
छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: दिनांक 15/11/2024 को विश्व के प्रथम आदिवासी शक्तिपीठ कोरबा में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ ,एवम बड़े ही धूमधाम से धरती के आबा भगवान बिरसा मुंडा जी की 150 वीं जयंती अधिकार दिवस के रूप में मनाई गयी। इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्त शक्तिपीठ के संरक्षक मोहन सिंह प्रधान व रघुवीर सिंह मार्को जी के द्वारा उनके द्वारा किए गए कार्यों को जिसमें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ और उनके शोषण के खिलाफ जल जंगल जमीन एवं अपने सांस्कृतिक संस्कृति परंपराओं की रक्षा सहित अंग्रेजों की विशाल सेना को जो संपूर्ण साधन संपन्न थे उनके खिलाफ मात्र तीर धनुष एवं आदिवासी एकता के कारण उनके दांत खट्टे कर दिए।
वहीं पर और मजबूर कर दिया गया कि जल जंगल जमीन को छोड़ने के लिए ऐसा योद्धा जिन्हें अपनी उम्र के 25 वर्ष में ही अंग्रेजों ने रांची के सेंट्रल जेल में स्लो प्वाइजन देकर मार डाला । आज बड़ा ही गौरव का दिन है कि इस आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा जी के योगदान के कारण और उन्हें याद करने के लिए भारत सरकार एवं राज्य सरकार भी भव्य कार्यक्रम आयोजित कर रही है ।
इसके लिए बधाई देते हैं लेकिन जो लड़ाई उस सदी में लड़ी गई और जिन कारणों से लड़ी गई ,थी, वही स्वरूप वर्तमान में भी आदिवासियों को जल जंगल जमीन से डेवलपमेंट के सुनियोजित तरीके से बेदखल एवं विस्थापन किया जा रहा है । आज भी आदिवासी अपने एवं हक ,हकूक सहित अधिकार के लिए संविधान सम्मत मांगों को लेकर सड़क पर है । वास्तव में बिरसा मुंडा जी को अगर सही श्रद्धांजलि देना है तो उनके द्वारा किए गए कार्यों को सरकार आत्मबोध करते हुए विकास के नाम पर आदिवासियों का विस्थापन एवं उनके हक एवं अधिकारों को संरक्षित करें।
आदिवासी समाज से एवं भारी संख्या में सभागार में उपस्थित आम नागरिकों से आवाहन किया गया किया 21वीं सदी का भारत है और 21वीं सदी का आदिवासी समाज है । वक्त आ गया है यह समाज जातियों में ना बटकर, फिरकों में न बटकर भौगोलिक परिस्थितियों से ना बढ़कर आज सबों को अपनी सांस्कृतिक मूल्यों का रक्षा सहित वैचारिक एकता सामाजिक एकता और समाज में शिक्षा चिकित्सा स्वास्थ्य एवं रोजगार सहित अपने अधिकार के लिए सतर्क रहना पड़ेगा ।
देश में सिर्फ 1857 की क्रांति को ही और उसमें शामिल कुछ लोगों को ही इतिहास में स्थान दिया गया है लेकिन 1857 के पहले सन 1760 से लेकर सन 1900 तक और उसके बाद 1942 से लेकर 1945 तक आदिवासियों के महायुद्ध यानी जिन्होंने मुगल एवं अंग्रेजों से लगातार विद्रोह किया । उस काल खंड में मुगलों एवं अंग्रेजों के साथ ही राजमहलों के अधीन सिर्फ गुलाम ही रहते थे लेकिन आदिवासियों ने कभी भी इनकी गुलामिया स्वीकार नहीं की और ना ही आदिवासी कोम ने समर्पण किया।
18 वीं, 19वीं और 20वीं शताब्दी के कालखंड में अलग-अलग प्रमुख आदिवासी क्रांतिकारी के विद्रोह जैसे आदिवासी क्रांतिकारी जगन्नाथ सिंह चुवाड विद्रोह, संथाल विद्रोह तिलका मांझी जी,कोल विद्रोह,चकमा विद्रोह, पहाड़िया विद्रोह, संताल विद्रोह,अंडमान निकोबार का विद्रोह, जैसे कई क्रांतिकारी लड़ाइयां अपने जल जंगल जमीन संस्कृति और देश के रक्षा के लिए महान आदिवासी वीर सपूतों ने अपना सर्वस्त्र बलिदान किया जिन्हें भारतीय इतिहास के पन्ने पर जिस तरह से वैश्विक सोच के आधार पर स्थान मिलने थे इतिहासकारों ने इन्हें अपने लेखनी में स्थान ही नहीं दिया और इतिहास को भी इन्होंने अपने हिसाब से लिखकर परोसने का ही काम किया । आज देश की आधी कौम इन वीर आदिवासी योद्धाओं के राष्ट्र के प्रति योगदान और बलिदान से ही वाकिफ ही नही है।
