नई दिल्ली/स्वराज टुडे: 1950 का दशक, जब महिलाओं के कुश्ती लड़ने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. उस वक़्त हमीदा बानो एक ऐसी महिला थीं, जो मर्द पहलवानों को लगातार चित कर रही थीं. अखाड़े में उनके आगे बड़े-बड़े पहलवानों के पैर उखड़ जाते थे. जो लोग महिलाओं को कमज़ोर समझते थे, उनके मुंह पर ताले लग गए थे. हमीदा बानो आम लोगों में इतनी चर्चित हो चुकी थीं कि उनका वज़न, क़द और खानपान तक ख़बरों का विषय बन रहा था. आज हम आपको उनकी बेहद दिलचस्प ज़िंदगी और पहलवानी से रू-ब-रू कराएंगे.
अलीगढ़ की एमेज़ॉन थीं हमीदा बान
पहलवान हमीदा बानो मिर्ज़ापुर में पैदा हुई थीं. सलाम नाम के एक पहलवान की उस्तादी में कुश्ती की ट्रेनिंग के लिए वो अलीगढ़ चली आईं थीं. यहीं से उन्होंने अपने पेशेवर पहलवानी करियर की शुरुआत की. उस वक़्त देश में कोई महिला पहलवान नहीं थी, जिससे वो दंगल कर सकें. ऐसे में उन्होंने मर्द पहलवानों को चुनौती देना शुरू कर दिया.
उन्होंने कहा कि ‘जो मुझे दंगल में हरा देगा, वो मुझसे शादी कर सकता है’
उन्होंने कहा कि ‘जो मुझे दंगल में हरा देगा, वो मुझसे शादी कर सकता है.’ मगर ऐसा कोई पहलवान नहीं कर पाया. उस वक़्त एक बाबा पहलवान को उन्होंने महज़ एक मिनट और 34 सेकंड में ही चित कर दिया. हारने के बाद बाबा पहलवान ने कुश्ती ही छोड़ दी. इसी तरह की चुनौती में वो फ़रवरी 1954 में दो मर्द पहलवान चैंपियनों को पहले ही हरा चुकी थीं. जिनमें से एक पटियाला से और दूसरा कोलकाता से था. इस दौरान उन्होंने दावा किया था कि वो अब तक अपने सभी 320 दंगल जीत चुकी हैं. लोगों ने उन्हें ‘अलीगढ़ की एमेज़ॉन’ (Amazon of Aligarh) कहना शुरू कर दिया था.
आदमियों से भी ज़्यादा थी उनकी ख़ुराक
रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमीदा बानो की हाइट महज़ 5 फ़ीट 3 इंच थी, मगर उनका वज़न 107 किलो था. वहीं डाइट ऐसी कि बड़े-बड़े मर्द पहलवान शरमा जाएं. कहते हैं कि वो रोज़ाना साढ़े पांच किलो दूध, पौने तीन किलो सूप, क़रीब सवा दो लीटर फलों का जूस, एक मुर्ग़ा, लगभग एक किलो मटन, 450 ग्राम मक्खन, 6 अंडे, लगभग एक किलो बादाम, 2 बड़ी रोटियां और 2 प्लेट बिरयानी खाती थीं. उस समय ये भी कहा गया है कि वो हर रोज़ 9 घंटे सोती हैं और 6 घंटे एक्सरसाइज़ करती हैं.
पहलवानों ने लड़ने से कर दिया मना, लोगों ने किया विरोध
उस वक़्त एक महिला पहलवान से लड़ना मर्द अपनी बेइज़्ज़ती समझते थे. कई पहलवानों ने उनसे लड़ने को मना भी कर दिया. छोटे गामा नाम से मशहूर एक पहलवान ने भी आख़िरी वक़्त में उनसे लड़ने से इन्कार कर दिया था. महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक और मुक़ाबले में जब उन्होंने शोभा सिंह पंजाबी नाम के एक मर्द को पराजित किया तो कुश्ती के शौक़ीनों ने उन्हें बुरा-भला कहा और उन पर पत्थर फेंके. हालात इतने बिगड़ गए थे कि पुलिस को बुलाना पड़ गया.
उस समय लोगों की सोच थी कि जानबूझकर डमी पहलवान उतारे जाते हैं, ताकि मुकाबला मनोरंजक लगे. हालांकि, ये कभी साबित नहीं हुआ. भारतीय शेरनी हमीदा बानो ने 1954 में मुंबई में रूस की ‘मादा रीछ’ कहलाने वाली वीरा चस्तेलिन को भी एक मिनट से कम समय में शिकस्त दी थी. तब उन्होंने कहा था कि वो यूरोपीय पहलवानों से कुश्ती लड़ने के लिए यूरोप जाएंगी.
अचानक कुश्ती से गायब हो गईं हमीदा
कहते हैं कि यूरोप जाने का ऐलान करना हमीना बानो के पतन का कारण बना. दरअसल, उनके ट्रेनर सलाम पहलवान को ये बात रास नहीं आई. बताते हैं कि सलाम पहलवान ने लाठी से हमीदा बानो के हाथ-पांव तोड़ दिए थे. बरसों तक उन्हें लाठी के सहारे चलना पड़ा. इस वजह से सलाम और हमीना के बीच गहरी दुश्मनी हो गई थी. जब भी दोनों आमने-सामने पड़ते थे तो उनके लोग आपस में लड़ पड़ते थे.
बहुत ही तंगहाली में गुजरा अंतिम समय
कुछ साल बाद सलाम पहलवान अलीगढ़ लौट आए और हमीदा बानो कल्याण में ही रहीं और अपना दूध का व्यवसाय करती रहीं. आख़िरी दिनों में हमीदा का जीवन काफ़ी तंगहाली में गुज़रा. दूध बेच कर और किराए से उन्हें कुछ आमदनी हो जाती थी. बाद के दिनों में उन्होंने सड़क किनारे खाने का सामान भी बेचा. साल 1986 में उनकी गुमनामी में मौत हो गई. मगर एक बात हमेशा रही कि पहलवानी में उनसे कोई भी मर्द कभी जीत ना सका और भारत की पहली पेशेवर महिला पहलवान का खिताब भी उन्हीं के नाम रहा.
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