क्या हमारे देश के श्री श्री राजनेताओं को शर्म आएगी कभी ?- राकेश सिंह परिहार

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छत्तीसगढ़
बिलासपुर/स्वराज टुडे: यह सवाल आपके दिलो दिमाग जरूर कौंधीगी अगर आपका जमीर मरा हुआ नहीं है तो .. क्यू ? यह जानने के लिए आपको महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के ग्राम हिवरेबाजार के बारे पढ़ना होगा या वहां जा कर देखना पड़ेगा कि कैसे 1995 के पूर्व का गांव और 1995 के बाद के इस गांव में क्या बदला या यू कहे की क्या बदल गया की विकास पर आधारित ऐसा कोई पुरस्कार नहीं जो इस गांव को नहीं मिला हो।

यह भी गांव देश के उन गांव की ही तरह था जो अपने बदनीयती से लड़ रहा था .. गरीबी और पलायन के लिए मजबूर देश के आम गावों की तरह..
*” कौन कहता है आसमा में सुराख नहीं हो सकता , एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो”*
एक व्यक्ति ने 1995 वे सरपंच बनने के बाद बीते 30 सालों में अपने गांव की दिशा और कैसे बदल दी यह जानने और समझने की जरूरत हमारे देश के सर्वोच्च पद आसीन व्यक्ति ( प्रधानमंत्री) और सबसे नीचे पद पर बैठे व्यक्ति( सरपंच) तक को सोचने,समझने और शर्म महसूस करने की आवश्यकता है।

एक गांव जो सुखा और अकाल से ग्रस्त था उस गांव में रहने वाला हर व्यक्ति करीब करीब गरीबी रेखा के नीचे था .. जीवन यापन के लिए पलायन को मजबूर था।
उस गांव में अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों से लेकर जिला परिषद के स्कूलों के तक की मुकम्मल व्यवस्था है ।
ध्यान रहे मै कोई जिले की बात नहीं कर रहा क्योंकि ऐसी व्यवस्था जिला मुख्यालयों में ही होती है।
हम बात कर रहे है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के ग्राम हिवरेबाजार की तकदीर और तस्वीर बदलना तब शुरू होती है “जब 1995 में पोपट राव बाग़ुजी सरपंच बने “।
पोपट राव ने अपनी मेहनत और गांव वालो के सहयोग से अपने गांव हिवरेबाजार की तकदीर और तस्वीर बदल दी।आज गांव में एक भी घर कच्चा नहीं है।

साल 1990 तक इस गांव के 90 फीसद परिवार गरीब हो गए..पीने के लिए भी पानी नहीं था… सिंचाई के बिना फसलें सूख जाती थीं… लोग घर चलाने के लिए शहरों में मजदूरी करते थे. फिर सरपंच पोपट राव ने गांव की तस्वीर बदलने का फैसला किया..आज इस गांव में करीब 90 परिवार करोड़पति हैं…।

ग्राम संसद में हमारे देश की संसद की तरह नहीं है जहां शोर में देश की हित की अनदेखी होती है … हिवरे बाजार के ग्राम संसद में सरकार से मिलने वाली राशि और उस राशि का विकास का ब्यौरा रखा जाता है जिसे सरपंच पेस करता है और खर्च का ब्यौरा गांव का कोई भी नागरिक देख सकता है … क्या ऐसी प्रक्रिया देश के सर्वोच्च संसद में देश का नागरिक परिकल्पना भी कर सकता है..

हमारे देश के सभी सांसदों, विधायकों, महापौरों,जिला पंचायत अध्यक्षों, नगर पंचायत अध्यक्षों, सरपंचों को महाराष्ट्र के अहमदनगर के ग्राम हिब्रेबाजार को देखकर क्या शर्म महसूस करेंगे कि सबसे गरीब गांव कैसे देश का सबसे संपन्न गांव बन गया। जहां बुनियादी सुविधाओं के साथ साथ लाइब्रेरी, ग्राम संसद, ग्राम दर्शन .. यहां तक कि ओपन आडिट की व्यवस्था है जहां गांव का कोई भी व्यक्ति आय और व्यय के लेखा जोखा को देख सकता है ।
अगर यह देखने और पढ़ने के बाद शर्म आ रही हो तो ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करे क्योंकि इसके जमीर का ईमान होना अत्यंत जरूरी है ।
उन बेशर्मों को शर्म जरूर आनी चाहिए जिन्होंने पद में रहकर अपने जमीर को मारकर पद का उपभोग किया है।

*(यह लेखक का निजी विचार है)*
राकेश प्रताप सिंह परिहार ( कार्यकारी अध्यक्ष अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति , पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए संघर्षरत)

दीपक साहू

संपादक

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