इसी तरह देश के कोने-कोने में हर राज्य में जहां-जहां आदिवासियों का गढ़ किला महल एवं राज्य सत्ता स्थापित था वहां वहां पर प्रकृति के साथ-साथ मिनरल की भी भारी प्रचुर मात्रा थी साथ समृद्ध शासन काल था लेकिन उसे कल में भी बड़े-बड़े काल के दंश भी देखे गए और अंग्रेजों के द्वारा मनमाना राजस्व वसूलना एवं कई प्रकार के शोषण की शुरुआत कर दी गई इसके खिलाफ जैसे छत्तीसगढ़ में शहीद वीर नारायण सिंह जी एवं गुंडाधुर जी का नाम बड़े ही सम्मान के साथ वीर शहीदों में अंकित है। इन सभी महायोद्धाओं को भी याद कर नमन किया गया जिनकी स्मृति को इतिहास में विस्मृति करने की कोशिश की ।
आदिवासी राजाओं ने एवं महा योद्धाओं ने जब राजस्थान के मेवाड़ में अरावली पर्वत पर 16 हवीं शताब्दी में मुगलों के आक्रमण के दौरान हल्दीघाटी युद्ध में आदिवासी महायोद्धा राणा पूंजा जी ने जो की गोरिल्ला युद्ध प्रणाली के जनक थे जिनका नाम मेवाड़ के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है , महाप्रकर्मी योद्धा महाराजा महाराणा प्रताप जी को उनके लोगों ने ही युद्ध के दौरान धोखा दिया तो उस समय आदिवासी भील राजा महा योद्धा राणा पूंजा भील ने महाराणा प्रताप जी का साथ देते हुए अपनी वीरता को साबित किया लेकिन भारतीय इतिहास में राणा पुंजा भील जी का स्थान भी एक दायरे में ही रखा गया है आज के दिन उन सभी अमर शहीदों में योद्धाओं को वक्ताओं ने अपने अभिव्यक्ति में बड़े विस्तार से चर्चा की।
साथ ही आये हुए कलाकारों के द्वारा बहुत ही आकर्षक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए उपरोक्त अवसर पर कैबिनेट मंत्री श्रम उद्योग वाणिज्य श्री लखन देवांगन जी के अस्वस्थ होने के कारण उनके प्रतिनिधि के रूप में श्री नरेंद्र देवांगन जी उपस्थित रहे साथ ही नगर पालिका निगम कोरबा के महापौर राजकिशोर प्रसाद नगर पालिका निगम कोरबा के सभापति श्री श्याम सुंदर सोनी सहित सर्वाधिक समाज के जिला अध्यक्ष श्री सेवक राम मरावी, जिला अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ सुश्री रूप तिर्की सर्व आदिवासी समाज के सभी प्रमुख गण शंभू शक्ति सेना के समस्त पदाधिकारी जंगो रायता र मातृशक्ति संघ के पदाधिकारी एवं आदिवासी शक्तिपीठ के रघुवीर सिंह मार्को जी अध्यक्ष श्री नारायण सिंह कंवर जी महासचिव एमपी सिंह तंवर जी सांस्कृतिक प्रमुख रूपेंद्र पैंकरा, शासकीय सेवक संघ के अध्यक्ष गंगा सिंह कंवर बलराम सिंह जी सुभाष चंद्र भगत श्री ठाकुर जी ओम प्रकाश प्रधान श्री बी एस पैंकरा श्री निकुंज जी सहित भारी संख्या में सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी एवं प्रतिनिधि गण एवं नागरिक बन्धु उपस्थित रहे उक्त अवसर पर श्री रघुवीर सिंह मार्को जी श्री सुभाष चंद्र भगत जी सहित कई वक्ताओं ने बड़े ही प्रमुखता के साथ अपने विचार रखें एवं मुख्य अतिथि के आसंदी से श्री नरेंद्र देवांगन श्री राजकिशोर प्रसाद एवं श्री श्याम सुंदर सोनी जी ने भी अपनी बधाई प्रेषित कर समाज को सदैव सहयोग करने की बात कही अंत में श्री श्री नारायण कंवर जी ने आए हुए अतिथियों का एवं जनमानस का शक्तिपीठ की ओर से आभार प्रदर्शन किया पूरे कार्यक्रम के मंचीय संचालन श्री निर्मल सिंह राज जी के द्वारा किया गया।

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