नई दिल्ली/स्वराज टुडे: भारत और चीन के रिश्ते कितने भी तल्ख हों, पर एक भारतीय को चीन आज भी भगवान की तरह पूजता है. उसके नाम पर चीन में तमाम स्कूल, कॉलेज और म्यूजियम हैं. चौक-चौराहों पर उसकी मूर्तियां लगी हैं.
आजादी के बाद से अब तक चीन के जितने भी राष्ट्रपति भारत आए, उस शख़्स के परिवार से मिले बिना नहीं लौटे. उस शख़्स का नाम है डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस.
कौन थे डॉ. कोटनिस?
डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध से करीबन साल भर पहले शुरू होती है. साल 1937 में चीन और जापान के बीच लड़ाई शुरू हो गई. जापान ने हमला बोला तो चीन ने अमेरिका, ब्रिटेन सहित दुनिया के तमाम देशों से मदद मांगी. चीनी जनरल ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी चिट्ठी लिखी. हालांकि उस वक्त भारत खुद आजाद नहीं था और नेहरू कुछ खास करने की स्थिति में नहीं थे, पर उन्होंने मानवता के नाते चीन में डॉक्टरों का एक दल भेजने की वकालत की.
इसके लिए एक सार्वजनिक अपील जारी की गई और कहा गया कि जो लोग इस दल का हिस्सा बनना चाहते हैं, वह अपना नाम कांग्रेस पार्टी को सौंप सकते हैं.
फौरन चीन जाने को तैयार हो गए
10 अक्टूबर 1910 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस उन दोनों पोस्ट ग्रेजुएशन की तैयारी में जुटे थे. उनकी ख्वाहिश दुनिया घूमने की थी और अलग-अलग देश में लोगों की सेवा करना चाहते थे. जब उन्हें कांग्रेस की अपील के बारे में पता चला तो फौरन चीन जाने का मन बना लिया. कांग्रेस ने पांच डॉक्टरों की एक टीम बनाई और उन्हें चीन रवाना कर दिया. यह साल था 1938. उस जमाने में कांग्रेस (Congress) ने इन डॉक्टरों को चीन भेजने के लिए 22000 रुपये चंदा जुटाया था और एक एंबुलेंस के साथ इन्हें चीन रवाना किया. उस लड़ाई में चीन की मदद के लिए एशिया के किसी देश से पहुंचने वाली भारत की पहली टीम थी.
अकेले 800 चीनी सैनिकों की जान बचाई
भारतीय डॉक्टरों की टीम अगले साढ़े तीन साल, चीन के अलग-अलग प्रांतों में चीनी सैनिकों का इलाज करती रही. डॉ. कोटनिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और दिन-रात सेवा में जुटे रहे. साल 1940 में तो उन्होंने करीब 72 घंटे लगातार ऑपरेशन किया. कई रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि डॉक्टर कोटनिस ने अकेले 800 से ज्यादा चीनी सैनिकों का इलाज कर उनकी जान बचाई थी.
चीनी नर्स से प्यार और शादी
चीन में रहने के दौरान डॉक्टर कोटनिस (Dwarkanath S Kotnis) को एक चीनी नर्स से प्यार हो गया, जिनका नाम क्यों किंगलान (Quo Qinglan) था. दोनों ने दिसंबर 1941 में शादी कर ली और एक बेटा भी हुआ, जो खुद डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था. हालांकि 24 साल की उम्र में असमय निधन हो गया. कई जगह ऐसा दावा भी मिलता है कि चीन में रहते हुए डॉक्टर कोटनिस ने कम्युनिस्ट पार्टी भी ज्वाइन कर ली थी. हालांकि इसके पुख़्ता सबूत नहीं मिलते.
चीन में डॉक्टर कोटनिस इतने पॉपुलर हुए कि वहां उनका नया नाम भी रख दिया गया. कोटनिस के परिवार वाले बताते हैं कि वहां रहने के बावजूद वह लगातार अपने परिवार वालों को चिट्ठी लिखते रहे और उनका हाल-चाल लेते रहे. डॉ. कोटनिस की पत्नी भी भारत आती रहीं और आखिरी बार साल 2006 में हू जिंताओ के साथ भारत आई थीं.
32 साल की उम्र में निधन
मीडिया रिपोर्ट्स से पता लगता है कि डॉ. कोटनिस चीन में अपने काम में इतने रम गए थे कि उन्हें वक्त का पता ही नहीं लगता. 18-20 घंटे तक काम किया करते थे. इसका असर उनकी सेहत पर हुआ. दिसंबर 1942 में डॉक्टर कोटनिस का सिर्फ 32 साल की उम्र में निधन हो गया. उस समय उनके बेटे की उम्र महज 3 महीने थी. निधन के बाद डॉक्टर कोटनिस हिंदी-चीनी भाईचारा के प्रतीक बन गए.
शी जिनपिंग भी बहन से मिले
1962 की लड़ाई के बाद भारत और चीन के रिश्ते लगातार तल्ख होते गए लेकिन चीन अब भी डॉक्टर कोटनिस को भगवान की तरह पूजता है. उनके नाम पर दो बार डाक टिकट जारी किए. साथ ही डॉ. कोटनिस के नाम पर एक म्यूजियम, एक मेडिकल कॉलेज और स्कूल हैं. कई जगह उनकी प्रतिमाएं लगी हैं. यहां तक कि उनकी जिंदगी पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं.
साल 2014 में जब शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए, तब उन्होंने भी डॉक्टर कोटनिस की बहन से दिल्ली में मुलाकात की और झुककर अभिवादन किया था.
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