सत्य की हुई जीत, 11 वर्षों बाद मिला इंसाफ – संजय कश्यप हुए भावुक, पिता को किया याद
सक्ती/स्वराज टुडे: लंबे समय से चर्चित दुष्कर्म प्रकरण में भारतीय जनता युवा मोर्चा के तत्कालीन जिला मंत्री संजय कश्यप और दो अन्य आरोपियों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोषमुक्त करार देते हुए बरी कर दिया है। वर्ष 2014 में दर्ज हुए इस मामले में संजय कश्यप, लाखन नामदेव और रमेश साहू पर एक महिला ने सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया था, जिसके आधार पर निचली अदालत ने उन्हें धारा 376 (डी), 450 और 120 (बी) के तहत आजीवन कारावास एवं 25 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट में 8 साल विचाराधीन रहा मामला
सभी आरोपियों ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जहां यह मामला आठ वर्षों तक विचाराधीन रहा। अंततः 7 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट ने सभी साक्ष्यों एवं तर्कों के आधार पर तीनों आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए रिहा करने का आदेश दिया।
फैसला सुनकर भावुक हुए भाजपा नेता संजय कश्यप
फैसला आने के बाद भाजपा नेता संजय कश्यप ने भावुक प्रतिक्रिया देते हुए कहा – “सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। 11 साल तक मैंने न्याय की उम्मीद नहीं छोड़ी। यह सिर्फ मेरी नहीं, सच की जीत है। यह पूरा प्रकरण एक राजनीतिक षड्यंत्र था, जिसमें मुझे और मेरे साथियों को झूठे आरोपों में फंसाया गया। लेकिन अंत में न्याय की विजय हुई।”
फर्जी मामले में फंसाने वाली महिला के खिलाफ क्या अब होगा अपराध दर्ज
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक भाजपा नेता संजय कश्यप का एक स्वास्थ्य कर्मी की पत्नी से पैसों के लेनदेन को लेकर कुछ अनबन थी जिसके चलते उस महिला ने साल 2014 में भाजपा नेता संजय कश्यप और उसके दो दोस्तों के विरुद्ध सामूहिक दुष्कर्म की की झूठी रिपोर्ट सक्ती थाने में दर्ज कराई थी । लिहाजा पुलिस ने मामला दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर निचली अदालत में पेश किया था । जिसके बाद तीनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था । सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीनों आरोपियों को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी । लिहाजा तीनों आरोपियों ने हाईकोर्ट से जमानत लेकर इस फैसले को चुनौती दी। आखिरकार 11 साल बाद उन्हें इंसाफ मिला और वे दोष मुक्त हुए।
अब यहां सवाल उठता है कि फर्जी मामले में फंसाने वाली उक्त महिला के खिलाफ क्या अपराध कायम होगा या महिला होने के नाते सहानुभूति का लाभ लेकर वो इस पूरे मामले से मुक्त हो जाएगी । भाजपा नेता और उसके दो दोस्तों को 11 साल तक जो मानसिक और शारीरिक पीड़ा हुई, उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हुई, उसकी क्षतिपूर्ति करना क्या आज सम्भव है ? एक ज्वलंत सवाल यह भी है कि जब तीनों गुनहगार थे ही नहीं तो यह साबित करने में आखिर 11 साल क्यों लग गए ? आखिर देश में न्यायपालिका की कार्यशैली कछुए की चाल की तरह क्यों है ? क्या इसमें कभी सुधार होगा ?
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