
*पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की सक्रियता और प्रदेश के करोड़ों लोगों के सहयोग और विश्वास से मिली 27 प्रतिशत आरक्षण को हरी झंडी*
*तत्कालीन शिवराज सरकार और उनके मंत्रियों की कोर्ट को गुमराह करने की साजिश हुई नाकाम*
भोपाल/स्वराज टुडे: एक कहावत है भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं… पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने प्रदेश में जिस 27 प्रतिशत आरक्षण की संकल्पना की थी वह अब पूरी होती दिखाई दे रही है। पिछले दिनों प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में जो चुनौती दी गई थी उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया और इस तरह से कमलनाथ के 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने का प्रण पूरा होता दिखाई दे रहा है। जाहिर है कि लोकप्रिय और पिछड़ा वर्ग के युवाओं के हितैषी रहे कमलनाथ ने पूरी संवेदनशीलता के साथ प्रदेश में वर्ष 2018 में सत्ता संभालने के साथ ही आरक्षण का मुद्दा उठाया था। लेकिन तत्कालीन विपक्षी दल और भाजपा के नेता शिवराज सिंह चौहान ने आरक्षण का विरोध करते हुए इस पूरे मामले को कोर्ट तक पहुंचा दिया। एक के बाद एक कोर्ट में वर्तमान सरकार द्वारा इस पूरे मुद्दे को भ्रमित करने का कार्य किया जाता रहा लेकिन कोर्ट ने भाजपा नेताओं और प्रदेश सरकार की एक नहीं सुनी और मध्यप्रदेश में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के फैसले को हरी झंडी दे दी। आरक्षण को लागू करने की जो हरी झंडी प्रदेश को मिली है वह करोड़ों युवाओं के प्रेम, सहयोग और कमलनाथ के सक्रियता का प्रमाण है। अगर कमलनाथ ने सत्ता हाथ से चले जाने के बाद खुद को शांत कर दिया होता तो शायद आज भी यह विषय कोर्ट की फाइलों में दबा रहता। लेकिन कमलनाथ ने प्रदेशवासियों से किए वायदे को निभाने के लिए सक्रियता बनाए रखी और विजय हासिल की।
मार्च 2019 में कमलनाथ ने उठाया था विषय
मध्य प्रदेश में 2018 तक अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% आरक्षण मिलता था। 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले ही मध्य प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग कई बार उठ चुकी थी। ओबीसी नेताओं का दावा था कि मध्य प्रदेश में उनकी आबादी 51% है इसलिए उन्हें 14% से बढ़कर 27% आरक्षण मिलना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस मुद्दे पर राजनीति कर रही थीं। लेकिन कांग्रेस के वादे पर भरोसा जताते हुए ओबीसी वर्ग ने कांग्रेस को जमकर समर्थन दिया और उनकी वजह से कमलनाथ सरकार में आ पाए। सरकार में आने के बाद कमलनाथ ने अपना वादा निभाया और उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून विधानसभा से पारित कर दिया।
यह कांग्रेस पार्टी की नीतियों की जीत है: कमलनाथ
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें राज्य शासन द्वारा प्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण देने के फैसले का विरोध किया गया था। यह कांग्रेस पार्टी की नीतियों की जीत है। मार्च 2019 में मैंने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में मध्य प्रदेश के ओबीसी समुदाय को 27% आरक्षण देने का प्रावधान किया था। हाई कोर्ट के फैसले ने मेरी तत्कालीन सरकार के निर्णय को एक बार फिर सही साबित किया है। अब मध्य प्रदेश सरकार को तत्काल सभी स्तर पर 27% ओबीसी आरक्षण देना सुनिश्चित करना चाहिए। ओबीसी आरक्षण को लेकर भाजपा ने हमेशा षड्यंत्रकारी रवैया अपनाया है। अगर पिछले 06 साल के घटनाक्रम को देखें तो यह बात और ज्यादा स्पष्ट हो जाती है।
ओबीसी वर्ग के प्रति लिया गया सबसे बड़ा और ऐतिहासिक फैसला
यह मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग के प्रति लिया गया सबसे बड़ा और ऐतिहासिक फैसला था। लेकिन बाद में मेरी सरकार को षडयंत्रपूर्वक गिरा दिया गया और मार्च 2020 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। भाजपा सरकार ने ओबीसी के खिलाफ षड्यंत्र शुरू किया। हाई कोर्ट का आदेश सिर्फ कुछ पदों पर लागू होना था लेकिन भाजपा सरकार ने पूरे प्रदेश में सभी जगह यह आदेश लागू कर 27% आरक्षण की हत्या कर दी। 18 अगस्त 2020 को भाजपा सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय में यह मत दिया कि 14% आरक्षण के साथ ही सभी सरकारी विभागों में भर्तियां की जाएं। यह ओबीसी वर्ग के साथ खुला षड्यंत्र था। लेकिन अब माननीय उच्च न्यायालय ने 28 जनवरी 2025 के अपने आदेश में 27% आरक्षण के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका खारिज होने के साथ ही प्रदेश में 27% आरक्षण लागू करवाने के दरवाजे खुल गए हैं।
वर्तमान राज्य सरकार की जिम्मेदारी है
कमलनाथ ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करता हूं कि तुरंत सभी भर्तियों में 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने के प्रावधान किए जाएं। मैंने और कांग्रेस सरकार ने ओबीसी को जो 27 प्रतिशत आरक्षण का अधिकार दिया था उसे सुनिश्चित करना वर्तमान राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
ओबीसी आरक्षण 27% करने के विरोध में दायर याचिकाएं
यूथ ऑफ इक्वैलिटी संगठन की तरफ से ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने के विरोध में दो याचिकाएं दायर की गयी थीं। जिसमें से एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने भर्ती के लिए 87%-13% फार्मूला लागू करने के अनुमति दी थी। जिसके तहत 14 प्रतिशत आरक्षण के साथ 87 प्रतिशत पर सरकार नियुक्ति कर सकती थी। बचे हुए 13 प्रतिशत पदों पर नियुक्ति होल्ड रखी गयी थी। याचिका की सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने पाया कि याचिका में ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने के सर्कुलर को चुनौती दी गयी थी, एक्ट को नहीं। जिसके कारण उस याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया गया।
27 प्रतिशत आरक्षण के साथ हो सभी परिक्षाएं: उमंग सिंघार
अब बिना देरी के सभी भर्ती परीक्षाओं में ओबीसी को 27% आरक्षण के साथ प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए, ताकि छात्रों को उनका हक मिले। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए 87:13 के फॉर्मूले को खारिज कर दिया है। जिससे अब ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। हाईकोर्ट ने भाजपा सरकार के 87%-13% फॉर्मूले को खारिज कर दिया, जो ओबीसी को 27% आरक्षण से वंचित करने की साजिश थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 69 याचिकाएं लगाकर भी अड़ंगा डालने की कोशिश की थी।
*विजया पाठक की रिपोर्ट*
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