छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: कुडुख (उरांव) समाज द्वारा अपने जन्मदाता आराध्य एवं आदि गुरु भगवान महादेव पार्वती की उपासना का पर्व (करम) करम पेड़ के तीन डाल को रुढ़ीजन्य परंपरा के आधार पर विधि पूर्वक स्थापना कर भगवान को प्रसन्न करने रात भर नृत्य गान कर करम देव की सेवा किया जाता है।
आदिवासी उरांव समाज द्वारा करम डाल को प्रकृति की पूजा के रूप में पूजन अर्चन कर सत्य के मार्ग पर चलने प्रकृति की सेवा एवं प्रकृति के साथ चलने की प्रेरणा लेते हैं यह पर्व भादो एकादशी के दिन अथवा दशहरा से लेकर दीपावली के मध्य मनाया जाता है आदिवासी उरांव समाज हमेशा से ही प्रकृति में ही ईश्वर निहित है मानते हैं ईश्वर की पूजा प्रकृति पूजा के रूप में करते हैं अच्छाई के साथ चलने एवं बुराई से दूर रहने हेतु प्राचीन समय में हुई घटनाक्रम का उल्लेख हजारों करोड़ों साल परंपरागत कथा कहानियों में हुई घटनाक्रम का उल्लेख करते हैं इस दिन कुंवारी कन्याएं अपनी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति के लिए करम देव अथवा भगवान महादेव पार्वती को प्रसन्न करने हेतु उपवास रखती हैं करम अथवा अच्छे कर्म के साथ ईश्वर की उपासना ही करम पर्व है ।
उपरोक्त धार्मिक एवं आध्यात्मिक भव्य कार्यक्रम के अवसर पर अतिथि स्वरूप पहुंचे आदिवासी शक्तिपीठ के संरक्षक मोहन सिंह प्रधान उपाध्यक्ष निर्मल सिंह राज एवं संगठन प्रमुख रमेश सिरका सहित जशपुर ‘,झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ सहित कोरबा जिला के उपनगर क्षेत्र से से भारी संख्या में उरांव समाज के प्रतिनिधि एवं मातृशक्ति पितृ शक्ति युवा शक्ति मौजूद रहे।
कार्यक्रम के पहले सम्माननीय अतिथियों का मंच पर स्वागत के बाद सेवा पूजन की किया गया उपरोक्त अवसर पर आदिवासी शक्तिपीठ के संरक्षक मोहन सिंह प्रधान ने अतिथि के आसंदी से अपने में उदबोधन उपस्थित जनमानस को कहा कि आदिवासी संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन एवं पुरातन संस्कृति है साथ ही उन्होंने कहा आदिवासी संस्कृति नहीं विश्व को एक नहीं व्यवस्था दी धीरे-धीरे क्रमबद्ध परिवर्तन एवं वैश्विक विचारों की परिवर्तन में अपने लेखनी के माध्यम से लेखकों ने आदिवासियों की हजारों करोड़ों साल की विकसित परंपरा को एवं उनके सांस्कृतिक पहचान को साथ ही देश के आजादी के पहले एवं देश के आजादी सहित भारतीय संविधान में और उसके साथ-साथ भारत के प्रगति के मेरुदंड कहे जाने वाले इस समाज को वह स्थान नहीं दिया गया ।
आदिवासियों के ही जमीनों पर आज पूरा देश का इंफ्रास्ट्रक्चर सहित हजारों के तादाद में उद्योगों का निर्माण कर देश के करोड़ों लोगों की आर्थिक उपार्जन एवं जीविका का साधन भी दिया है लेकिन जैसा आदिवासियों को उनका हक मिलना था आज भी आदिवासी अपने हक और हक्कू की मांग को लेकर सड़क पर है या बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण बात है उन्होंने कहा आदिवासियों की पहचान उनके रीति नीति परंपरा मूल सांस्कृतिक और प्रकृति पूजा के रूप में पूरे विश्व में एक अलग पहचान है आदिवासी नहीं आस्तिक है ना ही नास्तिक है यह समाज वास्तविक एवं विज्ञान सम्मत तर्कों पर विश्वास रखता है ।
इस समाज को सावधान रहना पड़ेगा अलग-अलग तरह के मायावी स्वरूपों में आदिवासियों की धार्मिक पहचान को समाप्त करने की बड़ी साजिश चल रही है इसलिए पूरे आदिवासी समाज को सतर्क रहकर अपने परंपरा का निर्वहन इसी तरह से करना पड़ेगा हमारी विशिष्ट शैली हमारी पहचान है इसीलिए कहा जाता है आदिवासी संस्कृति ही विश्व संस्कृति की जननी है उन्होंने व्रती बहन बेटियों सहित उपस्थित संपूर्ण समाज को उपरोक्त बेहतरीन कार्यक्रम के लिए अपनी बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित की।
इसी तारतम्य में शक्तिपीठ के उपाध्यक्ष निर्मल सिंह राज ने भी अपनी उदबोधन में सर्व आदिवासी समाज को वैचारिक रूप से मजबूत होकर धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर एक रहने की बात कही और उन्होंने अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की इस अवसर पर उड़ीसा से आए हुए प्रतिनिधि झारखंड से आए हुए प्रतिनिधि मध्य प्रदेश से आए हुए प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखी।
इस पूरे कार्यक्रम की संचालन श्री नंदू भगत जी के द्वारा किया गया उपरोक्त कार्यक्रम के सफलता हेतु पूर्व समाज के मुखिया एवं पदाधिकारी श्री सुभाष चंद्र भगत श्री वासुदेव भगत सहित महिला सदस्यों एवं पदाधिकारी का भारी सहयोग रहा तब पक्ष आए हुए अतिथियों के द्वारा मांदर के थाप पर एक साथ नियुक्त करते हुए भगवान शिव एवम पार्वती स्तुति गान करते हुए पूरी रात नृत्य किया गया उपस्थित पूरा उरांव समाज यह क्षण उनके लिए हर्ष एवं उल्लास सहित अपने धार्मिक परंपराओं का अदभुत मिलन एवं अद्भुत एहसास था।
अंत में उपस्थित अतिथियों का धन्यवाद सुभाष चंद्र भगत जी के द्वारा किया गया।
उपरोक्त अवसर पर कुछ समय के लिए नगर पालिका निगम के महापौर श्रीमती संजू देवी राजपूत भी उपस्थित होकर करम देव की पूजा अर्चना कर वहां उपस्थित लोगों को अपनी बधाई संप्रेषित की।
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