गेहूं के साथ घुन कैसे पिसता है? जैसे IAS पूजा खेडकर के साथ ये अधिकारी ‘पिस’ गए

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नई दिल्ली/स्वराज टुडे: संघघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 19 जुलाई को विवादित ट्रेनी IAS पूजा खेड़कर के खिलाफ FIR दर्ज कराने का आदेश दिया. कहा कि उन्होंने अपना, अपने पिता और अपनी माता का नाम बदल कर तय संख्या से ज़्यादा अटेंप्ट दिए.

उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया है. अब उन पर मुकदमा चलाया जाएगा. लेकिन इस मामले की तपिश अकेले पूजा खेडकर तक सीमित नहीं रही है. सोशल मीडिया पर कई IAS-IPS अधिकारियों को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं. कि फलाने अधिकारी अगर वाकई EWS कैटेगरी से हैं, तो फिर उनके घर इतनी संपत्ति कैसे है. फलाने अधिकारी ने अगर विकलांग कोटे का लाभ लिया था, तो वो उछलते-कूदते रील कैसे बना रहे हैं. इन आरोपों की पुष्टि अभी नहीं हुई है. लेकिन इनकी वजह से कई अधिकारियों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट प्राइवेट कर लिए. क्यों, इसका जवाब तो वही लोग बता पाएंगे.

लेकिन जैसा कि होता ही है, गेहूं के साथ घुन भी पिसता है. कई ऐसे अधिकारियों को भी टारगेट किया गया है, जिन्होंने विशेष नियमों या कैटेगरी का अनुचित लाभ नहीं लिया. कुछ मामलों की बात कर लेते हैं.

केस नंबर-1
अनु बेनीवाल

दिल्ली के पितमपुरा की रहने वाली अनु बेनीवाल 2022 बैच की आईपीएस हैं. UPSC के नतीज़ों के अनुसार, 217 रैंक पाने वाली अनु का चयन EWS कैटेगरी (यानी आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी) में हुआ है. फिलहाल वे हैदराबाद में ट्रेनिंग ले रही हैं. पिछले कुछ दिनों से उनकी एक तस्वीर वायरल है जिसमें उनकी बगल में एक बोर्ड है. बोर्ड पर 1989 बैच के आईपीएस के नाम लिखे हैं. इनमें एक नाम पर वे इशारा कर रही हैं. ये नाम है संजय बेनीवाल का. दावा किया जा रहा कि संजय बेनीवाल अनु के पिता हैं, ऐसे में एक रिटायर्ड आईपीएस की बेटी का चयन EWS के अंतर्गत कैसे हो गया.

अजय तिवारी नाम के एक यूजर ने अनु की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा,

“राजस्थान में OBC कैटेगरी के IPS अधिकारी संजय बेनीवाल की पुत्री अनु बेनीवाल को EWS कोटे से IPS बनने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं… EWS आरक्षण का मजाक बनाकर रख दिया है.”

 

हमने इस बारे में अनु बेनीवाल से बात की. उन्होंने बताया कि आईपीएस संजय बेनीवाल उनके पिता नहीं हैं. अनु ने कहा,

“रिटायर्ड आईपीएस संजय बेनीवाल पितमपुरा से आईपीएस बनने वाले पहले व्यक्ति थे. मैं उनसे काफी मोटिवेट हुई हूं. उनका हमें काफी स्नेह मिला है. वे मेरे पिता नहीं हैं. मैं उन्हें प्यार से ताऊ जी बुलाती हूं.”

उन्होंने आगे बताया,

“मेरे पिता ने बहुत सालों पहले बटन की एक फैक्ट्री लगाई थी. लेकिन खराब तबीयत के कारण वे उसको चला नहीं सके. मेरे पिता के नाम पर कोई जमीन नहीं है. मेरे चाचा ने हमारा लालन-पालन किया है.”

अनु ने 14 जुलाई, 2024 को एक्स पर अपने पैरेंट्स के साथ एक तस्वीर पोस्ट की थी. इस कैप्शन में उन्होंने लिखा कि उन्हें अपने माता-पिता पर गर्व है जो भले अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर सके, लेकिन बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित किया.

इस तस्वीर में नज़र आ रहे व्यक्ति और आईपीएस (रिटायर्ड) संजीव बेनीवाल की तस्वीर का मिलान करने पर साफ समझ आ रहा कि दोनों अलग इंसान हैं. संजीव बेनीवाल 1989 बैच के आईपीएस हैं और वे तिहाड़ जेल के डायरेक्टर जनरल (महानिदेशक) पद से रिटायर हुए हैं. आईपीएस संजीव बेनीवाल के बारे में खोजने पर हमें ‘New Indian Express’ की वेबसाइट पर साल 2016 में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट मिली. इसमें उनके परिवार के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार, संजीव की पत्नी का नाम अपर्णा बेनीवाल है. वे विवेकानंद कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उनके दो बच्चे हैं, नंदनी बेनीवाल और देवानंदन बेनीवाल. दोनों उस वक्त स्कूल शिक्षा ले रहे थे.


