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अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के कुलसचिव को हटाने की मांग को लेकर एनएसयूआई ने किया जमकर प्रदर्शन

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बिलासपुर/स्वराज टुडे: एनएसयूआई के प्रदेश सचिव रंजेश सिंह की अगुवाई में भ्रष्टाचार में लिप्त अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के कुलसचिव के विरुद्ध सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय का घेराव कर कुलपति को ज्ञापन सौपा।

एनएसयूआई ने कुल सचिव पर लगाए अनेक गंभीर आरोप

रंजेश सिंह ने बताया कि लगातार अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के कुलसचिव अपनी प्रशासनिक अक्षमता और छात्र विरोधी गतिविधि करते आ रहे है। जहां अशासकीय महाविद्यालयों को शोध केंद्र बनाया गया है, लेकिन वहां अवैध वसूली हो रही है। रजिस्ट्रार इन्हें संरक्षण दे रहे हैं। कई अशासकीय महाविद्याल यूजीसी के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। क्योंकि शिकायत के बाद प्राइवेट फॉर्म के पोर्टल से हटाया गया, लेकिन इसे चोरी छुपे फिर से शामिल कर लिया गया।

बिना नियम के अशासकीय महाविद्यालयों को परीक्षा केंद्र बना दिया जाता है। केंद्र बनाने से पहले इनकी जांच तक नहीं की जाती है । विश्वविद्यालय एक फिर फीस अनेक क्यों ? प्राइवेट कालेजों में मेहरबानी बंद करें। पीएचडी शुल्क मामले में शासकीय व अशासकीय के बीच बड़ा अंतर है। शोधार्थियों का पैसा वापस किया जाए।

विश्वविद्यालय के ऑफिसियल वेबसाइट पर किसी भी प्रकार की जानकारी उपलब्ध नहीं है और न ही वेबसाइट अपडेट होता है। अधिकांश प्राइवेट कॉलेज बिना प्राचार्य और स्टाफ के संचालित है। यूजीसी के धारा 28 के अंतर्गत कागजों में भर्ती हुई है। इसकी जांच की जाए। बिना नियुक्ति वाले कालेजों की तत्काल संबंद्धता समाप्त की जाए।

एनएसयूआई ने दिया एक सप्ताह का अल्टीमेटम

रंजेश सिंह एवम एनएसयूआई छात्र नेता ने सीधे तौर पर कहा कि इन सभी उक्त बिंदु से ये सिद्ध होता है कि कुलसचिव इस कुर्सी की गरिमा और पद को तार तार कर रहे है। अतः छात्रहित में निर्णय लेते हुए कुलसचिव को पद से हटाया जाए एवम निष्पक्ष इन सभी विषय में जांच भी किया जाए। अगर एक हफ्ते के भीतर हटाने का निर्णय नहीं लिया जाता है, तो हम क्रमबद्ध तरीके से उग्र आन्दोलन की ओर अग्रसर होंगे। जिसकी पूरी जिम्मेदारी विश्वविद्यालय प्रशासन की होगी।

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एनएसयूआई के इन आरोपों पर अगर विश्वविद्यालय प्रबंधन गंभीरता पूर्वक जांच एवं कार्रवाई करता है तो यकीनन प्राचार्य विहीन महाविद्यालयों की मान्यता खतरे में पड़ सकती है । साथ ही अवैध वसूली समेत अनेक समस्याओं का निराकरण हो सकता है । बहरहाल देखना होगा कि इस मामले में विश्वविद्यालय प्रबंधन क्या कार्रवाई करता है।

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Deepak Sahu

Editor in Chief

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