारे क़ाबू में है “ जैसी सोच से पूर्ण होते हैं ।

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विवाहित बेटियों का मायके में दखलंदाजी खतरनाक

यह बेटियां कभी अपना सुख साम्राज्य ससुराल में नहीं बना पाती क्योंकि “जब सींचा ही नहीं तो फला नहीं “ की तर्ज़ पर जीती वो एक अलग कुंठित मानसिकता में क़ैद हो कभी ससुराल से पलायन करती हैं तो कभी बार बार मायके की ओर रुख़ कर अपने भाइयों और कभी अपनी बहनों की ज़िंदगी में दखल देती हैं जिसका परिणाम कभी सुखद नहीं होता किंतु स्वयं इन झंझावत् में घिर कर इस तरह का समूह बनाने की कोशिश में वह कभी बिखर जाती हैं कभी ख़त्म हो जाती है , लेकिन उनके प्रथम प्रयास को आश्रय देने वाले, उसे उत्साहित करने वाले उसके माता पिता  कभी यह समझ नहीं पाते कि वास्तव में उन्हें करना क्या था और कर क्या बैठे ।

हमारे कर्मों पर टिकी होती है आने वाली पीढ़ी का भविष्य

अब सोच बदलनी होगी कि विवाह मात्र सुख सुविधा और प्रेम की पेंग बढ़ाने का संस्कार नहीं है । यह आपकी पीढ़ी को भविष्य के लिए तैयार करने , आपके साथी और उसके परिवार के जीवन, समृद्धि , स्वास्थ्य , सम्मान को बढ़ाने की वह जॉब है जो अनवरत चालू रहता है आपके जीवन में कर्म से , आपके जीवन के बाद उन कर्मों की परिणति से ।

श्रीमती हिना यास्मीन खान
लोक अभियोजन अधिकारी, धमतरी

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दीपक साहू

संपादक

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