Featuredदेश

गजवा ए हिंद पर बोले एम जे अकबर ,मुसलमानों के पापों के लिए इस्लाम को दोष न दें

Spread the love

नई दिल्ली/स्वराज टुडे: पूर्व विदेश राज्य मंत्री और सीनियर जर्नलिस्ट एमजे अकबर ने कहा है कि मुसलमानों के पापों के लिए इस्लाम को दोष न दें. मुसलमानों के पापों के लिए इस्लाम दोषी नहीं है.एमजे अकबर नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनएक्स में खुसरो फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘क्या है गजवा ए हिंद की हकीकत ?’ के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से बोल रहे थे.

यह पुस्तक गजवा ए हिंद पर लिखे गए आठ लेखों का संग्रह है. जिसका संकलन और संपादन डॉ हफीजुर्रहमान ने किया है.पुस्तक विमोचन समारोह में इन लेखों के चार लेखक भी मौजूद थे.कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एमजे अकबर ने कुरान के ‘लकुम दीनकुम वलयदीन’ के हवाले से कहा कि कुरान कहता है तुम अपना मजहब मानो और हम अपना.’ ऐसे में सवाल कहां उठता है कि मजहब के नाम पर किसी मुल्क पर अकारण हमला किया जाए.

एमजे अकबर ने आगे कहा, पैगंबर मुहम्मद ने अपना अधिकांश जीवन उत्पीड़न में बिताया. लेकिन उन्होंने अपने सबसे बुरे समय में भी कभी युद्ध का आह्वान नहीं किया. उन्होंने कहा कि इस्लाम में पेड़ जलाने तक की मनाही है.

एमजे अकबर ने हदीस संग्रह पर सवाल उठाते हुए कहा, हदीस एक बहुत ही कठोर प्रक्रिया है. साहिह बुखारी में 7000 हदीसों को लाखों हदीस में से चुना गया है. इसमें प्रामाणिकता पर बहुत जोर दिया गया है.
उन्होंने एक हदीस में गजवा ए हिंद के जिक्र के बारे में कहा, यह विचार न केवल कपटपूर्ण है, बल्कि शरारतपूर्ण भी है.

उन्होंने कहा जिहाद के 10 नियम हैं, जिसके नियमों का पालन किया जाना चाहिए. यह इतना सरल नहीं है जितना इसे बनाया गया है। एमजे अकबर ने कहा कि गांधीजी युद्ध नैतिकता पर जोर देते हुए हजरत अली के जीवन की घटना का हवाला देते थे. इस्लाम इस बात पर जोर देता है कि धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं. भारत को कभी भी दार उल हरब नहीं माना गया.

एमजे अकबर ने तीन तरह के हदीस का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लाम और कुरान ‘मुनाफकीन’ से बचने की सलाह देते हैं. यह समाज के लिए सबसे खतरनाक हैं. एमजे अकबर ने गजवा ए हिंद के हदीस को खारिज करने के संदर्भ में अनेक तर्क दिए.

उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी तीन भाषाओं में प्रकाशित ‘क्या है गजवा ए हिंद की हकीकत ?’ पुस्तक में डॉ. कल्बे रुशैद रिजवी का लेख ‘ गजवा ए हिंद के नजरिए को रद्द करें’ भी शामिल किया गया है. कार्यक्रम में वह भी मौजूद रहे. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, गजवा ए हिंद परंपरा का श्रेय इस्लाम के महान पैगंबर को देना उनकी विरासत के लिए एक बड़ा अपमान है.

उन्होंने शिया फिक्ह के हवाले से कहा कि पैगंबर की ऊंटनी भी सुलह का संदेश देती थी. उन्होंने कहा कि कुरान में इंसानियत पर जोर दिया गया है, मुसलमानों पर नहीं.उन्होंने कहा कि हदीस में आलोचना अत्यधिक उन्नत विषय है और पैगंबर की बातें केवल मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि हर इंसान के लिए हैं.

रुशैद रिजवी ने कहा कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि संपूर्ण मानव से प्रेम करना ही इस्लाम की सच्ची परिभाषा है.उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों में उन देशों के राजदूतों को भी आमंत्रित करने का सुझाव दिया, जहां गजवा ए हिंद के नाम पर युवाओं को बरगलाया जाता है.

कुरान अकादमी के संचालक डॉ. वारिस मजहरी ने भी कार्यक्रम में अपने विचार रखे. उनका लेख भी पुस्तक में शामिल किया गया है. डॉ. वारिस मजहरी ने अपने संक्षिप्त भाषण में कहा कि पैगंबर मोहम्मद का हर शब्द कुरान की भावना के अनुरूप है. इस्लाम में युद्ध का मतलब हमेशा रक्षात्मक रणनीति होता है. यह कैसे संभव है कि पैगंबर ने अन्य लोगों पर युद्ध छेड़ने के बारे में कुछ कहा होगा?

