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हिंसा की आग में जल उठा बांग्लादेश, आंदोलन में 7 छात्रों की मौत, पथराव व आगजनी के बाद पूरे देश में इंटरनेट सेवा बंद

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नई दिल्ली/स्वराज टुडे: बांग्लादेश में छात्रों का आंदोलन दिन-ब-दिन हिंसक होता जा रहा है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रणाली के खिलाफ़ यह आंदोलन अब अपने चौथे हफ़्ते में प्रवेश कर चुका है. इस आंदोलन में अब तक 7 छात्रों की मौत हो चुकी है, और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं.

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश को किया संबोधित

प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश को संबोधित करते हुए प्रदर्शनकारियों की मौत की निंदा की और कहा कि इस घटना के ज़िम्मेदार जो भी होंगे, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित हो, उन्हें सजा दी जाएगी. लेकिन छात्रों के मुख्य समूह “स्टूडेंट्स अगेन्स्ट डिस्क्रिमिनेशन” ने हसीना के बयान को निष्क्रिय बताया और अपने समर्थकों से आंदोलन जारी रखने का आह्वान किया.

 

आंदोलन को कुचलने स्कूल कॉलेज अनिश्चितकाल के लिए बंद

इस आंदोलन को दबाने के लिए, सरकार ने स्कूल और विश्वविद्यालय अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिए हैं. पुलिस भी प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए आंसू गैस और रबर के गोले का इस्तेमाल कर रही है. आंदोलन से जुड़े छात्र और हसीना की सत्तारूढ़ आवामी लीग के समर्थक भी सड़कों पर ईंटों और बांस के डंडों से लड़ रहे हैं.

गुरुवार को बांग्लादेश में व्यापक तौर पर मोबाइल इंटरनेट बंद कर दिया गया. दो दिन पहले इंटरनेट प्रदाताओं ने आंदोलन के मुख्य संगठन मंच फेसबुक को ब्लॉक कर दिया था.

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Bangladeshi students peacefully protesting the quota. but the “Student League” an organization of the government, ambushed them. Nearly 200 people were injured, and many were killed.

Help us!#Bangladesh#SaveBangladeshiStudents#bangladesh_quotha_movement #WE_NEED_YOUR_HELP pic.twitter.com/bGHOzEVeye

— Rifat Ahmed (@rifat_xyz) July 16, 2024

इस आंदोलन के पीछे सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रणाली को खत्म करने की मांग है. विरोधी दलों का कहना है कि यह प्रणाली बांग्लादेश की सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों को अनुचित फायदा दिलवाती है.

यह आंदोलन बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का एक बड़ा संकेत है. सरकार और आंदोलनकारियों के बीच हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. यह देखना बना रहेगा कि यह आंदोलन कैसे समाप्त होता है और इसका बांग्लादेश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है.

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Deepak Sahu

Editor in Chief

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