दिल्ली/स्वराज टुडे: बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज (10 अप्रैल 2024) फिर सुनवाई हई।
सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बार फिर बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने रामदेव की माफी को ठुकराते हुए कहा कि आप हलफनामे में धोखाधड़ी कर रहे हैं। कोर्ट ने बिना शर्त माफी के रामदेव के हलफनामे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। जस्टिस अमानुल्लाह और जस्टिस हीमा कोहली की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि आपने तीन-तीन बार हमारे आदेशों की अनदेखी की है और इसका नतीजा भुगतना होगा। हम अंधे नहीं हैं। इसके साथ ही बेंच ने इस मामले पर केंद्र सरकार से मिले जवाब से भी संतुष्ट नहीं होने की बात कही।
बता दें कि आज होने वाली पेशी से पहले मंगलवार (9 अप्रैल 2024) को रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने शीर्ष कोर्ट के सामने बिना शर्त माफी मांगी थी। इससे पहले पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने दोनों को खूब फटकार लगाई थी। कोर्ट ने रामदेव से कहा था कि खुद को कानून से ऊपर ना समझें, कानून की महिमा सबसे ऊपर है।
कोर्ट में क्या-कुछ हुआ?
SC: मुकुल रोहतगी आप किसके लिए पेश हो रहे है? इस मामले में लगातार वकील बदल रहे हैं।
रोहतगी: रामदेव और बालकृष्ण के लिए।
रोहतगी ने कहा 6 अप्रैल को हलफनामा दाखिल किया है।
SC ने कहा हलफनामा कोर्ट में आने से पहले वो पब्लिक के पास था। जबकि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के PDF में नहीं था।
रोहतगी ने कहा कि बालकृष्ण ने हलफनामे में कहा था कि वो कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगते है। रोहतगी ने हलफनामा पढ़ते हुए कहा कि इस तरह के विज्ञापन दोबारा नहीं जारी किए जाएंगे।
रोहतगी: पिछले साल नवंबर की प्रेस कान्फ्रेस को भी लेकर भी सुप्रीम कोर्ट से माफ़ी मांगी गई है।
SC ने कहा कि यह अवमानना का मामला हैं। आप कह रहे हैं कि आप कोर्ट में पेशी से छूट चाहते है और फ्लाइट टिकट नहीं। आप मामले को हल्के में ले रहे हैं।
SC: जब आप अगले दिन दिल्ली आ गए तो फाइल करने की जरूरत क्या थी।
रोहतगी: रामदेव ने भी बिना शर्त माफी मांगी है।
जस्टिस अमानुल्लाह: आप हलफनामे में धोखाधड़ी कर रहे हैं। इसे किसने तैयार किया, मुझे आश्चर्य है।
जस्टिस हीमा कोहली: आपको ऐसा हलफनामा नहीं देना चाहिए था।
रोहतगी:चूक हुई है।
सुप्रीम कोर्ट: बहुत छोटा शब्द। वैसे भी हम इस पर फैसला करेंगे।
SC: ने कहा कि हम इसको जानबूझ कर कोर्ट के आदेश की अवहेलना मान रहे है। हम इस हलफनामे को ठुकरा रहे है।
कोर्ट ने स्वामी रामदेव का बिना शर्त माफी का हलफनामा भी स्वीकार करने से इनकार किया।
जस्टिस अमानुल्ला ने कहा कि इन लोगों ने तीन-तीन बार हमारे आदेशों की अनदेखी की है। इन लोगों ने गलती को है इनको नतीजा भुगतना होगा।
जस्टिस अमानतुल्लाह: हम अंधे नहीं हैं
रोहतगी: लोग गलतियां करते हैं
बेंच: फिर उन्हें तकलीफ़ उठानी पड़ती है। हम इस मामले में इतने उदार नहीं होना चाहते
SC:माफ़ीनामा कागज़ पर है। हम इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, हम इसे वचनबद्धता का जानबूझकर उल्लंघन मानते हैं। हलफ़नामे को अस्वीकार करने के बाद कुछ और के लिए तैयार रहें
SC: हम केंद्र सरकार के जवाब से भी संतुष्ट नहीं है।
जस्टिस कोहली ने कहा कि आयुष मंत्रालय अब तक कार्रवाई के लिए इंतजार क्यों कर रहा था। अब तक किसी भी अदालत के पास इसके खिलाफ क्यों नहीं गया? SC ने उत्तराखंड सरकार से पूछा कि जब उन्होंने आपके समक्ष दिए गए बयान का उल्लंघन किया तो आपने क्या किया? बैठे रहे आप, हमारे आदेश तक इंतजार करते रहे?
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को भी फटकार लगाते हुए कहा कि आपने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया। SC ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि ऐसा 6 बार हुआ है, बार-बार, लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहा। अधिकारी की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं है.. बाद में नियुक्त अधिकारी ने भी यही किया.. उन तीनों अधिकारियों को तुरंत निलंबित कर दिया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने उत्तराखंड सरकार से पूछा कि क्या यह कर्तव्य की उपेक्षा नहीं है..क्या आपके ड्रग निरीक्षण अधिकारी इसी तरह काम करते हैं? अब अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। अभी निलंबन होना चाहिए!
क्या है IMA का केस?
अब सवाल यह है कि आखिर ये केस क्या है, तो बता दें कि IMA ने आरोप लगाया कि पतंजलि ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के खिलाफ एक बदनाम करने वाला कैंपेन चलाया था। इस पर अदालत ने चेतावनी दी थी कि पतंजलि आयुर्वेद की ओर से झूठे और भ्रामक विज्ञापन तुरंत बंद होने चाहिए। खास तरह की बीमारियों को ठीक करने के झूठे दावे करने वाले प्रत्येक उत्पाद के लिए एक करोड़ रुपये तक के जुर्माने की संभावना जाहिर की थी। बता दें कि कोविड-19 महामारी के दौरान एलोपैथिक फार्मास्यूटिकल्स पर विवादास्पद टिप्पणियों के लिए आईएमए की ओर से दायर आपराधिक मामलों का सामना करने वाले रामदेव ने मामलों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
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