आईपीएस संजय बेनीवाल अपने दोनों बच्चों के साथ

इससे साफ है कि 2022 बैच की आईपीएस अनु बेनीवाल रिटायर्ड आईपीएस संजीव बेनिवाल की बेटी नहीं हैं. हालांकि, हम अनु बेनीवाल के EWS सर्टिफिकेट की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं करते हैं.

केस नंबर-2
प्रफुल्ल देसाई

अब बात तेलंगाना के करीमनगर में एडिशनल कमिश्नर के पद पर तैनात IAS प्रफुल्ल देसाई की. UPSC के रिजल्ट के अनुसार, प्रफुल्ल ने साल 2019 में 532वीं रैंक हासिल की थी. उनका चयन ऑर्थोपेडिकली हैंडिकेप कोटे में हुआ है. प्रफुल्ल की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं. इन तस्वीरों में वे ट्रैकिंग करते हुए नज़र आ रहे हैं. ये तस्वीरें प्रफुल्ल ने खुद अपने इंस्टाग्राम हैंडल से अपलोड की थीं. अब इन तस्वीरों को शेयर करते हुए प्रफुल्ल की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाया जा रहा. कहा जा रहा कि एक ऑर्थोपेडिकल हैंडिकैप्ड व्यक्ति पहाड़ पर चढ़ाई कैसे कर रहा है.

मुकेश मोहन नाम के एक यूजर ने इन तस्वीरों को हैशटैग UPSC Scam के साथ पोस्ट करते हुए लिखा,

“आप 2019 बैच के 532वी रैंक के साथ IAS बने प्रफुल्ल देसाई हैं. आप जब ट्रेनिंग के लिए LBSNAA गए तो आपने जाते ही 25KM ट्रैकिंग की और 30KM साइकलिंग की, जबकि आप ऑर्थोपेडिकल हैंडिकैप्ड हैं. आपने ट्रेनिंग के दौरान ऐसा क्या खा लिया कि आप एकदम पहाड़ चढ़ने लगे?”

 

अब बात सच्चाई की. IAS प्रफुल्ल देसाई ने खुद इस पोस्ट पर कॉमेंट किया है. उन्होंने एक पोस्ट करते हुए लिखा,

“मैंने साल 2018 में UPSC परीक्षा में अप्लाई किया था. जिसके लिए मैंने कंपीटेंट अथॉरिटी से डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट भी बनवाया था. उस साल इंटरव्यू देने के अगले दिन मैं एम्स दिल्ली के मेडिकल बोर्ड के समक्ष मेडिकल एग्जामिनेशन में बैठा. एम्स दिल्ली के मेडिकल बोर्ड ने जांच की. उन्होंने मेरे डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट को एक्सेप्ट कर लिया. हालांकि, उस वर्ष मैं एग्जाम क्वालिफाई नहीं कर सका. मैंने अगले साल यानी 2019 में एक बार फिर से UPSC की परीक्षा दी. टेस्ट और इंटरव्यू क्वालिफाई करने के बाद एक बार फिर मैं एम्स दिल्ली के मेडिकल बोर्ड के सामने बैठा. वहां एक बार फिर से पूरी जांच करने के बाद एम्स दिल्ली ने मेरे डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट को सत्यापित कर दिया. इसी रिपोर्ट को मैंने DOPT और UPSC के साथ भी साझा किया.”

इसके साथ ही प्रफुल्ल ने अपनी वायरल तस्वीर के बारे में भी अपना पक्ष रखा. उन्होंने लिखा,”जहां तक मेरी वायरल हो रही तस्वीरों का मामला है, वो सब मेरे ट्रेनिंग कार्यक्रम का हिस्सा था.”

उन्होंने इंडिया टुडे से भी इन तस्वीरों को लेकर बात की. प्रफुल्ल ने बताया कि उनके एक पैर में पोलियो है जिसके कारण वह दौड़ नहीं सकते, लेकिन चल सकते हैं और साइकिल चला सकते हैं. उन्होंने बताया, “इस विकलांगता के साथ मैं एक पैर से साइकिल का पैडल चलाता हूं और दूसरे पैर से सहारा लेता हूं. हमने उस दिन मसूरी से केम्पटी फॉल्स तक साइकिल से यात्रा की, लेकिन मैंने पूरे समय साइकिल नहीं चलाई.”

इंडिया टुडे के आशुतोष मिश्रा को प्रफुल्ल देसाई की बेलागवी अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट भी मिली है. इसके अनुसार,डॉक्टर ने पुष्टि की है कि प्रफुल्ल देसाई पोलियो के कारण लोकोमोटर विकलांग और बाएं पैर से 45 प्रतिशत विकलांग हैं. साथ ही एम्स दिल्ली की भी रिपोर्ट मिली, जिसमें उनकी विकलांगता को सत्यापित किया गया है.

 IAS प्रफुल्ल देसाई का मेडिकल सर्टिफिकेट

केस नंबर-3
नितिका खंडेलवाल.