उन्होंने कहा कि गजवा ए हिंद पर इन भविष्यवाणियों का एक निश्चित संदर्भ है.इस्लामी राजनीति से जुड़ी चीजों के कई स्तरित अर्थ होते हैं.उन्होंने कहा कि विद्वानों को सदियों पुरानी भ्रांतियों को दूर करने के लिए मजबूत और नए तर्क प्रदान करने के लिए आगे आने की जरूरत है.

उन्होंने आगे कहा, सल्तनत या मुगल काल के दौरान इन हदीस का इस्तेमाल भारत पर हमले को वैध बनाने के लिए कभी नहीं किया गया. चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने के लिए संस्थागत प्रयास की आवश्यकता है.

उन्होंने सलाह दी कि इस पुस्तक का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया जाना चाहिए ताकि सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले झूठ को दिमाग से साफ किया जा सके.नई पीढ़ी के इस्लामी विद्वानों को इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए.

जामिया हमदर्द में इस्लामिक स्टडी के असिस्टेंट प्रोफेसर मुफ्ती अतहर शम्सी ने गजवा ए हिंद पर पुस्तक के विमोचन समारोह में कहा कि इस्लाम के भारतीय विद्वानों को फर्जी आख्यानों का मुकाबला करना चाहिए और अन्य लोगों के खिलाफ हिंसा के आह्वान की खुले तौर पर निंदा करनी चाहिए.

शम्सी ने गजवा ए हिंद विषय को दो दशक पहले अपने एक लेख के जरिए गंभीर मुद्दा बताया था. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा, उलेमा के लिए सच बोलना महत्वपूर्ण है. आस्था के नाम पर झूठ नहीं फैलने देना चाहिए.
उन्होंने कहा गज्वा ए हिंद दर्शन के खिलाफ बोलने के लिए मुझे विरोध का सामना करना पड़ा. इस विषय पर शोध के लिए पाकिस्तान में कई उलेमा ने मेरे खिलाफ बातें की.

कार्यक्रम में मौजूद मुंबई की डॉ जीनत शौकत अली ने पुस्तक की तारीफ में कहा कि यह इस विषय पर प्रामाणिक जानकारी प्रदान करती है. पुस्तक के लेख गजवा सिद्धांत की निंदा करते हैं. यह पुस्तक इस्लाम में शांति के विषय पर एक तर्क की सेवा है.

उन्होंने कहा कि गजवा पर हाल ही में देवबंद के फतवे ने बहुत हंगामा और चिंता पैदा की है. उन्होंने इंडोनेशिया और प्रिंस सलमान का हवाला देते हुए कहा कि इंडोनेशियाई लोगों ने हमें सिखाया है कि युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए इस्लामी परंपराओं का उपयोग कैसे किया जाए.

उन्होंने कहा मैं सेंट जेवियर्स में पढ़ाती थी तब छात्र मुझसे हमेशा सवाल करते थे कि इस्लाम का असली संदेश क्या है.उन्होंने कहा कि इंडोनेशियाई लोगों ने हमें सिखाया है कि युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए इस्लामी परंपराओं का उपयोग कैसे करें. इस्लाम हिंसा को खारिज करता है.

कुरान विश्वास निर्माण करता है.उन्होंने कहा कि गजवा ए हिंद सिद्धांत समुदायों के बीच दुर्भावना पैदा कर सकता है.उन्होंने कहा कि मोहम्मद बिन सलमान सऊदी क्राउन प्रिंस के संयम के संदेश को दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा सराहना की जानी चाहिए. सभी फतवों को इस संदर्भ को ध्यान में रखना चाहिए जिसमें फतवे जारी किए गए थे.

पुस्तक विमोचन समारोह में खुसरो फाउंडेशन के निदेशक शांतनु मुखर्जी, आवाज द वाॅयस के प्रधान संपादक आतिर खान, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, बेंगलुरू की रोशन बेगम, सुप्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा, पूर्व आईएएस कमर अहमद, प्रो अख्तरूल वासे, कमर आगा, पूर्व राजदूत पंकज सरन, ख्वाजा शाहिद, हम्माद निजामी, इंतजार कादरी, मजहर आसिफ, नसीब चैधरी, शुजात अली कादरी आदि प्रमुख हस्तियां मौजूद थीं. मंच संचालन डा. हफीजुर्रहमान ने किया.

 

Deepak Sahu

Editor in Chief

Related Articles

Back to top button