नई दिल्ली/स्वराज टुडे: विकास की अंधी दौड़ में पूरी दुनिया नित नई खोज करने में लगी हुई है। लेकिन, इससे हम जलवायु को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं. जलवायु को होने वाले नुकसान के कारण पृथ्वी पर रहने वाले जानवरों और पौधों सहित मनुष्यों के स्वास्थ्य और हमारे ग्रह की सुरक्षा को खतरा हो रहा है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, हम पृथ्वी की सुरक्षा की 7 सीमाएं पार कर चुके हैं। वर्तमान में हम जलवायु की 8 सुरक्षित सीमाओं में से अंतिम सीमा में रह रहे हैं। इसलिए, यह बेहद जरूरी हो गया है कि दुनिया भर के देश पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए तेजी से मिलकर काम करना शुरू करें।
पृथ्वी पर सुरक्षा की कुल 8 प्राकृतिक परतें हैं
वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी पर सुरक्षा की कुल 8 प्राकृतिक परतें हैं। यह परत मनुष्य और पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं और पौधों को न केवल सुरक्षा प्रदान करती है बल्कि उन्हें स्वस्थ भी रखती है। नेचर जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन दुनिया भर के 40 से अधिक वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब हमारा ग्रह इंसानों के रहने लायक नहीं रह गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इंसान हर उस सीमा को पार कर चुका है जो पृथ्वी को सुरक्षित रखती है। मौजूदा हालात को देखते हुए वैज्ञानिकों ने इंसानों के भविष्य पर चिंता जताई है।
पृथ्वी की सुरक्षा सीमाएँ क्या हैं?
नेचर जर्नल में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार, प्रकृति से हमें जो भी चीजें मिलीं, वे प्रदूषित हो चुकी हैं। धीरे-धीरे इंसानों का जीना मुश्किल होता जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी और हमारी सुरक्षा सीमाओं में जलवायु, जैव विविधता, ताज़ा पानी, हवा, मिट्टी और पानी शामिल हैं। इन सभी में जहर का स्तर बहुत ज्यादा हो गया है. इससे पृथ्वी का पर्यावरण खतरे में है। इसका असर मानव जीवन पर पड़ता है. वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि पृथ्वी पर जीवन सुरक्षा के घटक खतरनाक स्तर पर पहुंच गये हैं।
अध्ययन के नतीजे बेहद चिंताजनक हैं
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करने वाले घटक और यहां रहने वाली हर जीवित प्रजाति खतरे में आ जाए तो हमारा और हमारे ग्रह का क्या होगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं है। लेख के मुताबिक, वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु 1-सी की सीमा पार कर चुकी है। लाखों लोग पहले से ही बदलती जलवायु की चपेट में आ गए हैं। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के प्रोफेसर जोहान रॉकस्ट्रॉम के मुताबिक, हमारे स्वास्थ्य परीक्षणों के नतीजे बेहद चिंताजनक हो गए हैं।
हम लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहे’
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश 2015 तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमत हुए हैं। इसके अलावा, दुनिया के 30 प्रतिशत भूमि, समुद्र और मीठे पानी वाले क्षेत्रों में जैव विविधता की रक्षा करने पर भी सहमति हुई है। पृथ्वी आयोग के वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा स्थिति में हम अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि पृथ्वी पर होने वाले हर बदलाव को व्यवस्थित करने का समय आ गया है। संतुलन बनाए रखकर हम खतरे को कुछ समय के लिए टाल सकते हैं।
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