2014 बैच की आईएएस. UPSC के रिजल्ट के मुताबिक, 857 रैंक हासिल करने वाली नितिका का चयन विजुअली इम्पेयर्ड कोटे में हुआ है. उनका एक वीडियो पिछले कुछ दिनों से वायरल है. वीडियो में उनके सामने एक स्क्रीन है, जिसमें वीडियो ग्राफिक्स नज़र आ रहा है. नितिका के हाथ में एक स्टीयरिंग है, जिसे वे सामने लगी स्क्रीन देखकर चला रही हैं. उनके इस वीडियो को शेयर करके कहा जा रहा कि विजुअली इम्पेयर्ड नितिका खंडेलवाल बिना ग्लास पहने ड्राइविंग टेस्ट कैसे दे रही हैं.

एक सोशल मीडिया यूजर ने उनका वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा,

“उन्हें दृष्टिबाधित कोटे के तहत सामान्य श्रेणी से चुना गया था. हालांकि, वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे वह बिना चश्मा लगाए अपना ड्राइविंग टेस्ट दे रही हैं.”

 नितिका खंडेलवाल को लेकर किया गया दावा.

नितिका की सच्चाई जानने की कोशिश में हमें सबसे पहले उनके वायरल वीडियो का लंबा वर्जन मिला. ये हमें नितिका खंडेलवाल नाम से बने यूट्यूब चैनल पर भी मिला जिसे साल 2019 में अपलोड किया गया था. इसमें वे शुरुआती हिस्सों में एक ऑफिस में लोगों की ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ी समस्याओं को सुन रही हैं और उसके बाद वो खुद ड्राइविंग टेस्ट से जुड़ी चीज़ों का मुआयना कर रही हैं.

इंडिया टुडे ने इस बारे में नितिका से बात की. उन्होंने बताया कि इस वीडियो को गलत तरीके से प्रचारित किया जा रहा है. नितिका ने कहा,

“वीडियो करीब 6 साल पुराना है जब मैं रुड़की में एसडीएम के पद पर तैनात थीं. इस वीडियो में मैं खुद मौजूद हूं और मैंने इसे अपने यूट्यूब चैनल पर डाला था. बतौर SDM हमें बहुत सारी शिकायत मिलती थी. एक ऐसी ही शिकायत मिली थी कि RTO ऑफिस में लोगों के ड्राइविंग लाइसेंस ठीक से नहीं बन रहे हैं. हमने इसे दूर करने के लिए RTO ऑफिस का निरीक्षण किया. ये देखा कि कैसे वहां काम होता है. किस तरह से लोगों के टेस्ट लिए जाते हैं. मैं खुद ड्राइविंग टेस्ट नहीं दे रही थी.”

नितिका ने आगे बताया,”आमतौर पर लोग ये सोचते हैं कि अगर किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा तभी उसे दृष्टि बाधित माना जाता है. जबकि ऐसा नहीं है. अलग-अलग लोग कई तरह की प्रक्रियाओं से गुजरते हैं. उन्हें कितना दिखाई दे रहा, ये बस वही जानते हैं. मेरे रेटिना में समस्या है. लेकिन कल को आप मुझे बोलेंगे कि मैं टीवी क्यों देख रही हूं तो आप समझ नहीं पाएंगे कि मैं उसमें कितना देख पा रही हूं या कितना नहीं. हमें इस मुद्दे को संवेदनशीलता से लेना चाहिए.”

हमने इस बारे में डिटेल जानकारी के लिए नितिका खंडेलवाल से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन वे बातचीत के लिए तैयार नहीं हुईं.

अब बात विकलांग लोगों को मिलने वाले आरक्षण और उससे जुड़े सर्टिफिकेट की. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग यानी DOPT की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, सरकारी नौकरियों में विकलांगता के आधार पर आरक्षण लेने के लिए जरूरी है कि कैंडिडेट की डिसेबिलिटी कम से कम 40 प्रतिशत हो. इस आरक्षण के लिए व्यक्ति को सक्षम अधिकारी से विकलांगता का सर्टिफिकेट प्राप्त करना होता है. ये व्यवस्था RPWD (राइट ऑफ पर्सन विथ डिसेबिलिटी) ACT के तहत की गई है.

कैसे तय की जाती है विकलांगता ?

RPWD में मूल रूप से 5 तरह की विकलांगता की बात की गई है.

1) फिजिकल डिसेबिलिटी यानी शारीरिक अपंगता
इसके तहत लोकोमोटर डिसेबिलिटी (चलने-फिरने में दिक्कत), विजुअल इंपेयरमेंट (देखने में दिक्कत), हियरिंग इंपेयरमेंट (सुनने में दिक्कत) के साथ बोलने और भाषा की विकलांगता आती है.

2) इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी यानी बौद्धिक विकलांगता
इसके तहत सीखने की क्षमता की जांच की जाती है.

3) मेंटल बिहेवियर यानी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मामला. क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल स्थितियां और खून से जुड़ी दिक्कतें.

4) मल्टीपल डिसेबिलिटी (ऊपर दी विकलांगता में से 1 से ज्यादा)

5) RPWD में कई बदलाव किए गए हैं. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के साथ एसिड अटैक सर्वाइवर को भी जोड़ा गया है. यहां ये एक बात ध्यान देने वाली है. PwD कैंडिडेट का IPS में चयन नहीं होता.

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दीपक साहू

संपादक

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