छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: शनिवार को छत्तीसगढ़ बोर्ड के बारहवी और दसवीं के नतीजे घोषित हुए। छात्र- छात्राओं के साथ माता-पिता भी चिंतित थे क्योंकि पिछले वर्षों से इन बच्चों ने परीक्षा नहीं दी थीं। वैश्विक महामारी को झेलता दो शिक्षासत्र यूं ही बीत गया । परिणाम की चिंता इसलिए भी थी क्योंकि इस वर्ष CG ने ऑफलाइन परीक्षाओं का आयोजन किया । सरकारी आंकड़ों की बात करें तो लम्बे समय के बाद पेपर लेने के बावजूद दसवीं के 1.32 लाख विद्यार्थियों ने प्रथम श्रेणी प्राप्त की है। कुल मिलाकर हर चार में से तीन छात्र ने सफलता पायी हैं। बारहवीं की बात करें तो इस बार 82124 छात्र प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए है जो 2020 की तुलना में 10 हजार ज्यादा है।
केवल विद्यार्थी ही नहीं माता-पिता और शिक्षकों को भी प्रभावित करते हैं परीक्षा के परिणाम
परीक्षा परिणाम हमेशा से ही एक छात्र ही नही उसके माता-पिता और शिक्षक सभी को प्रभावित करते हैं। सफलता, प्रशंसा की बहार लेकर आती है, यशोगान होते हैं, सफलता का राज बार-बार पूछा जाता है। इसके विपरीत असफल छात्रों द्वारा आत्महत्या जैसे घातक कदम भी उठाये जाते हैं। यहां बच्चों को यह समझने की जरूरत है कि बोर्ड परीक्षा का परिणाम जीवन का अंतिम परिणाम नहीं हो सकता। शांत मन से विचार करें तो एक विद्यार्थी के सामने अपना करियर बनाने के लिए अनेक विकल्प होते हैं। असफलता मिलने पर बच्चों को हताश नहीं होना चाहिए बल्कि सफलता हासिल करने के लिए नए सिरे से परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए । कहा भी गया है कि ‘असफलता ही सफलता की पहली सीढ़ी है ।’
माता-पिता का क्या होना चाहिए दायित्व
आखिर क्यों हम परीक्षा की असफलता के बाद अपने नौनिहालों को खो देते हैं ? यदि इस विषय पर चिंतन करें तो हमें माता-पिता और शिक्षक के रूप में अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। प्रत्येक माता-पिता के लिए उसकी संतान उसकी वो अमूल्य निधि है जिसे वो किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता । माता-पिता का जीवन अपनी संतान को केंद्र बिंदु बनाकर उसके चारो ओर घूमता है, उसे क्या पसंद है, क्या चाहिए, इसी प्रयास में उनका सारा जीवन निकल जाता है। उस संतान के लिए सारी सुविधाएं जुटाने की लालसा में माता-पिता दोनो नौकरीपेशा हो जाते है । वर्तमान समय में संयुक्त परिवार की परेपरा खत्म हो गयी। है, एकल परिवार की इकलौती संतान एकाकीपन का शिकार हो जाती है।
कभी माता-पिता की डाक्टर, इंजीनियर बनने की अधूरी आकांक्षा के तले बच्चे दब के रह जाते हैं । आवश्यकता है कि हम अपने परिवार रूपी संस्था के आधार स्तंभ को सुदृढ़ बनाए। अपने परिवार अपने बच्चों के साथ समय बितायें। उन्हें बेझिझक अपनी बातें कहने का मौका दें। अपनी इच्छाओं को लादने के पूर्व उनकी इच्छा जान लें | मानाकि आज प्रतियोगिता का दौर है हम अपनी संतान को हारने की तकलीफ से बचाने की चाहत रखते हैं, उनका मार्गदर्शक बनना चाहते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि अपने इस कोशिश में हम बच्चों को अकारण तनाव तो नहीं दे रहे हैं। ” तारे जमीं पर” और ‘थ्री इडियटम” जैसी फीचर फिल्में ऐसे माता-पिता के लिए सही सबक है।
अपने बच्चों की काबलियत को समझे और उसी के अनुसार उनके लिए लक्ष्य बनाऐं, यकीन मानिए सफलता सदैव मुट्ठी में होगी । कई बार प्रयत्न करने पर भी यदि सफलता न मिले तो भी न स्वयं निराश हो और न ही अपने बच्चों को निराश होने दें। ऐसे समय उनके कंधों पर हाथ रख कर उन्हें एहसास कराऐं कि आप सदैव उनके साथ है। निराशा को दूर कर एक बार फिर से उन्हें प्रयास करने का हौसला दें। यकीन मानिए इस बार वो दुगनी शक्ति से प्रयास करेंगे और सफलता हासिल कर के ही दम लेंगें।
विषम परिस्थिति में शिक्षक की भूमिका
बोर्ड की परीक्षाओं में संतोषजनक परिणाम नहीं आने पर शिक्षक की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है। वे अपने छात्रों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। एक ही कक्षा में पढ़ने वाले सभी छात्र न तो सारे एडवांस लर्नर होते हैं और न सारे स्लो लर्नर । अर्थात् शिक्षक पढ़ाते तो सभी को बराबर है लेकिन छात्र /छात्राऐं अपनी काबिलियत (I.Q./learning capacity) के आधार पर पाठ्यसामग्री को ग्रहण करते हैं।
ऐसे समय स्लोलर्नर्स को बार-बार प्रोत्साहित करके, पाठ्यसामग्री को बार-बार दुहराकर उसकी क्षमता को बढ़ा सकते है। एडवांस लर्नर अपनी क्षमता को समझकर अपना बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। ऐसे में यदि वे अपने लक्ष्य को हासिल ना कर पाएँ तो उनमें भी तनाव, निराशा आती है । वे अपमान से बचने के लिए कर गलत कदम उठा लेते हैं ।
ऐसे समय शिक्षक का दायित्व है कि वे उन्हें सफलता और असफलता का अंतर बताते हुए असफलता को सफलता तक पहुंचने की एक सीढ़ी मानकर, मानसिक रूप से तैयार करें ताकि वे असफल होने पर कोई गलत कदम न उठाकर, सफलता हेतु पुनः प्रयास करने में जुट जाएं ।
डॉ अवंतिका कौशिल
सहा. प्राध्यापिका (मनोविज्ञान)
शासकीय इंजीनियर विश्वेश्वरैया स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कोरबा(छग)
Editor in Chief